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10 साल में हाथियों ने 589 लोगों को मार डाला

रांची: झारखंड के कई जिलों में हाथी-आदमी का संघर्ष होता है. झारखंड में पिछले 10 साल में हाथियों ने 589 लोगों काे मार डाला. यानी हर साल औसतन 60 लोगों की मौत हाथियों के हमले से हो रही है. पूरे देश में हाथियों की संख्या के आधार पर झारखंड में लोगों की मौत सबसे अधिक […]

रांची: झारखंड के कई जिलों में हाथी-आदमी का संघर्ष होता है. झारखंड में पिछले 10 साल में हाथियों ने 589 लोगों काे मार डाला. यानी हर साल औसतन 60 लोगों की मौत हाथियों के हमले से हो रही है. पूरे देश में हाथियों की संख्या के आधार पर झारखंड में लोगों की मौत सबसे अधिक होती है.
झारखंड में राजधानी सहित कई जिलों में हाथियों का आतंक काफी है. यहां हाथी लोगों के घरों में घुसकर काफी नुकसान पहुंचाते हैं. इधर, हाथियों के हमले से मौत के मामले में राज्य सरकार अब तक करीब आठ करोड़ रुपये मुआवजा के रूप में बांट चुकी है. वहीं, करीब 20 करोड़ रुपये फसलों की क्षति के लिए बांटी जा चुकी है. पिछले दस साल में फसलों को नुकसान पहुंचाने की करीब 3029 घटनाएं हो चुकी हैं. विभाग 18 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति की मौत पर 2.50 लाख रुपये मुआवजा देता है. 18 साल से कम उम्र की व्यक्ति की मौत पर 1.50 लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान है.
कुछ नहीं कर सकी कमेटी
वन विभाग ने वन अधिकारी दिनेश कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी थी, जिसका काम इंसानों और जानवरों के बीच होनेवाले संघर्ष का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करना था. इसमें घटना का अध्ययन, भौतिक निरीक्षण, कारण और इसके समाधान पर भी रिपोर्ट देनी थी. कमेटी की एक-दो बैठक हुई. इसके बाद कोई काम नहीं हो पाया. कमेटी में वन विभाग के कई अधिकारी शामिल थे.
क्या कहते हैं अधिकारी
राज्य मुख्य वन्य प्रतिपालक लाल रत्नाकर सिंह कहते हैं कि हाथियों से फसल को हो रहे नुकसान और लोगों की मौत रोकने के लिए आधुनिक तकनीकी इस्तेमाल करने का प्रयास हो रहा है. मोबाइल एप के जरिये हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखने की कोशिश हो रही है. यह प्रयोग के तौर पर हो रहा है. इसके सफल परिणाम देखने को मिल रहे हैं. इसके व्यापक प्रचार-प्रसार से और फायदा होंगे. लोगों को पहले हाथियों से होने वाले नुकसान की जानकारी मिल सकेगी.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
वन्य प्राणी विशेषज्ञ के डॉ आरके सिंह बताते हैं कि झारखंड में मूल रूप से हाथियों से तीन हैबीटेट थे. तीनों को नष्ट करने की कोशिश की गयी है. इस कारण हाथी सड़कों पर आ रहे हैं. इसको रोकने के लिए विभाग के पास स्किल मैनपावर नहीं है. यहां इस कारण डीएफओ हाथियों को केवल अपने क्षेत्र से खदेड़ना चाहते हैं. ऐसा करने के क्रम में प्रीवेंशन ऑफ एनीमल क्रुलिटी एक्ट का भी उल्लंघन करते हैं. जब तक पड़ोसी राज्य मिलकर एक एक्शन प्लान नहीं बनायेंगे, परेशानी होती रहेगी.
वर्षवार मौत व मुआवजा वितरण की स्थिति
वर्ष मौत मुआवजा (लाख रुपये)
2007-08 64 61.93
2008-09 63 56.17
2009-10 54 53.93
2010-11 69 67.2
2011-12 62 67.2
2012-13 60 91.17
2013-14 56 109.28
2014-15 53 107.5
2015-16 66 184.9
2016-17 42 –(अब तक)

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