रांची, अभिषेक रॉय: ‘गैर वैज्ञानिक’ तरीके से हो रहे शहरी विकास से भूमिगत जलस्रोत नष्ट हो रहे हैं. नतीजतन, भूमिगत जल खत्म होने लगा है और कई इलाके ड्राइ जोन बनते जा रहे हैं. लोगों को इस सामाजिक समस्या से निजात दिलाने की अवधारणा के साथ ही ‘एक्वालाइन भुंगरू’ नामक स्टार्टअप शुरू किया गया है.
स्टार्टअप के फाउंडर मेंबर रांची के बरियातू निवासी जियोलॉजिस्ट राजा बाक्ची और अरगोड़ा निवासी रथीन भद्रा ने मई 2019 में राज्य सरकार के सहयोग से सुकुरहुटू में इसका सफल परीक्षण किया. इलाके में 1000 फीट तक की गयी डीप बोरिंग से जहां पानी नहीं आ रहा था, वहां तीन चरण में एक्वालाइन भुंगरू स्थापित किया गया. इस क्रम में पांच जगहों पर जियोलॉजिकल सर्वे के जरिये जमीन की प्यासी परत (हंग्री स्टार्टा) की तलाश की गयी.
इसके बाद 10x10x10 फीट का गड्ढा खोद कर अलग-अलग परतों का फिल्टर बेड तैयार किया. यह फिल्टर बेड आसपास की जमीन में नमी के स्तर को बनाये रखने, वर्षा जल को संचित करने और दूषित पदार्थों को भू-जल में मिलने से रोकने में उपयोगी रहा. छह माह बाद हुए सर्वे में पता चला कि इलाके की 20 एकड़ जमीन का भू-जलस्तर सामान्य हो गया है.
कोयल को देख शुरू किया शोध :
जियोलॉजिस्ट राजा बाक्ची मूल रूप से डालटनगंज के रहनेवाले है. उन्होंने बताया कि जियोलॉजी का अध्ययन करने के बाद उन्होंने कोयल नदी के घटते जलस्तर को देख शोध शुरू किया. इस क्रम में राज्य की मिट्टी का भी अध्ययन किया. पता चला कि पठारी राज्य होने के कारण भूमिगत जमीन ग्रेनाइट के स्तरों में बटी हुई है, जहां हंग्री स्टार्टा का विभाजन होता रहता है. समय के साथ होनेवाले निर्माण कार्य के क्रम में यह सूक्ष्म छिद्र भरे जा रहे हैं, जिससे जमीन की नमी खत्म हो रही है और इलाके में पानी की समस्या हो रही हैं.
महाराष्ट्र में भी पूरे किये प्रोजेक्ट :
एक्वालाइन भुंगरू ने सुकुरहुटू मॉडल की तर्ज पर रांची के मोरहाबादी स्थित आदिवासी हॉस्टल और हरमू के राजकीय नेत्रहीन विद्यालय का जलस्तर नियंत्रित किया. इसके बाद गोड्डा स्थित पांच कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों के इलाकों में पानी की समस्या दूर की.
वहीं, दुमका के तीन गांव -
रानी पहाड़ी, बांसबोना और डाढो में पानी की समस्या दूर की. जहां के ग्रामीण पानी लाने के लिए दो किमी का सफर तय करते थे. तोरपा के रूरल डवलपमेंट सेंटर फॉर वीमेन में काम करने के बाद नीति आयोग ने ‘बेस्ट वाटर कंजर्वेशन प्रोजेक्ट ऑफ इंडिया’ में इस स्टार्टअप को शामिल किया.
वहीं, स्टार्टअप को फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन, यूएन की पत्रिका भी जगह दी गयी है. इससे इंदौर और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में काम करने का मौका मिला. सितंबर 2022 में गृह और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वाटर कंजर्वेशन पर आयोजित प्रतियोगिता में स्टार्टअप को 20 लाख रुपये का ग्रांट मिला है. अब यह स्टार्टअप डीप ग्राउंड वाटर को सामान्य करने की टेक्नोलॉजी विकसित कर रहा है.
तीन स्तर पर होता है काम
1. प्रभावित इलाके में घूम-घूम कर सर्वे किया जाता है और भू-जलस्तर की जांच की जाती है
2. सैटेलाइट डाटा के जरिये बीते पांच से 10 वर्ष तक का भू-जलस्तर का रिकॉर्ड देखा जाता है
3. जहां भू-जलस्तर अधिकतम होता है, वहां हंग्री स्टार्टा चिह्नित कर एक्वालाइन भुंगरू तैयार किया जाता है
4. अब डीप ग्राउंड वाटर को सामान्य करने की टेक्नोलॉजी विकसित कर रही टीम