।। राजेंद्र कुमार ।।
लखनऊ : देश की संसद को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश से इस बार मुस्लिम समाज का एक भी उम्मीदवार चुनाव नही जीता है. यह दुखद सत्य है. पर ऐसा हुआ है. वह भी तक जब वोट बैंक की राजनीति में प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस में मुस्लिम समाज को लेकर प्रेम लगातार बढ़ रहा था फिर भी यूपी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब यूपी से कोई मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीत कर संसद नहीं पहुचा.
यूपी में किसी ने ऐसा होने की उम्मीद किसी ने नहीं की थी. सूबे की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी करीब 19 फीसदी है और तीस से अधिक सीटों पर मुस्लिम समाज की उम्मीदवारों की जीत हार को तय करते है. इसी वजह से हर दल मुस्लिम समाज के लोगों को बड़ी संख्या में टिकट देता रहा है. इन चुनावों में भी बसपा ने 19, सपा ने 13, कांग्रेस ने 11 और आप पार्टी ने भी 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. इनके अलावा छोटे दलों ने भी बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे. परन्तु भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया. ऐसे में मोदी की लहर में किसी भी दल का कोई मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. यह पहली बार हुआ.
वर्ष 1952 से लेकर 2009 तक के चुनावी परिणाम इस सच्चाई को उजागर करते हैं. जिसके मुताबिक 1952 में 11 मुस्लिम प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और इनमें से सात चुनाव जीत कर संसद में पहुंचे. वर्ष 1957 में चुनाव जीत कर संसद पहुंचे मुस्लिम प्रत्याशी की संख्या छह हुई. फिर 1962 के चुनावों में यह संख्या घट कर पांच रह गई. 1967 में फिर छह प्रत्याशी चुनाव जीत कर यूपी से देश की संसद में पहुंचे.
1971 में इंदिरा गांधी ने मुस्लिम समाज को ज्यादा संख्या में टिकट दिए और 16 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीते. 1977 में 25 मुस्लिम प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और उनमें से दस चुनाव जीते. वर्ष 1980 में 18, वर्ष 1984 में 12, वर्ष 1989 में आठ, वर्ष 1991 में तीन, वर्ष 1999 में आठ, वर्ष 2004 में 11 और वर्ष 2009 में सात मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. इनमें सपा का एक भी मुस्लिम सांसद नहीं था. पर इस बार सपा, बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दलों का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. सूबे के मुस्लिम समाज को यह सत्य कचोट रहा है.
मोदी लहर में हवा हो गए 65 छोटे दल
पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद अयूब के फेसबुक पेज पर विख्यात जनकवि अदम गोंडवी की लिखी ये लाइन चस्पा हैं, कोई हो संघर्ष से हम पांव मोड़ेंगे नहीं/कच्चा खा जाएंगे, जिंदा उनको छोड़ेंगे नहीं. इस जज्बे को रखने वाले 65 राजनीतिक दल इन चुनावों में अपने भाग्य को अजमाने उतरे थे. लगता है कि इन दलों के मुखिया और इन दलों के झंडे तले इस बार चुनाव लड़ने उम्मीदवारों को नरेन्द्र मोदी के पक्ष में चलने वाली हवा का इल्म तक नहीं था. यदि रहा होता तो शायद ही वह चुनाव लड़ने की सोचते पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और सूबे की जनता ने मोदी लहर में इन दलों को बहा दिया.
सूबे के निर्वाचन महकमे के अनुसार इन बार के लोकसभा चुनाव में हर संसदीय क्षेत्र में छोटे दलों के औसत चार-पांच उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. बड़े राजनीतिक दलों के अलावा 65 छोटे दलों के उम्मीवदार जनता की अदालत में पहुंचे, लेकिन बड़ी लड़ाई में वह गुम से हो गए. दरअसल, यूपी के इस छोर से उस छोर तक चुनावी मुददा नरेन्द्र मोदी रहे. विपक्षी के हर बड़े नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल और शरद यादव तक ने सूबे में नरेन्द्र मोदी को निशाने पर लिया. मोदी ने इन नेताओं को मुहतोड़ जवाब दिया. तो भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं ने मोदी का संदेश सूबे के गांव-गांव में लोगों तक पहुंचाया.
जिसका नजीता यह हुआ कि जनता ने छोटे सूरमाओं की ओर हर बार की अपेक्षा कम ध्यान दिया. वैसे भी सूबे के लोग छोटे दलों को वोटकटवा की भूमिका में ही देखते रहे थे. फिर भी 65 छोटे दल चुनाव मैदान में उतरे. इनमें पीस पार्टी, इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल, कौमी एकता दल, बहुजन मुक्ति पार्टी, अम्बेडकर समाज पार्टी, जय महाभारत पार्टी, नैतिक पार्टी, स्वराज जे, भारतीय नौजवान इंकलाब पार्टी, राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल, प्रगतिशील मानव समाज पार्टी, गरीब आदमी पार्टी जैसे दलों ने अपने उम्मीदवार उतारे. चुनावी नतीजों से साबित हुआ कि इन छोटे दलों के सभी उम्मीदवार मोदी लहर में ना सिर्फ चुनाव हारे बल्कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई.
ऐसा क्यो हुआ? इसे लेकर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष मिश्र कहते हैं कि देश और प्रदेश में लोक बदलाव को लेकर आतुर थे. नरेन्द्र मोदी के प्रति जबर्दस्त लहर थी, जिसके चलते यूपी की जनता ने यहां सोनिया और मुलायम परिवार के लोगों को विपक्ष में रखा. यही नहीं बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, भारतीय कम्युनिस्ट पाटी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा आम आदमी पार्टी का खाता तक सूबे की जनता ने नहीं खोलने दिया. यह आश्चर्य जनक ही है कि 18 फीसदी वोट पाने वाली बसपा यूपी में एक भी सीट नहीं जीत सकी. बसपा राष्ट्रीय पार्टी है और देश के सभी राज्यों में वह चुनाव लडी फिर भी उसकी यह गति हुई. जाहिर है कि जो जनता बसपा को नकार सकती है वह उन छोटे दलों पर क्यो ध्यान देती जो सरकार बनाने की स्थिति में ही कहीं से नहीं थे. जिसका परिणाम यह हुआ कि यूपी में मोदी की लहर में सूबे में चुनाव लड़े 65 दल हवा हो गए.