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सरकार के पास आदमी नहीं होने से खुदाई बंद
तीन धर्मों का संगम स्थल है इटखोरी, खुदाई होने पर दुनिया नयी चीजों से परिचित होगी पुरातत्व निदेशालय भी मानता है कि सबसे पहले यहीं खुदाई होनी चाहिए रांची : चतरा जिले के इटखोरी का ऐतिहासिक महत्व है. यह तीन धर्मों से जुड़ी सभ्यता-संस्कृति का संगम है. हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म का इतिहास यहां […]
तीन धर्मों का संगम स्थल है इटखोरी, खुदाई होने पर दुनिया नयी चीजों से परिचित होगी
पुरातत्व निदेशालय भी मानता है कि सबसे पहले यहीं खुदाई होनी चाहिए
रांची : चतरा जिले के इटखोरी का ऐतिहासिक महत्व है. यह तीन धर्मों से जुड़ी सभ्यता-संस्कृति का संगम है. हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म का इतिहास यहां मौजूद है. राज्य सरकार भी मानती है कि यह अनोखी व महत्वपूर्ण जगह है. कहा जाता है गौतम बुद्ध ने यहां ध्यान (मेडिटेशन) किया था.
पुरातत्व निदेशालय भी मानता है कि सबसे पहले यहीं पुरातात्विक खुदाई होनी चाहिए, पर निदेशालय में पुरातत्व विशेषज्ञ व अन्य कर्मियों की कमी है. पुरातत्व की समझ रखनेवाले उप निदेशक (पुरातत्व) डॉ अमिताभ कुमार अकेले हैं. इधर, फील्ड में सहयोग करनेवाले चार तकनीकी सहायक का पद रिक्त है.
वहीं तकनीकी अधिकारी के भी दो पद रिक्त हैं. तीन क्लर्क के पद भी रिक्त हैं. करीब 10 वर्षों से यही स्थिति बनी हुई है. यही वजह है कि इटखोरी में खुदाई का काम शुरू नहीं हो रहा है. दरअसल इटखोरी में बौद्ध धर्म की विभिन्न गतिविधियों के निशान मौजूद हैं. यहां का प्रसिद्ध भद्रकाली मंदिर नौवीं सदी में बना था. वहीं जैनियों के 10वें तीर्थांकर शीतलनाथ का जन्म स्थल भी यहीं बताया जाता है. इतिहास के जानकार, बौद्ध भिक्षुअों तथा स्थानीय लोग मानते हैं कि अगर इटखोरी की वैज्ञानिक तरीके से खुदाई हुई, तो दुनिया नयी चीजों से परिचित होगी. वहीं इटखोरी को भी अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगा.
सारिदकेल की खुदाई 10 वर्षों से बंद : उधर, खूंटी जिले के सारिदकेल में भी गत 10 वर्षों से खुदाई का काम बंद है. यहां दो चरणों में खुदाई हो चुकी है. यहां नगर की चहारदीवारी की ईंटों की संरचना व इसके प्रवेश द्वार के चिह्न मिले हैं.
स्थानीय लोगों के विरोध के कारण अॉर्कियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इंडिया (एएसआइ) ने यहां खुदाई बंद कर दी. न तो राज्य सरकार की इसमें रुचि है अौर न ही स्थानीय विधायक की.
विशेषज्ञों के अनुसार, सारिदकेल में प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हैं. यह जगह खूंटी से तमाड़ के रास्ते पर तजना नदी के किनारे स्थित है. पुरातत्वविदों के अनुसार, सारिदकेल की नगर सभ्यता प्रथम सदी की नगर सभ्यता हो सकती है. एएसआइ के पुरातत्वविदों को यहां दुर्लभ जानकारी मिलने की उम्मीद है.
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