कॉलेजों की मॉनिटरिंग, किसी भी सूरत में अॉफलाइन अावेदन या विभिन्न प्रमाण पत्र स्वीकृत न करने तथा मुख्यालय स्तर से जिलों की हो रही मॉनिटरिंग के कारण छात्रवृत्ति के करीब 15536 गलत या फरजी अावेदन पकड़ में अाये तथा उन्हें खारिज (रिजेक्ट) कर दिया गया. इससे पहले विभिन्न स्तरों पर 26564 विद्यार्थियों के आवेदनों को पहले ही अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
इस तरह कुल 42100 आवेदन अयोग्य पाये गये या उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया. गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए दी जा रही इस पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए एससी-एसटी व अोबीसी विद्यार्थियों के करीब 4.18 लाख आवेदन आये थे. इनमें से 3.84 लाख राज्य में ही स्थित विभिन्न तकनीकी या उच्च शिक्षण संस्थानों के तथा करीब 34 हजार राज्य के बाहर पढ़ रहे विद्यार्थियों के थे. दरअसल कल्याण विभाग की पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की खबर शुरुआत से ही आती रही है. एक सरकारी वेटनरी डॉक्टर की पत्नी को भी गत दो वर्ष छात्रवृत्ति मिलने, इस वर्ष धनबाद के जिस संस्थान में पढ़ाई ही शुरू नहीं हुई, वहां से भी छात्रवृत्ति का आवेदन अाने तथा गढ़वा के करीब एक हजार विद्यार्थियों को उत्तराखंड के एक ही विवि में पढ़ाई के एवज में आवेदन देने जैसे उदाहरणों से यह बात साबित होती है. विभागीय अधिकारियों के अनुसार पहले छात्रवृत्ति के लिए आवेदन दे देने को ही छात्रवृत्ति मिल जाने की गारंटी माना जाता था. शहर के एक प्रतिष्ठित संस्थान में अध्ययनरत दारोगा के एक बेटे ने भी विभाग से लगातार छात्रवृत्ति ली थी.
जबकि इसके लिए अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा अन्य पिछड़े वर्ग (अोबीसी) से संबद्ध वैसे गरीब परिवार के बच्चे ही अर्हता रखते हैं, जिनके परिवार की कुल सालाना अाय 2.5 लाख से कम है. ऐसे में कल्याण विभाग के अधिकारियों का दावा है कि ज्यादा सतर्क होकर तथा छात्रवृत्ति की अॉनलाइन प्रक्रिया के कारण सरकार को करोड़ों रुपये की बचत हुई है, जो गलत या फरजी आवेदकों को चिह्नित न कर पाने से खर्च होती.