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देश के 50 टाइगर प्रोजेक्ट से हटाये जायेंगे लाखों लोग, पलामू टाइगर प्रोजेक्ट से हटेंगे 700 परिवार

एनटीसीए का आदेश. टाइगर रिजर्व एरिया में नहीं लागू होगा वन अधिकार कानून सुनील चौधरी रांची : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार (एनटीसीए) ने राज्यों को बाघ अभ्यारण्य में रहनेवाले आदिवासियों व अन्य लोगों के सभी अधिकार निलंबित करने के आदेश दिये हैं. केंद्र सरकार के इस फैसले से देश भर में लाखों आदिवासी परिवार प्रभावित […]

एनटीसीए का आदेश. टाइगर रिजर्व एरिया में नहीं लागू होगा वन अधिकार कानून
सुनील चौधरी
रांची : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार (एनटीसीए) ने राज्यों को बाघ अभ्यारण्य में रहनेवाले आदिवासियों व अन्य लोगों के सभी अधिकार निलंबित करने के आदेश दिये हैं. केंद्र सरकार के इस फैसले से देश भर में लाखों आदिवासी परिवार प्रभावित होंगे. अब वन विभाग के समक्ष इन्हें पुनर्वासित करने का संकट है.
28 मार्च 2017 को ही एनटीसीए के असिस्टेंट इंस्पेक्टर जेनरल अॉफ फॉरेस्ट डॉ वैभव सी माथुर ने 18 राज्यों में स्थित सभी 50 टाइगर रेंज के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन को पत्र भेजा है. इसमें लिखा कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स में किसी अन्य को रहने नहीं दिया जा सकता. यानी वन अधिकार कानून 2006 इस क्षेत्र में प्रभावी नहीं होगा.
टाइगर प्रोजेक्ट के कोर एरिया में बसे सभी लोगों को हटा कर अन्य जगहों पर बसाया जाये, ताकि बाघों के संरक्षण की दिशा में काम किया जा सके. एनटीसीए ने स्पष्ट कर दिया है कि टाइगर प्रोजेक्ट एरिया में वन अधिकार कानून लागू नहीं होता है. यानी जिन लोगों को वन अधिकार अधिनियम से पट्टा मिल चुका है, अब उन्हें भी वहां से हटना होगा.
पलामू टाइगर प्रोजेक्ट से हटाये जायेंगे 700 परिवार
बेतला स्थित पलामू टाइगर रिजर्व एरिया के आठ गांव चिह्नित किये गये हैं. यहां से लोगों को हटा कर अन्यत्र बसाया जायेगा. इन गांवों में करीब 700 परिवार हैं, जिन्हें विस्थापित होना पड़ेगा. इनमें आधे से अधिक लोग जनजातीय व आदिम जनजाति समुदाय के हैं. ज्यादातर लोग उरांव जनजाति और कोरबा पड़ैया आदिम जनजाति के हैं. कुछ सामान्य जाति के भी लोग हैं.
वन विभाग के सूत्रों ने बताया कि ये परिवार लंबे समय से वहां रह रहे हैं. अब जबकि उन्हें वन अधिकार कानून के तहत वैधानिक रूप से रहने के लिए पट्टा भी दे दिया गया है, ऐसे में अब दूसरी जगह बसाना थोड़ी मुश्किल होगी. बेतला व आसपास का इलाका नक्सल प्रभावित भी है. अभी वन विभाग कोई कदम उठाता है, तो नक्सली इसका फायदा उठाना चाहेंगे.
वन अधिकार कानून 2006 प्रभावी नहीं
वन अधिकार कानून 2006 कहता है कि वन क्षेत्र में निवास करनेवाले सभी लोगों (जनजातीय समेत) का उस क्षेत्र में रहने का अधिकार है. वे वहां के लघु वनोत्पाद का जीविकोपार्जन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. एनटीसीए इस अधिकार को चुनौती दे रहा है. साफ कहा जा रहा है कि टाइगर रिजर्व एरिया में वन अधिकार कानून नहीं लागू हो सकता.
एक परिवार को मिलेगा 10 लाख रुपये का मुआवजा
पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ एलआर सिंह ने बताया कि यह सही है कि क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स वन अधिकार कानून प्रभावी नहीं होता. एनटीसीए के गाइडलाइन में इसका स्पष्ट उल्लेख है. इसके बावजूद कई जगह पर वन अधिकार का पट्टा दे दिया गया है. सरकार इन्हें अन्य जगह बसाने के लिए जमीन भी देगी. भारत सरकार से पुनर्वासित करने के लिए एक-एक परिवार के लिए मुआवजा भी निर्धारित किया गया है. 18 वर्ष से अधिक के वयस्क को एक परिवार माना गया है. यानी एक परिवार को लगभग 10 लाख रुपये बतौर मुआवजा दिया जायेगा.
प्रधानमंत्री इस असंवैधानिक आदेश को वापस ले : वृंदा करात
सीपीआइ (एम) की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने 11 अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर एनटीसीए के आदेश को अवैध करार दिया है. उन्होंने पीएम से तत्काल इस अंसवैधानिक आदेश को रद्द करने की मांग की है. उन्होंने लिखा है कि वन अधिकार कानून 2006 के प्रावधानों के तहत एनटीसीए का यह आदेश असंवैधानिक है. क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स के नाम पर आदिवासियों के अधिकारों को नहीं छीना जा सकता है.
– ग्रामीणों से बातचीत चल रही है. प्रभावित कुछ गांवों के लोगों को मध्य प्रदेश में बनायी गयी पुनर्वासित कॉलोनी में लोग कैसे रहते हैं, यह दिखाया भी गया था. लोगों ने इसे पसंद भी किया है. हालांकि, अभी तक किसी को हटाने का प्रयास नहीं किया गया है. इसमें ज्यादा जोर-जबरदस्ती नहीं की जा सकती. उम्मीद है कि लोग स्वेच्छा से ही अन्यत्र बसने के लिए राजी हो जायेंगे.
-एमपी सिंह, परियोजना निदेशक,पलामू टाइगर रिजर्व परियोजना
18 राज्यों में कुल 50 टाइगर प्रोजेक्ट
राज्य प्रोजेक्ट
असम 03
अरुणाचल 02
आंध्र प्रदेश 01
बिहार 01
छत्तीसगढ़ 04
झारखंड 01
कर्नाटक 05
केरल 02
मध्य प्रदेश 06
महाराष्ट्र 06
मिजोरम 01
ओड़िशा 02
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