राजेन्द्र कुमार
लखनऊः राज्य के मुजफ्फरनगर जिले में भड़की साम्प्रदायिक हिंसा की आग की गर्माहट सोमवार को सूबे की विधानसभा में दिखाई दी. दंगों को लेकर विपक्ष ने अखिलेश सरकार पर प्रहार करते हुए सदन में जमकर हंगामा किया. विपक्षी दलों विशेषकर भाजपा और बसपा के हंगामें के चलते जहां प्रश्नकाल नहीं हो सका और सदन की कार्यवाही दो बार स्थगित करनी पड़ी. इसके बाद भी विपक्षी दलों का विरोध जारी रहा और शोरगुल तथा हंगामें के बीच ही कार्यसूची में तय किए गए आज के काम निपटाये गए. इसी दौरान सरकार की ओर से मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर यह कहा गया कि उप्र को किसी कीमत पर गुजरात नहीं बनने दिया जायेगा.
राज्य विधानसभा के लघु सत्र की सोमवार को शुरूआत होते ही विपक्षी दल आक्रामक मूड में आ गए और सरकार विरोधी नारे लगाने लगे. प्रमुख विपक्षी दल बसपा, भाजपा, कांग्रेस व रालोद के सदस्य मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर सरकार को घेरते हुए अध्यक्ष पीठ के सामने वेल में आ गए. इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने भारी शोरगुल करते हुए सरकार विरोधी बैनर लहराये. भाजपा सदस्य ‘एकतरफा कार्रवाई बंद करो, तुष्टिकरण बंद करो’ आदि नारे लगा रहे थे वहीं बसपा सदस्य ‘गुण्डे माफिया मस्त हैं, प्रदेश की जनता त्रस्त है’, ‘यूपी बन गया दंगा प्रदेश सीएम जिसके हैं अखिलेश’ के नारे लगा रहे थे. बसपा सदस्यों ने अपने सिरों पर नारे लिखी टोपियां भी पहन रखीं थीं.
उधर, विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने कई बार सदन को व्यवस्थित करने का प्रयास किया लेकिन हंगामा थमता न देख उन्होंने तीन मिनट बाद ही सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी. बाद में जब सदन फिर से शुरू हुआ तो स्थितियां कमोबेश वैसी ही रहीं. इस दौरान भाजपा सदस्यों ने अध्यक्ष के आसन की ओर बढ़ने का असफल प्रयास किया. इस दौरान भाजपा सदस्यों एवं विधानसभा सुरक्षा कर्मियों से धक्का-मुक्की भी हुई. कुछ उत्साहित सदस्यों ने अध्यक्ष के आसन की ओर बैनर व कागज के गोले भी उछाले. जिसके बाद एक बार फिर सदन की कार्यवाही 12 बजकर 20 मिनट तक के लिए स्थगित कर दी गयी. जिसके चलते प्रश्नकाल नहीं हो सका. वहीं भाजपा सदस्य सदन के स्थगन के दौरान वेल में ही धरने पर बैठे रहे.
सदन की कार्यवाही जब पुनः शुरू हुई तब भी भाजपा सदस्य वेल में ही हंगामा करते रहे. जबकि बसपा, कांग्रेस व रालोद सदस्य अपने-अपने स्थानों पर खड़े होकर नारेबाजी करते रहे. इस दौरान भी भाजपा विधायकों ने अध्यक्ष पीठ की ओर फिर बढ़ने का प्रयास किया. हंगामा के बीच ही विधानसभा अध्यक्ष ने कार्यसूची में दर्ज सभी कार्यों को मात्र 30 मिनट में ही निपटा दिया. इस दौरान उन्होंने बसपा और भाजपा विधानमण्डल दल के नेताओं से आग्रह किया कि वह जिस विषय पर अपनी बात कहना चाहते हैं कहें, लेकिन सदन व्यवस्थित होने के बाद ही. वहीं कांग्रेस सदस्य भी मुजफ्फरनगर दंगें पर चर्चा की मांग कर रहे थे. इस दौरान कांग्रेस विधायक प्रमोद तिवारी ने कहा कि जिन लोगों ने दंगा कराया है वहीं लोग आज सदन नहीं चलने दे रहे हैं. भाजपा सदस्यों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि उप्र को गुजरात बनाने वालों को सदन से बाहर निकाला जाये. इस पर सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री मो. आजम खां ने कहा कि वह कांग्रेस की बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा और कुछ फासिस्ट ताकतें यूपी का दूसरा गुजरात बनाना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि जो लोग हिन्दू और मुसलमानों को बांटना चाहते हैं और प्रदेश का नुकसान करना चाहते हैं, ऐसे लोगों से सरकार सख्ती से निपटेगी.
