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बदहाली: पांच लोगों के भरोसे राज्य औषधि जांच प्रयोगशाला, नहीं होती इंजेक्शन की जांच
रांची: राज्य औषधि जांच प्रयोगशाला की स्थिति ठीक नहीं. वर्ष 2012 में केंद्रीय गाइड लाइन पर बना यह जांच केंद्र लगातार उपेक्षा का शिकार होता रहा है. प्रयोगशाला शुरू करने के लिए 18 पद सृजित एवं अनुमोदित किये गये थे, लेकिन अनुबंध के आधार पर रखे गये सिर्फ छह. एक कंप्यूटर अॉपरेटर अलग से रखा […]
रांची: राज्य औषधि जांच प्रयोगशाला की स्थिति ठीक नहीं. वर्ष 2012 में केंद्रीय गाइड लाइन पर बना यह जांच केंद्र लगातार उपेक्षा का शिकार होता रहा है. प्रयोगशाला शुरू करने के लिए 18 पद सृजित एवं अनुमोदित किये गये थे, लेकिन अनुबंध के आधार पर रखे गये सिर्फ छह. एक कंप्यूटर अॉपरेटर अलग से रखा गया.
अभी इनमें से दो क्रमश: कैशियर व कंप्यूटर अॉपरेटर के अनुबंध का विस्तार नहीं किया गया है. इस कारण सिर्फ पांच लोगों के भरोसे चल रही है जांच प्रयोगशाला. वर्ष 2012 में शुरू हुई इस प्रयोगशाला में आज भी सभी दवाओं की संपूर्ण जांच के लिए जरूरी पांच विंग में से सिर्फ तीन चल रहे हैं. इनमें शामिल हैं फिजिकल, केमिकल और इंट्रुमेंटल विंग. जानकारों के अनुसार दवा की संपूर्ण जांच के लिए माइक्रोबाइलॉजिकल व इंडीजेनस लैब की स्थापना जरूरी है, लेकिन आज तक इनकी स्थापना नहीं हुई. इस वजह से आज भी इस लैब में इंजेक्शन व अन्य दवा की जांच की व्यवस्था नहीं हो पायी है. ऐसी दवा की जांच कोलकाता स्थित सेंट्रल ड्रग लेबोरेटरी में करायी जाती है. इसके लिए अलग से पैसे देने पड़ते हैं. जानकारों के अनुसार राज्य ड्रग लेबोरेटरी में आदमी बढ़ाने और सुविधाएं देने के लिए कई बार विभाग को लिखा गया, पर कुछ नहीं हुआ. अभी हालत यह है कि जांच से लेकर पत्राचार या अन्य कोई भी काम यही पांच लोग मिल कर करते हैं.
30 लाख की मशीन चाहिए
जानकाराें के अनुसार यहां पूरी तरह जांच हो इसके लिए एचपीएलसी मशीन की जरूरत है. इसकी लागत लगभग 30 लाख रुपये है. जानकारों का कहना है कि अगर यह मशीन होती तो सभी दवा की जांच होती. अभी महज 30 प्रतिशत दवा की ही जांच हो रही है.
अब भी छह प्रतिशत गड़बड़ दवा
सूत्रों के अनुसार अलग राज्य गठन के बाद यहां सप्लाई होनेवाली दवा में 60 प्रतिशत तक गड़बड़ी पायी गयी थी, पर धीरे-धीरे इसमें कमी आयी है, बावजूद इसके अभी छह प्रतिशत तक गड़बड़ी पायी जाती है. जानकारों के अनुसार सभी दवा की जांच हो और सैंपल पूरी ईमानदारी से लिया जाये, तो इस आंकड़ा में कुछ और परिवर्तन संभव है.
एक जांच में दो दिन, कैसे हो काम
विभागीय सूत्रों के अनुसार राज्य के लैब में एक दवा की जांच में दो दिन लग जाता है, ऐसे में एक व्यक्ति सभी जिलों से आनेवाली दवा की जांच में काफी कठिनाई होती है.
होनी थी सौंदर्य प्रसाधनों की भी जांच
राज्य में सौंदर्य प्रसाधनों की भी जांच होनी थी, पर फिलहाल चालू प्रयोगशाला में भी पूरी व्यवस्था नहीं है. ऐसे में कैसे होगी पूरी व्यवस्था इस पर सवाल है.
अभी कितने कर्मचारी हैं
प्रयोगशाला में निदेशक सह सरकारी एनालिसिस, तीन तकनीकी सहायक व एक लैब अटेंडेंट. जबकि सभी पांचों विभागों के लिए कुल विभिन्न 78 पदों पर कर्मी होने चाहिए.
अन्य सुविधाएं भी नहीं
प्रयोगशाला में अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा अन्य केमिकल का भी उपयोग होता है. इसके लेकर यहां पर हर ओर पंप की व्यवस्था की गयी थी, पर रखरखाव के अभाव में सब बेकार हो गये हैं. भवन के अंदर भी सभी ओर गंदगी और टूट-फूट की स्थिति है. कर्मचारी के नहीं होने के कारण देखभाल भी नहीं हो पाती.
यह हो तो बात बने
औषधि अधिनियम 1940 के अनुसार एम फार्मा पास किसी व्यक्ति को जांच प्रयोगशाला में काम करने का तीन साल का अनुभव हो या फिर बी फार्मा पास को पांच साल का अनुभव हो तो वह एनालिस्ट के रूप में काम कर सकता है. राज्य प्रयोगशाला में फिलवक्त ऐसे लोग हैं, उनका इस्तेमाल कर बेहतरी की जा सकती है.
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