आजादी का अमृत महोत्सव: श्री बाबू ने वकालत छोड़ गांधी जी के साथ आंदोलन में लिया था हिस्सा

बिहार केसरी के नाम से प्रसिद्ध होने वाले स्वतंत्रता सेनानी श्री कृष्ण सिंह बिहार की शान थे जिन्होंने बिहार के विकास के लिए कई महान कार्य किए कई कारखाने खुलवाए तो श्री कृष्ण सिंह के बारे में उनके जीवन के बारे में राजनीतिक जीवन के बारे में इस लेख में पूरी जानकारी मिलेगी.

By Prabhat Khabar | July 29, 2022 10:43 AM

Jharkhand News: बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्तूबर, 1887 को उनके ननिहाल नवादा जिले के खनवा गांव में हुआ था. उनका पैतृक गांव शेखपुरा जिले के माउर में था. बचपन में ही बीमारी के कारण उनकी मां का निधन हो गया. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही स्कूल से पूरी की. कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई पूरी की. वकालत की पढ़ाई करने पटना विश्वविद्यालय आ गये. वहां से लॉ की डिग्री ली और अपने जिले में प्रैक्टिस करने लगे.

वकालत छोड़ने से स्वतंत्र का प्रण लेना तक

1916 में पहली बार उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई, तो श्रीकृष्ण उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए. 1920 में गांधी जी से उनकी दोबारा भेंट हुई. उसके बाद ही उन्होंने प्रण ले लिया कि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए वह जी जान लगा देंगे. 1921 में उन्होंने वकालत छोड़ी और महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. वर्ष 1927 में श्री कृष्ण सिंह कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गये. बाद में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बनाये गये.

1929 में वे बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव बने. जब गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून भंग करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन कर दांडी मार्च निकाला, तो श्री बाबू भी गांधी जी की तर्ज पर आंदोलन में सहयोग देने के लिए मुंगेर से गंगा नदी पार कर गढ़पुरा के दुर्गा गाछी तक 100 किलोमीटर लंबी पदयात्रा की.

नमक कानून को भंग करने के आरोप में गये जेल

श्रीकृष्ण सिंह ने भी गांधी जी की तरह अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून को भंग किया. अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. अंग्रेजों ने उन्हें काफी यातनाएं दीं. बावजूद इसके, वे अपने संकल्प पर डटे रहे. अंग्रेजों के जुल्म को सहते रहे और भारत को आजाद कराने के लिए अपना महानतम कार्य करते रहे. इससे प्रभावित हो कर महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार के प्रथम सत्याग्रही कह कर सम्मानित किया. इसके बाद श्रीकृष्ण सिंह ने गांधी के साथ साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी अपनी अहम भूमिका निभायी.

आजादी के बाद भी राष्ट्र एवं जन सेवा के लिए समर्पित था श्री बाबू का जीवन

श्री कृष्ण सिंह का संपूर्ण जीवन राष्ट्र एवं जन सेवा के लिए समर्पित था. 1947 में जब देश आजाद हुआ, तो वे बिहार के पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुने गये. वह वर्ष 1946 से 1961 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनके सहयोगी डॉ अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में आजीवन साथ रहे. श्रीकृष्ण सिंह के महज 10 साल के कार्यकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला और सामाजिक क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य हुए.

आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना-सिंदरी और बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचइसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल- राजेंद्र पुल, कोसी प्रोजेक्ट, पूसा और सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर और रांची विश्वविद्यालय आदि की स्थापना हुई. इसलिए उन्हें आधुनिक बिहार का निर्माता कहा जाता है. वे ईमानदारी और सादगी के मिसाल थे. 31 जनवरी, 1961 को इस महान स्वतंत्रता सेनानी का निधन हो गया.

Next Article

Exit mobile version