केंद्र यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाए: जयंत चौधरी
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव एवं सांसद जयंत चौधरी ने मुजफ्फरनगर दंगों के लिए राज्य की सपा सरकार को घेरते हुए यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. मुजफ्फरनगर के दंगें के पीछे छिपे राजनीतिक षडयंत्र का खुलासा करने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार से मुजफ्फरनगर दंगे की सीबीआई जांच कराने की भी मांग की है.
रालोद नेता सोमवार को यूपी उप्र विधानसभा के लघु सत्र के पहले दिन यहां सदन की कार्यवाही देखने आये थे. बाद में पत्रकारों से बातचीत में जयंत ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए हिन्दू व मुसलमानों के गठजोड़ को तोड़ने की साजिश की जा रही है. इसी कारण मुजफ्फरनगर में दंगा हुआ. मुजफ्फनगर में जो कुछ भी हुआ उसके लिए वहां के लोग राज्य सरकार को ही दोषी करार दे रहे हैं. यही कारण है कि रविवार को जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वहां गये थे तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. जयंत के अनुसार स्थानीय खुफिया सूचना के बावजूद राज्य सरकार दंगा रोकने में असफल रही. राज्यपाल बीएल जोशी द्वारा केंद्र सरकार को दंगे के बाबत भेजी गई रिपोर्ट में भी इसका जिक्र किया गया है. जयंत कहा है कि राज्यपाल की इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार यूपी की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाए. इसके साथ ही मुजफ्फरनगर दंगे की सीबीआई से जांच कराई जाये ताकि राजनीतिक षडयंत्र का खुलासा हो सके.
आतंकी नहीं थे बाराबंकी में पकड़े गए युवक : निमेष आयोग
यूपी की पूर्ववर्ती बसपा सरकार के कार्यकाल में वाराणसी, फैजाबाद तथा लखनऊ के कचेहरी परिसर में हुए बम धमाकों को लेकर बाराबंकी से पकड़े गए दो युवक आतंकी नहीं थे. इन युवकों को बाराबंकी से पकड़ा भी नहीं गया था. सोमवार को विधानसभा में प्रस्तुत की गई निमेष आयोग की 237 पेज की रिपोर्ट का कमोवेश यही निष्कर्ष है.
मायावती सरकार ने इन युवकों के पकड़े जाने पर हुए विवाद की जांच के लिए एक सदस्यीय आयोग का गठन कर सेवानिवृत जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरडी निमेष को इसका प्रमुख बनाया. आयोग द्वारा दी गई अपनी जांच रिपोर्ट में गलत तरीके से युवकों की धरपकड़ के लिए इस प्रकरण में संलिप्त रहे अधिकारियों एवं कर्मचारियों को चिन्हित कर विधिसम्मत कार्यवाही करने की संस्तुति की गई है.
गौरतलब है कि सूबे की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने 22 दिसम्बर 2007 को लखनऊ से सटे बाराबंकी रेलवे स्टेशन से सुबह करीब 6.15 बजे खालिद मुजाहिद निवासी थाना मड़ियाहू जिला जौनपुर तथा तारिक कासमी निवासी रानी की सराय आजमगढ़ को विस्फोटकों के साथ पकड़ने का दावा किया था. पुलिस अधिकारियों ने इन दोनों युवकों पर लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद कचेहरी में सीरियल धमाके करने का आरोप लगा था. हालांकि पकड़े गए दोनों कथित आतंकियों के परिजनों ने पुलिस की थ्योरी को सिरे से खारिज कर दिया था. बाद में मामले के तूल पकड़ने के बाद बसपा सरकार ने ही 14 मार्च 2008 को बाराबंकी में हुई इन कथित आतंकियों की गिरफ्तारी की जांच के लिए एकल सदस्यीय सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरडी निमेष आयोग का गठन किया था. निमेष आयोग ने 31 अगस्त 2012 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी. जिसके बाद 18 जून 2013 को निमेष आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने का फैसला राज्य की वर्तमान सपा सरकार ने लिया था. सरकार ने दावा किया है निमेष आयोग की संस्तुतियों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी.