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गुवा गोली कांड के कारण आंदोलनकारी बहादुर उरांव ने जुड़वां बेटों को खोया

Jharkhand news, Chakradharpur news : 8 सितंबर, 1980 को पश्चिमी सिंहभूम के गुवा में निहत्थे आदिवासियों को पंक्ति में खड़े कर गोलियों से भून देने की दर्दनाक वाक्या में जहां 10 आदिवासियों की शहादत हुई थी, वहीं दूसरी ओर इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में से एक बहादुर उरांव को भी अपनी जुड़वां बेटों को खोना पड़ा था. यह बहादुर उरांव के जीवन का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसकी टीस उसे, उसकी धर्मपत्नी लखीमुनी उरांव समेत पूरे परिवार को सताता है.

Jharkhand news, Chakradharpur news : चक्रधरपुर (शीन अनवर) : 8 सितंबर, 1980 को पश्चिमी सिंहभूम के गुवा में निहत्थे आदिवासियों को पंक्ति में खड़े कर गोलियों से भून देने की दर्दनाक वाक्या में जहां 10 आदिवासियों की शहादत हुई थी, वहीं दूसरी ओर इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में से एक बहादुर उरांव को भी अपनी जुड़वां बेटों को खोना पड़ा था. यह बहादुर उरांव के जीवन का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसकी टीस उसे, उसकी धर्मपत्नी लखीमुनी उरांव समेत पूरे परिवार को सताता है.

झारखंड आंदोलनकारी बहादुर उरांव कहते हैं कि पुलिस अधिकारियों के आंदोलनकारियों को देखते ही गोली मार देने के आदेश से बचने के लिए बहादुर गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार थे. रेलवे में नौकरी करने के बावजूद अलग राज्य के आंदोलनों में शामिल बहादुर उरांव गुवा के आंदोलन में भी शामिल हुए थे. उन्हें तनिक भी अभास नहीं था कि गुवा में इतनी बड़ी गोली कांड हो जायेगी.

गोली कांड के बाद पुलिस बहादुर उरांव को तलाश कर रही थी और वह जंगल- झाड़ में छिपते- छिपाते भागे- भागे फिर रहे थे. महीनों तक फरारी की सजा काटते रहे. पुलिस उसके नाम का वारंट लिए तलाश कर रही थी. उसके घर के बाहर पुलिस की घेराबंदी कर दी गयी थी. हर आने-जाने वाले की तलाशी और पूछताछ होती थी. ऐसे में बहादुर उरांव घर भी नहीं लौट पा रहे थे.

गिरफ्तारी नहीं होने पर पुलिस ने थक- हार कर चक्रधरपुर राखा आसनतलिया उरांव बस्ती स्थित बहादुर उरांव की घर की कुर्की जब्ती कर ली गयी. बर्तन, अनाज, बिस्तर समेत घर का हर सामान जब्त कर लिया गया था. खपरे का मकान का खपरा तक उतार लिया गया था. दरवाजे- खिड़कियां भी खोल लिये गये थे. बहादुर उरांव की पत्नी लखीमुनी उरांव ने पुलिस वालों से भोजन के लिए बर्तन और बच्चों को सुलाने के लिए बिस्तर की मांग भी की, लेकिन पुलिस वालों ने कुछ भी नहीं दिया.

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गुवा गोली कांड के दिन लखीमुनी उरांव गर्भ से थी, लेकिन जब कुर्की जब्ती हुई, तो दो जुड़वां बेटों का जन्म हो चुका था. जिसका पालन लखीमुनी कर रही थी. बिस्तर जब्त कर लिए जाने से जुड़वां बच्चों को मजबूरी में नीचे जमीन पर सुलाया जाता था. इस बीच जाड़े का मौसम ने दस्तक दे दिया था. ऐसे में ठंड लग जाने के कारण दोनों बच्चे निमोनिया के शिकार हो गये. बहादुर उरांव के घर आने पर सख्त पहरा के कारण अकेली लखीमुनी बच्चों का इलाज नहीं करा पायी और दोनों मासूम बेटों की मौत हो गयी.

ईश्वर की लीला देखिए कि फिर कभी भी बहादुर उरांव के घर पर पुत्र पैदा नहीं हुआ. 3 पुत्रियां सावित्री उरांव, सरिता उरांव एवं सीमा उरांव ही रह गयीं. दोनों जुड़वां बेटों में से एक का नाम बहादुर उरांव के पिता के नाम पर सखुवा उरांव एवं दूसरे का नाम दादी करमी उरांव के नाम पर करम उरांव रखा गया था.

बाद में बहादुर उरांव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. जब वह जेल से रिहा हुए, तो पत्नी लखीमुनी ने 2 सालों तक उसे बेटों को खोने के कारण माफ नहीं की थी. दोनों में मतभेद रहा. अब बहादुर 80 और लखीमुनी 70 साल की हो गयी है, लेकिन आज भी उन्हें जुड़वां बेटों को खोने और एक भी बेटा नहीं होने की कमी खलती है.

Posted By : Samir Ranjan.

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