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वर्ल्ड एथलेटिक्स में खेलेगी गुमला की सुप्रीति कच्छप

कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हों, तो मुश्किलें भी मंजिल तक पहुंचने के रास्ते से हट जाती हैं. कुछ यही साबित किया है झारखंड के गुमला जिले के एक छोटे से गांव बुरहू की रहने वाली सुप्रीति कच्छप ने. सुप्रीति ने 3000 मीटर में 10.00 मिनट का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया और स्वर्ण पदक जीता.

दिवाकर सिंह: कहते हैं कि अगर हौसले बुलंद हों, तो मुश्किलें भी मंजिल तक पहुंचने के रास्ते से हट जाती हैं. कुछ यही साबित किया है झारखंड के गुमला जिले के एक छोटे से गांव बुरहू की रहने वाली सुप्रीति कच्छप ने. इस खिलाड़ी ने तीन साल तक केवल दाल-भात खाकर अभ्यास किया और अपनी प्रतिभा के दम पर इस मुकाम तक पहुंची. तीन साल के बाद इसे भोपाल के साइ सेंटर में जगह मिली और इसकी प्रतिभा में निखार आया.

इस खिलाड़ी की कहानी ऐसी है कि इसको देख कर बाकी बालिका एथलीटों को आगे बढ़ने का रास्ता मिल सकता है. सुप्रीति ने कम समय में ही अपनी प्रतिभा के दम पर विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाइ किया है. इसका आयोजन दो से सात अगस्त तक कोलंबिया में होना है. इससे पहले सुप्रीति 3000 मीटर दौड़ में रिकॉर्ड भी बना चुकी है.

दो साल पहले बनाया था राष्ट्रीय रिकॉर्ड

झारखंड की खिलाड़ी 2018 से भोपाल के एक सेंटर में अभ्यास करती है, लेकिन झारखंड की ओर से एथलेटिक्स के इवेंट में पार्टिसिपेट करती है. इस खिलाड़ी ने 2020 में ‘खेलो इंडिया एथलेटिक्स चैंपियनशिप’ में झारखंड की तरफ से पार्टिसिपेट करते हुए 3000 मीटर में 10.00 मिनट का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया और स्वर्ण पदक जीता.

वहीं इसी साल नेशनल क्रॉस कंट्री रेस में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया है. चार भाई-बहनों में सबसे छोटी सुप्रीति के करियर को तब बढ़ावा मिला, जब 2017 में विजयवाड़ा में आयोजित जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उनके प्रदर्शन के आधार पर उन्हें साइ भोपाल केंद्र की कोच प्रतिभा टोप्पो ने देखा. इसके बाद सुप्रीति की प्रतिभा में और भी निखार आया और फिर इसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

पिता के सपने को पूरा करने के लिए बनी एथलीट

सुप्रीति कच्छप ने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए एथलेटिक्स का अभ्यास गुमला स्थित डे बोर्डिंग सेंटर से शुरू किया और मुकाम पाया. हालांकि उनकी सफलता को देखने के लिए उनके पिता आज उनके बीच में नहीं है, लेकिन सुप्रीति अपने पिता के सपने को पूरा करने में जुटी है. वहीं, सुप्रीति की मां एक चुतर्थवर्गीय कर्मचारी हैं.

अपनी बेटी की सफलता पर मां बालमति देवी ने बताया कि वो बचपन से ही एथलीट बनना चाहती थी और आज उसने अपने इस सपने को साकार कर दिया है. ऐसे में झारखंड की ये बिटिया आनेवाली पीढ़ी को सफलता का एक नया मंत्र पढ़ा रही है. सुप्रीति का कहना है कि मेरा सपना है कि मैं ओलिंपिक में देश के लिए पदक जीतूं और अपने राज्य का नाम रोशन करूं. इसके लिए मेरी तैयारी जारी है.

दाल चावल खाकर अभ्यास करती थी सुप्रीति

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेरने की तैयारी करने वाले झारखंड की स्टार एथलीट का सफर इतना आसान नहीं था. गुमला के एक छोटे गांव से जब इस खिलाड़ी ने अपने एथलेक्टिस करियर की शुरुआत की, तब इसको एक एथलीट की तरह का डायट नहीं मिलता था. सुप्रीति का कहना है कि मैं गुमला में ही कोच प्रभात रंजन की देखरेख में अभ्यास करती थी.

प्रतिदिन दो से तीन घंटे केवल दाल-चावल खाकर अभ्यास करती थी. इससे अधिक कुछ खाने को नहीं मिलता था, लेकिन मेरा आत्मविश्वास था कि मुझे आगे बढ़ना है, इसलिए मैंने अपने डायट को किनारे रख कर अपना फोकस केवल खेल पर किया और 2020 में 3000 मीटर की दौड़ के दौरान मुझे साइ के कैंप के लिए निमंत्रण दिया गया. इसके बाद मुझे बेहतर करने का अवसर प्राप्त हुआ और इसके कारण ही मैं आज इस मुकाम पर हूं.

प्रत्येक सप्ताह 115 किलोमीटर दौड़ का करती हैं अभ्यास

सुप्रीति वर्तमान में भोपाल के साइ सेंटर में 5000 मीटर दौड़ का अभ्यास करती हैं. यहां इन्हें पूरा डायट मिलता है, जिससे अभ्यास में कोई परेशानी नहीं होती. सुप्रीति बताती है कि यहां मैं एक सप्ताह में लगभग 115 किलोमीटर दौड़ती हूं, जिससे मेरा अभ्यास पूरा होता है. एक दिन में चार घंटे का अभ्यास होता है, जिसमें दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम शामिल है. इसके माध्यम से ही मैं इंटरनेशनल इवेंट की तैयारी कर रही हूं. यहां के कोच बेहतर प्रशिक्षण देते हैं जिससे बेहतर तैयारी हो पाती है.

सुप्रीति का कहना है कि झारखंड के एथलीटों को आगे बढ़ाने के लिये बेहतर सुविधा की जरूरत है, जिसमें बेहतर डायट के साथ प्रशिक्षण की सुविधा शामिल है. इसके बाद ही यहां के एथलीट बेहतर परफॉर्मेंस दे सकते हैं. वर्तमान में जो भी खिलाड़ी बेस्ट दे रहे हैं, वो अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर दे रहे हैं.

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