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Exclusive : करप्शन के खिलाफ ED जांच नहीं करता, पढ़ें झारखंड HC के अधिवक्ता आनंद के इंटरव्यू की पहली कड़ी

आज की तारीख में जहां कहीं भी किसी को भ्रष्टाचार नजर आता है, वह न पुलिस के पास जाता है, न संबंधित विभाग या संस्थान के पास... सीधा सीबीआई या फिर ईडी से जांच की मांग करता है. मगर, साहब चौंकाने वाली बात तो हम आपको अब बताने जा रहे हैं.

रांची : एक वक्त था, जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों के होश ठिकाने आ जाते थे. खासकर, राजनेताओं और भ्रष्टाचारी अधिकारियों की तो नाक में दम हो जाती थी. संयुक्त बिहार के चारा घोटाला मामले में सीबीआई ने अपनी जो ताकत दिखाई, उसके बाद से तो देश में मानों सीबीआई जांच की मांग में बाढ़ आ गई. मगर, अब जरा हम लिखने में ठहर रहे हैं, तो आप पढ़ने में ठहरिए. सांस लीजिए, पानी पीजिए. साल 2019 के बाद भारत में सीबीआई से भी ऊपर की भी एक स्वायत्त संस्था अचानक चर्चा में आ गई और उसका नाम है प्रवर्तन निदेशालय. प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी. आज भारत के भ्रष्टाचारी अधिकारियों और राजनेताओं में जितना खौफ सीबीआई को लेकर नहीं है, उससे कहीं अधिक ईडी से है.

आज की तारीख में जहां कहीं भी किसी को भ्रष्टाचार नजर आता है, वह न पुलिस के पास जाता है, न संबंधित विभाग या संस्थान के पास… सीधा सीबीआई या फिर ईडी से जांच की मांग करता है. मगर, साहब चौंकाने वाली बात तो हम आपको अब बताने जा रहे हैं. भारत का जो आम नागरिक यह समझता है कि प्रवर्तन निदेशालय या ईडी भ्रष्टाचार पर वार कर रहा है, तो यह नागरिकों की सोच गलत है. ईडी का भी एक सीमित दायरा है और वह अपने दायरे के तहत ही जांच करता है.

यह बात दीगर है कि राजनेता उसके जांच के दायरे को अपने राजनीतिक नफा-नुकसान के तौर पर पेश करते हैं या फिर टीवी चैनल्स अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी कार्रवाई कहकर पेश करते हैं. लेकिन, आज हम आपके सामने वह तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं कि आखिर प्रवर्तन निदेशालय जिस प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत जांच शुरू करता है, वह कानून क्या है. यह कानून कब बना, इसकी जांच प्रक्रिया क्या है, इसमें संशोधन कब हुआ और प्रवर्तन निदेशालय या ईडी भारत के आम नागरिक को सीबीआई के मुकाबले कब से शक्तिशाली दिखने लगा. इन तमाम मसलों पर www.prabhatkhabar.com ने झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद से बातचीत की. पढ़िए मनी लॉन्ड्रिंग कानून के बारे में लिए गए साक्षात्कार की शब्दश: जानकारी… और हां, यह हम आपको पूरी एक सीरीज में पढ़ाएंगे. इंतजार करके पढ़िए, देश के कानून को जानने में मजा आएगा.

सवाल : पीएमएलए कानून है, वह क्या है, कब बना, क्यों बना और कैसे बना

जवाब : ये एक्ट जो आया, सो प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, यह 2002 में आया. और ये आया फॉर प्रोवाइडिंग फॉर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग. मनी लॉन्ड्रिंग को प्रिवेंट करने के लिए एंड प्रोस्फिकेशन ऑफ प्रोपर्टी. जो भी उस मनी लॉन्ड्रिंग के थ्रू प्रोसिड्स ऑफ क्राइम जेनरेट हुआ है, उसके कॉन्फिसकेशन के लिए और उससे संबंधित अन्य चीजों के लिए. ये एक्ट जो है, सो विभिन्न समय पर अमेंड हुआ. अमेंडमेंट हुआ 2005 से लेकर 2019 तक आया है, जो 1 अगस्त 2019 से प्रभावी है. मूलत: इसमें जो एक्ट है, वो पहले का एक्ट और जो अभी का एक्ट है, दोनों में अमेंडमेंट की वजह से इंटरप्रिटेशन का इश्यूज उठ रहा था. पुराने एक्ट में सर्टेन एंबिक्विटीज थीं, उन एंबिक्वीटीज को रिमूव किया गया और रिमूव करके जो फाइनली अमेंडमेंट लाया गया, सो 2019 में लाया गया.


