Aligarh News: ' श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि. बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि.' दोहे से शुरू होकर ' जय हनुमान ज्ञान गुन सागर.जय कपीस तिहुं लोक उजागर. ' चौपाई से अंत तक रग-रग में जोश भर डर को खत्म करने वाले हनुमान चालीसा के बारे में हर किसी के मन में ये सवाल ज़रूर आता होगा कि हनुमान चालीसा की रचना कैसे हुई ?
ऐसे हुई हनुमान चालीसा की रचना
ज्योतिषाचार्य पंडित हृदयरंजन शर्मा ने बताया कि हर मंगलवार, हनुमान जयंती और हर परेशानी में हिम्मत देने वाले अद्भुत हनुमान चालीसा की रचना के बारे में अकबर और तुलसीदास की कहानी सामने आती है. जब भारत में मुग़ल सम्राट अकबर का राज था.एक महिला ने पूजा से लौटते हुए तुलसीदास के पैर छुए. तुलसीदास ने उसे सौभाग्यशाली का आशीर्वाद दिया. वह महिला फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए उसने बताया कि अभी-अभी उसके पति की मृत्यु हो गई है.
राम-नाम से जी उठा महिला का पति
तुलसीदास सौभाग्यशाली वाले अपने आशीर्वाद को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे कि भगवान राम बिगड़ी बात संभाल लेंगे और उनका आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा. उन्होंने उस औरत समेत सभी को राम नाम का जाप करने को कहा. मरा हुआ व्यक्ति राम नाम के जाप आरंभ होते ही जीवित हो उठा.
अकबर ने तुलसीदास को कारागार में डाल दिया
यह बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फैल गयी. जब यह बात बादशाह अकबर के कानों तक पहुंची, तो उसने अपने महल में तुलसीदास को बुलाया और कहा कि कोई चमत्कार दिखाएँ. तुलसीदास ने अकबर से बिना डरे कहा कि वो कोई चमत्कारी बाबा नहीं हैं, सिर्फ श्री राम जी के भक्त हैं अकबर इतना सुनते ही क्रोध में आ गया और उसने उसी समय तुलसीदास को कारागार में डलवा दिया.
कारागार में की हनुमान चालीसा की रचना
तुलसीदास राम का नाम जपते हुए कारागार में चले गए. उन्होंने कारागार में भी अपनी आस्था बनाए रखी और वहां रह कर ही हनुमान चालीसा की रचना की.
40 दिन हनुमान चालीसा से हुआ चमत्कार
तुलसीदास ने लगातार 40 दिन तक उसका निरंतर पाठ किया. 40वें दिन एक चमत्कार हुआ. हजारों बंदरों ने एक साथ अकबर के राज्य पर हमला बोल दिया. अचानक हुए इस हमले से सब अचंभित हो गए.
तुलसीदास को अकबर ने किया रिहा
अकबर एक सूझवान बादशाह था, इसलिए इतने सारे बंदरों के हमले का कारण समझते देर न लगी. उसे भक्ति की महिमा समझ में आ गई. उसने उसी क्षण तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर कारागार से मुक्त किया और आदर सहित उन्हें विदा किया. इतना ही नहीं, अकबर ने उस दिन के बाद तुलसीदास जी से जीवनभर मित्रता निभाई.
रिपोर्ट - चमन शर्मा, अलीगढ़