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टिकाऊ विकास के लिए कोयला के विकल्प पर करना होगा काम
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार शुरू. केंद्रीय कोयला सचिव सुशील कुमार ने कहा रांची : कोल बेड मिथेन (सीबीएम) तथा कोल माइन मिथेन (सीएमएम) पर्यावरण में हो रहे बदलाव व प्रदूषण के बीच टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है. ऊर्जा के लिए कोयला उत्पादन व इसके उपयोग में वृद्धि सीधे तौर पर प्रदूषण की वृद्धि भी है. इससे […]
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार शुरू. केंद्रीय कोयला सचिव सुशील कुमार ने कहा
रांची : कोल बेड मिथेन (सीबीएम) तथा कोल माइन मिथेन (सीएमएम) पर्यावरण में हो रहे बदलाव व प्रदूषण के बीच टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है. ऊर्जा के लिए कोयला उत्पादन व इसके उपयोग में वृद्धि सीधे तौर पर प्रदूषण की वृद्धि भी है. इससे निबटने के लिए हमें कोयला से जुड़े चार विकल्पों पर काम करना होगा.
पहला सीबीएम व सीएमएम का उत्पादन, दूसरा कोयले का गैसीफिकेशन (कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइअॉक्साइड, हाइड्रोजन तथा मिथेन सहित भाप या हवा का ज्वलनशील मिश्रण बनाना), तीसरा कोयले से मेथेनॉल (मिथाइल अल्कोहल) बनाना तथा चौथा कोयला से तरल ईंधन तथा पेट्रोकेमिकल का उत्पादन करना. उक्त बातें केंद्रीय कोयला सचिव सुशील कुमार ने कही. वह होटल रेडिसन ब्लू में मिथेन गैस उत्पादन के बेहतर तरीके पर आयोजित दो दिवसीय (9-10 मार्च) अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उदघाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि सीएमपीडीआइ, यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक कमीशन फॉर यूरोप (यूएनइसीइ) तथा इनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी, यूएस (यूएसइपीए) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला का विषय कोयला खदानों में मिथेन गैस उत्पादन के बेहतर तरीके व इसका उपयोग है. श्री कुमार ने कहा कि हमारे देश में कोल बेड मिथेन से संबंधित पॉलिसी 1997 में बनी, पर इस पर उतना काम नहीं हुआ. भारत वर्ष 2005 के मुकाबले 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 35 फीसदी तक कमी लाना चाहता है. इसके लिए हमें उपरोक्त विकल्पों तथा इससे जुड़े उद्योगों की जरूरत है. इसमें हम दुनिया के वैसे देश, जो इसमें अागे हैं, उनसे तकनीकी सहयोग लेंगे.
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) के अध्यक्ष सुतीर्थ भट्टाचार्य ने कहा कि कोल गैसिफिकेशन तथा मिथेन उत्पादन पर कोल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआइ) काम कर रहा है. इसके लिए एक नेशनल मैप बनाना चाहिए, जो सुरक्षित, इको फ्रैंडली व आर्थिक सुधार से जुड़ा हो. दरअसल गैस का उत्पादन व वितरण कई देशों के आर्थिक हालात बदल रहे हैं. नार्वे इसका उदाहरण है. वहीं, हमारे देश में गुजरात व आंध्र प्रदेश जैसे राज्य गैस से अपनी अाय बढ़ा रहे हैं. यानी अब गैसिफिकेशन एक तरह का इकोनोमिक साइंस (अार्थिक विज्ञान) है.
सीसीएल व बीसीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह ने कहा कि प्रदूषण रहित अक्षय ऊर्जा तथा पर्यावरण में हो रहे बदलाव से न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में कोल उत्पादन तथा पावर प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आर्थिक पहलू पर पर्यावरण संबंधी पहलू भारी पड़ रहा है.
हालांकि कोयले से बनने वाली बिजली सस्ती होती है. यह भी सही है कि हर आदमी को बिजली चाहिए. ऐसे में दो दिन की यह कार्यशाला क्लिन कोल इनर्जी का रास्ता दिखायेगी तथा जल्द ही हम इस क्षेत्र में एक उदाहरण पेश करेंगे. सीएमपीडीआइ के सीएमडी शेखर शरण ने कहा कि मिथेन के उत्पादन की तकनीक के लिए सीएमपीडीआइ नोडल एजेंसी है. कोल इंडिया के इलाके में इको फ्रैंडली मिथेन के उत्पादन तथा इसके सामाजिक सरोकार पर भी यहां बात होगी.
उदघाटन सत्र को यूएस काउंसुलेट जेनरल क्रेग एल हॉल, यूएसइपीए की मोनिका सिमामुरा तथा यूएनइसीइ के रेमंड चार्ल्स पिल्चर ने भी संबोधित किया. इसके बाद तीन तकनीकी सत्र हुए. कार्यशाला में अॉयल एंड नेचुरल गैस कमीशन (अोएनजीसी), डाइरेक्टर जेनरल अॉफ माइंस सेफ्टी (डीजीएमएस), सीएमपीडीआइ, सीआइएल व नीति आयोग के प्रतिनिधियों सहित यूएस, अॉस्ट्रेलिया व कजाकिस्तान के विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं.
भारत-यूएस के बीच कारोबार बढ़े : यूएस काउंसुलेट
यूएस काउंसुलेट जेनरल क्रेग एल हॉल ने कहा कि ऊर्जा के क्षेत्र में भारत तथा यूएस का संबंध पुराना है. कोल बेड मिथेन सहित नेचुरल गैस उत्पादन में भी हम मिल कर काम सकते हैं. क्लिन इनर्जी के क्षेत्र में यूएस-इंडिया पार्टनरशिप की यह विशेष पहल होगी. हॉल ने कहा कि भारत व यूएस के बीच अभी 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है, जो काफी नहीं है.
वहीं भारत में यूएस का कुल निर्यात उसके कुल निर्यात का सिर्फ 1.5 फीसदी है. इसे बढ़ाने की जरूरत है. यूएनइसीइ के विशेषज्ञ रेमड चार्ल्स पिल्चर ने कहा कि टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) के लिए विभिन्न देशों के बेहतर कार्यों (बेस्ट प्रैक्टिसेज) व तकनीक को अपनाना होगा. यूएसइपीए की मोनिका सिमामुरा ने कहा कि ग्रीन हाउस गैस कम करने के लिए जितना किया गया है, उससे अौर अधिक करने की जरूरत है.
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