ऑफेंस ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग होता क्या है

जो सेक्शन थ्री में डिफाइंड है, मनी लॉन्ड्रिंग कि नोइंगली किसी भी प्रसोस में डाइरेक्टली या इंडाइरेक्ट वे में आप अगर इंडजल्ट करते हैं, एसिस्ट करते हैं; विथ रिस्पेक्ट टू द क्राइम और उसको आप टेंटेड मनी को अनटेंटेंड मनी के रूप आप उसको प्रोजेक्ट करते हैं, तो इससे प्रोसिड्स ऑफ क्राइम जो होता है जेनरेट, उसको सेटल करने का प्रयास करते हैं, इससे मनी लॉन्ड्रिंग का ऑफेंस जो होता है, जेनरेट होता है. अब इसमें बार-बार वर्ड्स यूज किया गया है प्रोसिड्स ऑफ क्राइम, तो प्रोसिड्स ऑफ क्राइम क्या हुआ? एनी क्राइम कनेक्टेड विथ क्रिमिनल एक्टिविटी. कौन सा क्रिमिनल एक्टिविटी, तो जो एक्ट में शिड्यूल दिया हुआ है, उससे संबंधित ऑफेंस होना चाहिए. अब कनवर्सली होता क्या है?

प्रोसिड्स ऑफ क्राइम क्या है

प्रोसिड्स ऑफ क्राइम इस तरह से समझे कि क्रिमिनल एक्टिविटी एक किया गया, उसमें एक गाड़ी से क्रिमिनल एक्टिविटी की गई, तो वो गाड़ी प्रोसिड्स ऑफ क्राइम नहीं बनी, उस गाड़ी के माध्यम से जो ऑफेंस कमिट किया गया, ऑफेंस से जो अमाउंट जेनरेट किया गया, वो अमाउंट जेनरेट ऑफ क्राइम होता है. अब उसको करने के फॉर्म में असिस्टेंट हुआ, जानकारी मिली, उस पैसे को हम अपनी इकोनॉमी में ला रहे हैं, बाइ-मेकिंग ऑफ इंटरनल वन, वह ऑफेंस कमिट हो गया. यही ऑफेंस है.

सवाल : ईडी 2019 के बाद से तेजी के साथ राजनेताओं से पूछताछ कर रहा है?

जवाब : मैं कोई राजनीति व्यक्ति तो हूं नहीं और किसी भी प्रकार की राजनीति से कमेंट करना या राजनीति एक्टिविटी पर ब्ला-ब्ला पालिटिशियन इन्वॉल्ड हैं या नहीं हैं, उनके विरुद्ध जांच हो रहा है, सही हो रहा है, गलत हो रहा है, बीईंग ए लॉयर कि मैं उन पर कोई कमेंट कर सकूं, लेकिन ये कहने के बाद भी इतना जरूर कहा जा सकता है कि एक कोर्ट हो, लॉयर हों या जजेस हों, हम लोगों का काम ये होता है कि इंटरप्रेट करना लॉ को, एज इट इज जो स्टैच्यूट बुक में एक्जिट करता है.

ये हमारा कमिटमेंट है यूनाइटेड नेशंस से

अब आज की डेट में अमेंडेंटमेंट हुआ कानून में, पहले के कानून में एम्बिक्विटी था, लूप होल्स थे, उसी को गैप करने के लिए, गैप को मिट करने के लिए… और ऐसा नहीं है कि भारत सरकार जो कर रही है या पर्टिकुलरली पर्टिकुलर कोई सरकार कर रही है. ये हमारा कमिटमेंट है टू द यूनाइटेड नेशंस. एफईटीएफ वगैरह जो एजेंसीज हैं, ये सारा इंटरनेशन लेवल पर चल रहा एफर्ट कि कैसे मनी लॉन्ड्रिंग इंटरनेशनल लेवल पर चाहे, वह टेररिज्म से संबंधित हो, चाहे वह नारकोटिक्स से संबंधित हो और पैरेलल इकोनॉमी में रन कर रहा हो, उसे कैसे कंट्रोल किया जाए… तो ये हमारा कमिटमेंट वहां से स्टार्ट होता है. इसी के लिए एक्ट बना और एक्ट अंडरवेंट अमेंडमेंट, एक्ट संशोधन हुआ, क्योंकि वहां पर कुछ न कुछ खामियां थीं.

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कानून में आखिरी बार कब हुआ संशोधन

अब खामियां दूर होने के बाद अल्टीमेटली एक संशोधन आया 2019 में. अब 2019 में जो अमेंडमेंट आया, तो हमलोगों का पहले का सेफगार्ड्स अवेलेबल हैं सीआरपीसी के तहत या अन्य लॉ के तहत, अब वो सब सेफगार्ड्स उस तरीके से इसमें अवेलेबल नहीं है. इसको चैलेंज किया गया डिफरेंस फोरम. अल्टीमेटली सारा मैटर चला गया सुप्रीम कोर्ट के पास.

नोट : इस साक्षात्कार की ये पहली कड़ी है. दूसरी कड़ी आपको जल्द ही मिलेगी, तब तक थोड़ा इंतजार कीजिए…

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