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Friday, March 29, 2024

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Coronavirus In Jharkhand : हौसले से 81 साल की उम्र में पूर्व विधायक व झारखंड आंदोलनकारी बहादुर उरांव ने दी कोरोना को मात, रांची में नहीं हो सकी थी इलाज की व्यवस्था

Coronavirus In Jharkhand, चक्रधरपुर न्यूज : 23 दिनों तक कोरोना महामारी से जूझते हुए 81 वर्षीय पूर्व विधायक व झारखंड आंदोलनकारी बहादुर उरांव ने जिंदगी की जंग जीत ली है. कुछ दिनों पहले उनकी तबीयत खराब हुई, तो उन्हें रांची लाया गया, लेकिन कहीं बेड नहीं मिल सका था. आखिरकार अधिकारियों की संजीदगी के कारण चक्रधरपुर में ही इनका इलाज किया गया. वे रांची से लौट गये थे और अस्पताल में जिंदगी से जंग लड़ रहे थे. उन्होंने कहा कि मानवता के साथ देने का वक्त है. हौसले से आप बड़ी जंग भी जीत सकते हैं.

Coronavirus In Jharkhand, चक्रधरपुर न्यूज : 23 दिनों तक कोरोना महामारी से जूझते हुए 81 वर्षीय पूर्व विधायक व झारखंड आंदोलनकारी बहादुर उरांव ने जिंदगी की जंग जीत ली है. कुछ दिनों पहले उनकी तबीयत खराब हुई, तो उन्हें रांची लाया गया, लेकिन कहीं बेड नहीं मिल सका था. आखिरकार अधिकारियों की संजीदगी के कारण चक्रधरपुर में ही इनका इलाज किया गया. वे रांची से लौट गये थे और अस्पताल में जिंदगी से जंग लड़ रहे थे. उन्होंने कहा कि मानवता के साथ देने का वक्त है. हौसले से आप बड़ी जंग भी जीत सकते हैं.

जानकारी के मुताबिक 17 अप्रैल को श्री उरांव बीमार हुए. उनमें कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए. बेहतर इलाज के लिए आनन-फानन में उन्हें रांची उनके बेटी-दामाद के घर ले जाया गया. अथक प्रयास और अस्पतालों का चक्कर काटने के बावजूद रांची में उन्हें कहीं भी जगह नहीं मिली. किसी भी अस्पताल में बेड खाली नहीं होने के कारण वह पल-पल मौत से जूझते रहे. हर दिन हालत बिगड़ती रही. अंततः उनके दामाद ने पश्चिमी सिंहभूम के एसपी को फोन द्वारा झारखंड आंदोलनकारी और पूर्व विधायक की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया. एसपी मामले को गंभीरता से लेते हुए चक्रधरपुर थाना प्रभारी प्रवीण कुमार को इसकी सूचना दी. प्रवीण कुमार ने बहादुर उरांव से संपर्क किया. फिर चक्रधरपुर रेलवे कोविड-19 डेडिकेटेड हॉस्पिटल में उनके लिए जगह बनाई गई.

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बहादुर उरांव रांची से चक्रधरपुर लौट आए. रेलवे अस्पताल में 30 अप्रैल से उनका इलाज शुरू हुआ. श्री उरांव बताते हैं कि चक्रधरपुर थाना प्रभारी ने उनके इलाज में बहुत सहयोग प्रदान किया. चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव भी दूरभाष से हालचाल पूछते रहे. अंततः 9 मई को वह कोरोना के विरुद्ध जंग जीत गए और उनकी रिपोर्ट निगेटिव आयी. जिसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. वर्तमान में वह काफी कमजोर हैं और अपने घर पर आराम कर रहे हैं.

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बहादुर उरांव बताते हैं कि वर्तमान समय में समय के विरुद्ध एक जंग चल रही है. यह भी एक आंदोलन है, जिसमें जीतने के लिए सिर्फ और सिर्फ हौसला चाहिए. उम्र इस हौसला के आगे कोई मायने नहीं रखता है. श्री उरांव लक्ष्मण गिलुवा की मृत्यु का जिक्र करते-करते रो पड़े. उन्हें इस बात का मलाल है कि उनके अंतिम समय में लोग उनके साथ खड़े नहीं रहे. उन्होंने लोगों से अपील की कि आज मानवता का साथ दें. आज एक संक्रमित व्यक्ति की मदद के लिए कोई खड़ा नहीं हो रहा है. यह बहुत ही शर्म की बात है. हमें संक्रमित परिवारों की मदद के लिए आगे आने की आवश्यकता है. यही समय है अपने लोगों की पहचान का.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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