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पहली बार रांची आ रहे हैं जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी, हरमू में होगा प्रवचन का आयोजन

Shankaracharya Swami in Ranchi : द्वारका शारद पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज पहली बार रांची आ रहे हैं.

By Dipali Kumari | March 9, 2025 1:52 PM
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Shankaracharya Swami in Ranchi | (रांची) : राजधानी में रह रहे जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज के श्रद्धालुओं के लिए बड़ी खुशखबरी. दरअसल द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज पहली बार रांची आ रहे हैं. हरमू रोड स्थित मारवाड़ी भवन में 20 मार्च 2025 को नागरिक अभिनंदन और प्रवचन का आयोजन किया जा रहा है. शंकराचार्य अभिनंदन कमेटी का गठन उद्योगपति विनय सरावगी के नेतृत्व में किया गया है.

गांव-गांव में धर्म संचार सभा कर रहे है महाराज

महाराज 15 मार्च तक विश्व कल्याण आश्रम मनोहरपुर चक्रधरपुर में रहेंगे. शंकराचार्य स्वामी धर्म संचार यात्रा के तहत गांव-गांव में धर्म संचार सभा कर रहे हैं. इसी क्रम में महाराज राजधानी रांची के हरमू में प्रवचन देंगे. कमेटी में मुख्य संयोजक विनय सरावगी, संयोजक मंडल में बसंत मित्तल, रवि शंकर शर्मा, ललित कुमार पोद्दार, सुरेश चंद्र अग्रवाल, विनोद कुमार जैन, अशोक पुरोहित, शिव शंकर माय मनोज बजाज, राजकुमार मारू, पवन शर्मा समेत अन्य लोग होंगे.

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जानिए कौन है जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी ?

द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज का जन्म मध्य प्रदेश के गोटेगांव के पास बरगी गांव में सन 1958 में हुआ था. वे परिवार में सबसे छोटे थे और बचपन में उनका नाम रमेश अवस्थी था. उनके पिता पं. विद्याधर अवस्थी एक प्रसिद्ध वैद्य और किसान थे. उनकी माता मानकुंवरबाई एक गृहिणी थीं. आठवीं कक्षा में उनका एक सहपाठी के साथ छोटा-सा झगड़ा हो गया था. इस झगड़े के बाद घर में डांट और मार खाने के दर से वे साइकिल से सीधे परमहंसी गंगा आश्रम पहुंच गए. जहां वह स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की शरण में आ गए और फिर उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़ दी. जिसके बाद आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर वह शंकराचार्य बन गए. 1970 में उन्होंने संस्कृत अध्ययन शुरू किया. धार्मिक शिक्षा के लिए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उन्हें बनारस भेजा. जहां उन्होंने करीब 8 साल तक वेद, पुराण और अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन किया. वर्ष 1990 में गुरु के आदेश पर वह द्वारका पहुंच गए.

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