वह मंगलवार को बाल अधिकार संरक्षण आयोग के तत्वावधान में आयोजित ‘अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों की शिक्षा अधिकार की स्थिति’ विषयक कार्यशाला में बोल रहे थे. प्रियांक कानूनगो ने कहा कि 2002 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद सभी बच्चों (छह से 14 वर्ष तक के) को अनिवार्य अौर नि:शुल्क शिक्षा से जोड़ने की कोशिश की गयी है. अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को भी वहीं सुविधाएं मिले जो बाकी बच्चों को मिलती है. इसके लिए सार्थक संवाद की जरूरत है. समस्याओं को भी समझना होगा. इससे पूर्व राज्य बाद अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य आरती कुजूर ने कहा कि आयोग बच्चों के अधिकार, शिक्षा सहित अन्य मुद्दों की मॉनिटरिंग कर रहा है. हालांकि बच्चों के अधिकारों को जाति, धर्म, समुदाय के आधार पर फर्क नहीं कर सकते.
पर यह सच है कि मदरसों में पढ़ रहे बच्चों की बहुत सारी कठिनाइयां है, जिसे दूर करना जरूरी है. उन्हें भी अच्छी शिक्षा पाने अौर विकास करने का अधिकार है. इसमें समाज का सहयोग भी जरूरी है. सज्जाद हैदर ने कहा कि मदरसों के शिक्षक ट्रेंड नहीं है साथ ही उन्हें क्षेत्रीय भाषाअों में प्रारंभिक शिक्षा मिले. आयोग की अोर से कहा गया कि अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा व उनके अधिकारों के प्रति आयोग संवेदनशील है अौर उनकी समस्याअों का समाधान किया जायेगा. डॉ असलम परवेज ने मदरसों में महाराष्ट्र की तर्ज पर वर्चुअल अौर स्मार्ट क्लासेस की बात कही. कार्यशाला में रांची विवि के पूर्व कुलपति प्रो एए खान सहित अन्य ने भी संबोधित किया. कार्यशाला में बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ मनोज कुमार, भारतीय किसान संघ के संजय मिश्रा सहित अन्य उपस्थित थे.