साहिबगंज/ राजमहल : राजकीय माघी पूर्णिमा मेला राजमहल आदिवासी परंपरा और सभ्यता पर आधारित है. जहां एक ओर उत्तर वाहिनी गंगा तट होने के गौरव राजमहल को प्राप्त है. वहीं माघी पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला राजकीय मेला राजमहल को विशेष गौरव प्रदान करती है.
सदियों से आदिवासी सफाहोड़ और विदिन समाज के लाखों श्रद्धालु गंगा तट पर पहुंचकर शिव गुरु और मां गंगा की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. श्रद्धालु अपने अपने गुरु बाबा संग अनुशासित तरीके से कतारबद्ध होकर गंगा स्नान और पूजा अर्चना करते हैं. जो अपने आप में एक अनूठा त्यौहार या अनुष्ठान का रूप है. जिसमें आदिवासी समाज के 32 जनजाति के लोग हिस्सा लेते हैं और सभी जनजाति की संस्कृति और सभ्यता की झलक मिलती है.मेले में झारखंड के संथाल परगना के अलावा रांची, जमशेदपुर, धनबाद, लोहरदगा ,चतरा ,बिहार के भागलपुर, सिवान, सुल्तानगंज , अररिया , कटिहार , सहरसा, पश्चिम बंगाल के मालदा , मुर्शिदाबाद , कोलकाता, बहरमपुर, दिनाजपुर, पुरुलिया , असम , छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा पड़ोसी देश नेपाल से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इसलिए यह मेला प्रख्यात है.
माघी पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान के लिए उमड़े लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ कुंभ मेला की याद दिलाती है. जिसके कारण इसे आदिवासी का महाकुंभ कहा जाता है. पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुगण एक दिन पूर्व मेला स्थल पर पहुंचते हैं. सामूहिक रूप से पूजा की तैयारी करते हैं और त्रिपाल व टेंट लगाकर रात भर ठहरते हैं. अगले दिन काफी अनुशासित तरीके से अपने अपने गुरु बाबा के साथ गंगा स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं.
राजकीय माघी पूर्णिमा मेला घोषित होने के बाद मेले में प्रशासनिक स्तर पर व्यापक इंतजाम किए जाते हैं. इस बार मेला परिसर को स्वच्छ रखने के लिए जगह जगह सफाई कर्मी प्रतिनियुक्त किए गए हैं. जबकि 60 अस्थाई शौचालय बनाया गया है. 6 जगहों पर पेयजल की व्यवस्था कराई गई है. साथ ही मेले की सुंदरता को चार चांद लगाने के लिए रेलवे मैदान परिसर में संथाल ग्राम का मॉडल तैयार किया गया है. जिसमें आदिवासी समाज की परंपरा और संस्कृति को दर्शाने का प्रयास किया गया है.
* आदिवासी संस्कृति को बनाए रखने के लिए करते हैं साज सज्जा
राजकीय माघी पूर्णिमा मेला राजमहल में मुख्य भूमिका निभाने वाले विभिन्न समाज के दिशोम नाईकी अभिराम मरांडी का कहना है कि यह मेला आदिवासी परंपरा और संस्कृति को बनाए रखने के लिए है. मेले में प्रत्येक वर्ष को अस्थाई रूप से मांझी थान और जाहेर थान का निर्माण कराया जाता है. क्योंकि लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.गंगा स्नान कर जल अर्पण करने की प्रक्रिया होती है. इसलिए अस्थाई मांझी थान बनाई जाती है तथा इसमें आदिवासी परंपरा अनुसार साज-सज्जा की जाती है. धार्मिक झंडा और विद्युत सज्जा के अलावा फूल माला इत्यादि से सजाया जाता है जो काफी आकर्षक होता है. विदिन समाज के लोग विश्व गुरु के सानिध्य में पूजा अर्चना करते हैं जबकि सफाहोड़ आदिवासी अपने-अपने गुरु बाबा के सानिध्य में पूजा अर्चना करते हैं.
* माघी पूर्णिमा मेला का उद्घाटन करेंगे ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम
राजकीय माघी मेला का उद्घाटन संसदीय कार्य ग्रामीण विकास विभाग (ग्रामीण कार्य, पंचायती राज एवं एनआईपी विशेष प्रमण्डल मंत्री आलमगीर आलम रविवार को साहिबगंज जिला के राजमहल प्रखण्ड के उत्तरवाहिनी गंगा तट में करेंगे. जिसको लेकर प्रशासन की ओर से सारी तैयारी कर ली गयी है. मेला एक सप्ताह तक चलेगा. जिसमे सरकारी विभाग के दर्जनों स्टाल सहित कई आकर्षक झांकी, गंगा तट को सजाया सवारा गया है.