रांची : राष्ट्रीयकृत बैंकों के खातों में न्यूनतम बैलेंस रखने के नियम से सरकारी स्कूलों के बच्चे प्रभावित होने लगे हैं. इसका असर सीधे बच्चों के बचत खातों पर पड़ रहा है. स्कूल संचालन समिति द्वारा शून्य बैलेंस पर खाते खुलवाये गये हैं. अब खातों से की जा रही कटौती से परेशानी बढ़ने लगी है.
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न्यूनतम बैलेंस की शर्त से 2.38 लाख बच्चों के खातों पर असर
रांची : राष्ट्रीयकृत बैंकों के खातों में न्यूनतम बैलेंस रखने के नियम से सरकारी स्कूलों के बच्चे प्रभावित होने लगे हैं. इसका असर सीधे बच्चों के बचत खातों पर पड़ रहा है. स्कूल संचालन समिति द्वारा शून्य बैलेंस पर खाते खुलवाये गये हैं. अब खातों से की जा रही कटौती से परेशानी बढ़ने लगी है. […]
इसकी शिकायत अब जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसइ) शिवेंद्र कुमार को मिलनी शुरू हो गयी है. डीएसइ ने कहा है कि राजधानी के सरकारी स्कूलों में 2.38 लाख बच्चों के खाते विभिन्न बैंकों में हैं. इस वर्ष 50 से 60 हजार और नये खाते खुलवाये जायेंगे. आठ मई को होनेवाली बैठक में इस मुद्दे की गंभीरता को उठाया जायेगा. सरकार के स्तर पर पूरे मामले को लाना जरूरी है.
क्या है मामला: राष्ट्रीयकृत बैंकों ने एक अप्रैल से सभी खाता धारकों के लिए न्यूनतम बैलेंस की सीमा तय कर दी है. स्टेट बैंक ने अपने खाताधारकों के लिए पांच हजार, तीन हजार और एक हजार रुपये का मासिक बैलेंस होना अनिवार्य कर दिया है. वहीं अन्य बैंकों ने भी एक हजार रुपये तक न्यूनतम मासिक बैलेंस रखना जरूरी कर दिया है. स्कूली बच्चों के खाते में उनकी छात्रवृति, रख-रखाव, ड्रेस और साइकिल खरीद की राशि प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिये की जाती है.
कुछ स्कूलों से यह शिकायत मिल रही है कि बैंकों द्वारा न्यूनतम राशि नहीं रखने पर 120 रुपये महीने की दर से कटौती की जा रही है. इससे ड्रेस की खरीद, छात्रवृत्ति का पैसा काफी कम हो जा रहा है.
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