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Friday, March 29, 2024

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अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी माइकल किंडो का निधन, कई रिकॉर्ड रहे इनके नाम

Jharkhand News, Simdega News : अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी (International hockey player) माइकल किंडो अब हमारे बीच नहीं रहे. राउरकेला आईजीएच हॉस्पिटल (Rourkela IGH Hospital) में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गयी. इसके बाद उन्हें आईजीएच हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था.

Jharkhand News, Simdega News, सिमडेगा (रविकांत साहू) : अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी (International hockey player) माइकल किंडो अब हमारे बीच नहीं रहे. राउरकेला आईजीएच हॉस्पिटल (Rourkela IGH Hospital) में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गयी. इसके बाद उन्हें आईजीएच हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था.

उपलब्धि

माइकल किंडो वर्ष 1975 विश्वकप में स्वर्ण पदक विजेता भारतीय हॉकी टीम के आयरन गेट रहे. इससे पहले वर्ष 1971 विश्व कप में कांस्य पदक, वर्ष 1972 ओलंपिक में कांस्य पदक, वर्ष 1973 विश्व कप में रजत पदक सहित एशियन गेम, एशिया कप, कॉमनवेल्थ गेम सहित विश्व के कई प्रतियोगिता में भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किये.

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झारखंड के सिमडेगा जिला अंतर्गत कुरडेग प्रखंड के बैघमा गांव में माइकल किंडो का जन्म हुआ था. सेना में नौकरी करते हुए वे भारतीय टीम तक पहुंचे थे. सेना से सेवानिवृत्ति के बाद सेल राउरकेला में वे हॉकी का प्रशिक्षण देते थे. वे राउरकेला में ही बस चुके थे.

उनका निधन खेल जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है. वह हमेशा सिमडेगा आते थे और नन्हें खिलाड़ियों से मिलकर अपने अनुभवों को साझा कर खिलाड़ियों को हमेशा प्रोत्साहित करते थे. हॉकी सिमडेगा के महासचिव मनोज कोनबेगी ने कहा कि उनके निधन पर हॉकी सिमडेगा और हॉकी झारखंड शोक व्यक्त करता है.

जब वो खेलते थे, तो उनके सामने कोई नहीं टिकता था

स्वर्ण पदक विजेता ओलिंपियन सिलवानुस डुंगडुंग ने बताया कि वर्ष 1975 की बात है. तब माइकल किंडो भारतीय टीम की ओर से खेल रहे थे. हालांकि, उस मैच के दौरान मैं मौजूद नहीं थे, लेकिन रेडियो में सुना कि कोई भी विदेशी खिलाड़ी उनके सामने टिक नहीं सका. सभी उन्हें रोकने में नाकाम रहे. उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी माइकल किंडो के साथ नहीं खेले, लेकिन उन्हें खेलते जरूर देखे हैं. वह जब भी मैदान पर उतरते थे, उन्हें रोकना मुश्किल होता था.

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सिलवानुस ने बताया कि उस जमाने में उनके जैसा बेहतरीन खिलाड़ी कोई नहीं था. वह हमारे सीनियर थे, लेकिन जब भी मिलते थे, हॉकी के बारे में ही बताते थे. पहले वह लेफ्ट फुलबैक से खेलते थे. बाद में राइट फुलबैक से खेलने लगे. जब भी वह रांची आते थे, मेरे घर पर ही रुकते थे. इसके साथ ही यहां के खिलाड़ियों को बेहतर खेल के लिए प्रोत्साहित करते थे.

1982 एशियाड में टीम के सेकेंड कोच थे माइकल

राज्य के एक और ओलिंपियन मनोहर टोपनो ने 1982 एशियाड की बातें शेयर की. उन्होंने बताया कि तब माइकल किंडो भारतीय टीम के सेकेंड कोच हुआ करते थे. मैच से पहले कैसे खेलना है, इसकी टिप्स देते थे. उनसे काफी कुछ सीखने को मिला. मनोहर टोपनो ने 1982 का ही एक मजेदार वाकया शेयर किया. उन्होंने बताया कि एक मैत्री मैच में माइकल किंडो भी खेल रहे थे. ब्रेक में वह सभी साथी खिलाड़ियों के पास आये और अपने दांत हाथ में निकाल कर कहा कि खिलाड़ियों ने मेरे दांत तोड़ दिये. इसके बाद दोबारा हंसते हुए उन्होंने अपने दांत लगा लिये. उनकी इस हरकत से सभी हंसने लगे.

Posted By : Samir Ranjan.

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