रांची (सुनील कुमार) : झारखंड अलग राज्य का गठन हुए 20 साल हो गये. इस दौरान राज्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर के इंफ्रास्ट्रक्चर तो मिले, लेकिन यहां के खिलाड़ियों की अनदेखी होती रही. कुछ खिलाड़ी ऐसे रहे, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. इन सब के बीच साल 2020 राज्य के खिलाड़ियों के लिए सबसे अच्छा वर्ष रहा. इस साल पहली बार 24 खिलाड़ियों को जिला खेल पदाधिकारी (डीएसओ) की नौकरी दी गयी. इससे पहले यानी राज्य गठन के बाद खेल कोटे से सिर्फ पांच खिलाड़ियों को ही राज्य सरकार ने नौकरी दी थी. सभी पांचों खिलाड़ियों को नौकरी सिर्फ पुलिस विभाग में मिली है. अन्य किसी भी विभाग में किसी भी खिलाड़ी को नौकरी नहीं दी गयी थी.
झारखंड का खेल विभाग भी स्पोर्ट्स कोटा के तहत अपने विभाग में खिलाड़ियों को नौकरी देने में विफल रहा है. विभाग और सीसीएल के संयुक्त उपक्रम झारखंड स्टेट स्पोर्ट्स प्रोमोशन सोसाइटी (जेएसएसपीएस) में भी खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिल पायी है. इसके पीछे का मुख्य कारण स्पोर्ट्स पॉलिसी का लागू नहीं हो पाना भी रहा है.
राज्य में सबसे पहले 2007 में स्पोर्ट्स पॉलिसी बनी. इसके तहत सरकारी नौकरियों में मेडल प्राप्त खिलाड़ियों को दो प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गयी थी, लेकिन यह पॉलिसी सिर्फ कागजों पर सीमित रह गयी. इस वर्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नये सिरे से खेल नीति बनाने को कहा, जो अंतिम चरणों में है. इसके लागू होने से राज्य के खिलाड़ियों की मैपिंग कर उन्हें तराशा जायेगा. राज्य सरकार ओलिंपिक में झारखंड की उपस्थिति दर्ज कराने को लेकर महत्वाकांक्षी योजना तैयार कर रही है.
राज्य में कई शानदार और अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम हैं, लेकिन इनका उपयोग सिर्फ बड़े खेल आयोजनों के लिए ही होता है. राज्य के खिलाड़ियों के लिए इन स्टेडियमों के इस्तेमाल की कोई योजना नहीं है. खिलाड़ी ‘पे एंड प्ले’ योजना के तहत ही इन स्टेडियमों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
Posted By : Guru Swarup Mishra