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काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई, जानें क्या है पूरा मामला

वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आज तीसरा और आखिरी दिन है. वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज ही के दिन सुनवाई होनी है.

Prayagraj News: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आज तीसरा और आखिरी दिन है. वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज ही के दिन सुनवाई होनी है. दोपहर करीब 2 बजे से न्यायाधीश प्रकाश पाडिया की सिंगल पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.

एक विवाद से जुड़ी तीन-तीन याचिकाएं दाखिल

दरअसल, कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने एक विवाद से जुड़ी तीन-तीन याचिकाएं दाखिल की हैं. छह याचिकाओं पर कोर्ट में एक साथ सुनवाई की जा रही है. इनमें से चार याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट अपना फैसला सुरक्षित कर चुका है.

सिविल कोर्ट के आदेश पर अगली सुनवाई तक लगी थी रोक

गौरतलब है कि 8 अप्रैल 2021 को वाराणसी की सीनियर डिवीजन सिविल ने मामले में सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. कोर्ट ने एएसआई से खुदाई कराकर सर्वेक्षण के जरिए सत्यता का पता लगाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर जांच का आदेश दिया था. मस्जिद के पक्षकारों ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसपर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट के आदेश और 1991 में दायर मुख्य मुकदमे की कार्यवाही पर भी अगली सुनवाई तक रोक लगाई थी.

जानिए क्या है पूरा मामला

वाराणसी की सिविल कोर्ट में हिंदू पक्षकारों की ओर से 1991 में ज्ञानवापी में नए मंदिर निर्माण और पूजा पाठ के अधिकार को लेकर मुकदमा दाखिल किया गया था. इसके बाद मुकदमें को लेकर 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट से स्टे होने के बाद कई वर्षों तक वाद लम्बित रहा.

इसके बाद 10 दिसंबर 2019 को विशेश्वर नाथ मंदिर की ओर से वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट में आवेदन देकर ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील की और दावा किया की इसके नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हैं. भूतल में एक तहखाना है. जिसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है. मंदिर का निर्माण हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने, फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था. इस विवाद पर आज कोर्ट का फैसला आ सकता है.

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