-राजेन्द्र कुमार-
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती को समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह का साथ मंजूर नहीं है. मायावती ने बुधवार को दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए फिर से यह दोहराया है. वास्तव में मायावती संगत, कुसंगत के झमेले में ना पडकर अकेले ही बसपा का राजनीति का सफर तेज करने की फिराक में है. ऐसे में उन्हें राजद प्रमुख लालू यादव की यह सलाह मंजूर नहीं है कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए मायावती को मुलायम सिंह यादव के साथ गठबंधन करना चाहिए.
लालू यादव ने सोमवार को हाजीपुर में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर की गई एक जनसभा के दौरान मुलायम सिंह यादव और मायावती को एक मंच पर आने की सलाह दी थी. लालू यादव के इस कथन पर बुधवार को पत्रकारों ने सपा मुखिया मुलायम सिह यादव की प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंने कहा कि यदि लालू यादव मध्यस्थता करें तो मायावती के साथ हाथ मिलाया जा सकता है. मुलायम के इस कथन की जानकारी बसपा सुप्रीमों मायावती को हुई तो वह तमतमा गई और आनन-फानन में पत्रकारों को बुलाकर उन्होंने कहा कि बसपा को किसी के साथ की जरूरत नहीं है. हम अकेले ही सांप्रदायिक ताकतों को रोकने का प्रयास देश भर में करेंगे, रही बात मुलायम सिंह से हाथ मिलाने की तो यह नहीं हो सकता. मायावती के अनुसार लालू तथा मुलायम के लिए सत्ता हासिल करना पहले नम्बर पर और मान-सम्मान बाद में हो सकता है. मेरे लिए मान-सम्मान पहले है और सत्ता बाद में. बसपा के हित और मान-सम्मान के लिए 25 अगस्त 2003 में हमने भाजपा से गठबंधन तोड़ मुख्यमंत्री पद का त्याग कर दिया था. मायावती ने गेस्टहाउस कांड को याद करते हुए लालू यादव से पूछा कि यदि यह सब कुछ उनकी बहन के साथ होता, तब उनका रवैया यह नहीं होता. यह दावा करते हुए मायावती ने अकेले ही बसपा का राजनीतिक सफर जारी रखने की बात कही.
मायावती ने पहले भी किसी चुनावी या राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा ना बनने की बात कही है, बुधवार को फिर उन्होंने इसे दोहराया. सपा से गठबंधन खत्म होने के बाद बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था पर बसपा को उसका लाभ नहीं हुआ. इसी के बाद किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन करने के प्रयास बसपा की तरफ से नहीं हुए. ऐसा नहीं है कि मायावती किसी राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहती. वह चाहती है कि जो भी राजनीतिक दल बसपा के साथ जुड़े वह बसपा की सभी शर्तो को माने. मायावती की मंशा कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ ऐसा गठबंधन तैयार करने की है जिसमें उनकी भूमिका प्रमुख हो. यूपी की सत्ता में रहते हुए उन्होंने ऐसा ही एक गठबंधन तैयार करने का प्रयास माकपा नेता प्रकाश करार से बात करने के बाद किया था पर मायावती का यह प्रयास सफल नहीं रहा, क्योंकि कई बड़े नेता मायावती के साथ में खड़े होने को तैयार नहीं हुए.
अब मायावती किसी भी कीमत पर सपा के साथ खड़े होने को तैयार नहीं है तो इसकी एक वजह यह भी है कि बसपा यूपी में एक बड़ी ताकत है. मायावती को यह उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनावों में बसपा का भारी सफलता मिलेगी क्योंकि यूपी की जनता को उनका शासनकाल अखिलेश यादव के शासन से बेहतर लगने लगा है. ऐसे में मायावती को किसी गठबंधन में शामिल होने की जरूरत लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भी अभी महसूस नहीं हो रही है. यह वजह है कि बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर आरके चौधरी तक के मायावती के फैसले को सपा के चेहरे पर तमाचा बताया है.