साल 2060 तक झारखंड के 33 फीसदी हिस्से में नहीं होगा पेयजल नसीब, ऐसे हुआ खुलासा

टीम ने अध्ययन में रिप्रेजेंटेटिव कंस्ट्रेशन पाथवे (आरसीपी) और शेयर्ड सोशियो इकोनॉमिक पाथवे (एसएसपी) को आधार बनाया है. इसके आधार पर बारिश, भूमि की नमी और जल संग्रह की स्थिति का आकलन किया गया.

By Prabhat Khabar | February 14, 2023 6:50 AM

रांची, मनोज सिंह: वर्ष 2060 तक झारखंड का 33 फीसदी हिस्से के ‘अत्यधिक ड्राइ जोन’ बन जाने की आंशका है. यानी इन इलाकों में भू-जलस्तर बहुत नीचे जा सकता है. साथ ही बारिश भी कम हो सकती है. ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे’ ने देश में मौसम के बदलाव से पड़नेवाले प्रभाव पर अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उक्त आशंका जतायी गयी है.

आइआइटी बॉम्बे की टीम ने देश के विभिन्न राज्यों (झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा भी शामिल) पर मौसम के पड़नेवाले प्रभाव का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया है. टीम ने वर्ष 1980 से वर्ष 2015 तक के मौसम के आंकड़ों का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की है. इसमें आशंका जतायी गयी है कि उत्तर-पश्चिमी राज्य के कई जिले अत्यधिक सूखे वाले जोन में जा सकते हैं.

इसमें खासकर झारखंड सूखे के मामले में हाई रिस्क (उच्च जोखिम) से वेरी हाई रिस्क (बहुत अधिक जोखिम) वाले जोन में चला जायेगा. टीम ने 2060 और 2090 को आधार वर्ष माना है. कहा है कि 2060 तक झारखंड की 33 फीसदी जमीन सूखे के मामले में हाई से वेरी हाई रिस्क जोन में चली जायेगी.

आइआइटी बाम्बे ने जारी की रिपोर्ट

राज्य के बड़े हिस्से के ‘अत्यधिक ड्राइ जोन’ बनने की आशंका जतायी

आइआइटी बॉम्बे की टीम ने देश में मौसम के बदलाव से पड़नेवाले प्रभाव का किया वैज्ञानिक अध्ययन

भूमि की नमी और जल संग्रह के साथ सामाजिक बदलाव को आधार बनाया

टीम ने अध्ययन में रिप्रेजेंटेटिव कंस्ट्रेशन पाथवे (आरसीपी) और शेयर्ड सोशियो इकोनॉमिक पाथवे (एसएसपी) को आधार बनाया है. इसके आधार पर बारिश, भूमि की नमी और जल संग्रह की स्थिति का आकलन किया गया. इससे लिए जो वैज्ञानिक आधार बनाया गया, वह पूर्व में अमेरिका और चीन में भी अपनाया गया था. इसके आधार पर सामाजिक बदलाव को भी अध्ययन में शामिल किया गया. इसमें पूर्व में काटे गये पेड़ और कृषि में हुए बदलाव को भी रिपोर्ट में शामिल किया गया. पेड़ के काटे जाने से कार्बन उत्सर्जन का भी आकलन किया गया.

झारखंड में घट रहे हैं घने जंगल अनियमित हो रही बारिश

झारखंड में जंगल तो बढ़ रहे हैं, लेकिन घने जंगल कम हो रहे हैं. घने जंगल कम होने से पर्यावरण पर असर पड़ रहा है. भूमि का क्षरण भी हो रहा है. इससे जमीन की गुणवत्ता को नुकसान हो रहा है. इसी तरह झारखंड में कभी 1400 मिमी तक बारिश होती थी. अब 1200 से 1300 मिमी बारिश हो रही है. इसके बावजूद झारखंड के कई इलाकों में पानी की कमी है. शहरी इलाकों में एक-एक हजार फीट में भी पानी नहीं मिल रही है. ऐसा झारखंड में पठारी भूभाग होने के कारण हो रहा है. यहां जल संरक्षण के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा है.

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