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हौसले से ही मिलती है मंजिल..

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. यह पंक्ति सटीक बैठती है हजारीबाग की दीपाली पर. पिता की असामयिक मृत्यु हो जाने से घर की स्थिति बिगड़ने के कगार पर थी. ऐसे में पराये तो क्या, अपनों ने भी साथ छोड़ दिया. इस प्रतिकूल परिस्थिति में […]

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. यह पंक्ति सटीक बैठती है हजारीबाग की दीपाली पर. पिता की असामयिक मृत्यु हो जाने से घर की स्थिति बिगड़ने के कगार पर थी. ऐसे में पराये तो क्या, अपनों ने भी साथ छोड़ दिया. इस प्रतिकूल परिस्थिति में दीपाली ने पिता का व्यवसाय प्रिटिंग प्रेस को अपने हाथों में लिया और अथक परिश्रम कर न केवल उस व्यवसाय को ही खड़ा किया, बल्कि बड़ी बहन की पढ़ाई को भी पूरा करायी और घर भी संभाल लिया.
हजारीबाग : विषम परिस्थितियों में भी हौसला नहीं हारनेवाली हजारीबाग की बेटी ने अपने को खुद तो संभाला ही. इसके अलावा अपनी बड़ी बहन को भी मंजिल तक पहुंचाया. • इस कारण इस बेटी को समाज न सिर्फ उसकी प्रशंसा कर रहा है, बल्कि उससे प्रेरणा भी ग्रहण कर रहा है • जी हां, बात कर रहे हैं हजारीबाग के छठ तालाब नवाबगंज की रहनेवाली आनंदा काॅलेज स्नातक प्रतिष्ठा खंड तीन की छात्रा दीपाली रानी की •. उसकी बोली में ओज है तो व्यवहार में विश्वास अर्जित करने की क्षमता • यही विश्वास उसकी साख और पूंजी भी है•.

दीपाली का एक हंसता खेलता और खाता पीता परिवार था . उसके पिता प्रिंटिंग प्रेस चलाने का व्यवसाय करते थे • उसी से परिवार भी चलता था और दोनों बहनों की पढ़ाई भी होती थी • दीपाली रानी के पिता को कैंसर जैसी घातक बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया • व्यवसाय मंदा पड़ने लगा • आमदनी घटने लगी •. बीमारी के कारण खर्च भी बढ़ने लगा • जिससे परेशानियों का पहाड़ ऊंचा होने लगा . अपने दूर होने लगे और पराये तो फटकने का नाम नहीं लेते थे • 5 मई 2015 को लाइलाज कैंसर पीड़ित दीपाली के पिता अशोक कुमार ने भी साथ छोड़ दिया. • चारों तरफ से समस्याओं का अंधेरा छा गया •. समाधान का रास्ता नहीं दिख रहा था . उस वक्त दीपाली अंग्रेजी प्रतिष्ठा की छात्रा के रूप में पढ़ाई कर रहीं थी और बड़ी बहन मनीषा रानी दिल्ली में पढ़ाई कर रहीं थी • पिता के गुजर जाने के बाद कई लोगों ने आंसू बहाये, सहानुभूति दिखाई, मदद का आश्वासन दिया, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जो प्रिंटिंग प्रेस को हड़पना चाहते थे • दीपाली ने हिम्मत की और खुद प्रिंटिंग प्रेस की संचालिका बन गयी •. प्रेस चलने लगा, आय होने लगी • जिससे परिवार का भरण पोषण भी होने लगा • इसके साथ ही अपनी पढ़ाई के अलावा दिल्ली में पढ़ने वाली अपनी बड़ी बहन मनीषा रानी की पढ़ाई का खर्च भी दीपाली ही उठाने लगी , ठीक ही कहा गया है कि हौसला से मंजिल मिलती है • आज दीपाली की बड़ी बहन मनीषा बैंक में मैनेजिंग असिसटेंट के पद पर दो माह से नौकरी कर रहीं हैं. • इधर दीपाली अपनी पढ़ाई के साथ साथ प्रिंटिंग प्रेस का संचालन भी कर रहीं हैं•

दीपाली का कहना है कि घर में विधवा मां आयुष्मती देवी और बहन है . बहन तो नौकरी कर रहीं हैं • उसकी शादी हो जायेगी • तब मां घर में अकेले बच जायेगी • मां से बढ़ कर दुनिया में कुछ नहीं होता . इसलिए वे हमेशा अपनी मां के साथ रहना चाहती हैं • उसका कहना है की प्रिंटिंग प्रेस पिता की विरासत है और बुरे दिनों की मददगार, इसलिए वे इस व्यवसाय को छोड़ना नहीं चाहतीं • यह कुरेदे जाने के बाद की शादी के बाद तो ससुराल जाना ही पड़ेगा • दीपाली कहती है कि शादी तो करूंगी मगर उससे करूंगी जो इस व्यवसाय में उसका सहयोग करें • जिससे वह अपनी मां की आंचल की छाया से दूर नहीं जा सकें. •दीपाली को प्रिंटिंग मशीन चलाने में उसके पिता जी के समय कर्मचारी के रूप में काम कर रहे आशीष व मोलू भी सहयोग कर रहे हैं . दीपाली की मां आयुष्मती देवी कहतीं हैं कि दीपाली काफी मेहनत करती है • सुबह 10 बजे से प्रिंटिंग मशीन चलाने का काम शुरू कर देती है. जो शाम छह बजे तक चलता है , जब काम अधिक आ जाता है तो 8 से 10 बजे रात तक भी काम करती है • इसी बीच समय निकलने पर पढ़ाई भी कर लेती है • मेरी सहारा भी बनीं हुईं है •

दीपाली कहती है कि हम अन्य लड़कियों को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि लड़की कमजोर नहीं होती • हौसला बुलंद कर वह हर काम कर सकती है • उसे किसी बैशाखी की जरूरत नहीं है • हिम्मत और हौसला से हर समस्याओं का निदान निकाला जा सकता है. •

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