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श्रम मंत्रालय ने इंटक को प्रतिनिधित्व देने से किया इनकार
रांची : भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने इंटक को कहीं भी प्रतिनिधित्व देने से मना कर दिया है. इंटक के आपसी विवाद को लेकर ऐसा किया गया है. इससे संबंधित पत्र श्रम मंत्रालय ने इंटक के तीनों गुटों को दिया है. भारत सरकार के इस आदेश का देश की कई श्रमिक यूनियनों ने विरोध […]
रांची : भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने इंटक को कहीं भी प्रतिनिधित्व देने से मना कर दिया है. इंटक के आपसी विवाद को लेकर ऐसा किया गया है. इससे संबंधित पत्र श्रम मंत्रालय ने इंटक के तीनों गुटों को दिया है. भारत सरकार के इस आदेश का देश की कई श्रमिक यूनियनों ने विरोध किया है. भारत सरकार ने चार जनवरी को इससे संबंधित पत्र जारी किया है.
इसमें कहा गया है कि इंटक को श्रम मंत्रालय द्वारा संचालित किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लेने दिया जाये. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर त्रिपक्षीय बैठक में इंटक के प्रतिनिधियों का नोमिनेशन नहीं होना चाहिए. इससे इंटक का प्रतिनिधित्व सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से भी हटा दिया जायेगा. इंटक के प्रतिनिधि अभी कई प्रकार की कमेटियों में मजदूरों का नेतृत्व कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार कोल इंडिया ने भी कोयला मंत्रालय को श्रम मंत्रालय की चिट्ठी से अवगत करा दिया है.
कोयला मंत्रालय से इस मामले में मार्गदर्शन मिलते ही इंटक की सदस्यता कमेटियों से समाप्त कर दी जायेगी.
अदालत में है मामला
इंटक में विवाद का मामला अदालत में चल रहा है. इंटक पर डॉ जी संजीवा रेड्डी, केके तिवारी और चंद्रशेखर दुबे दावा कर रहे हैं. इससे संबंधित मामला कई अदालतों में चल रहा है. वर्तमान में दिल्ली हाइकोर्ट में भी मामला चल रहा है. इस कारण इंटक को कोल इंडिया ने जेबीसीसीअाइ-10 में जगह नहीं दी है. कोल इंडिया कर्मियों के वेतन समझौते के लिए होनेवाली बैठक में पहली बार इंटक हिस्सा नहीं ले रही है.
वर्जन…
यह भारत सरकार का षड्यंत्र है. पिछले दो दशक से डॉ जी संजीवा रेड्डी और राजेंद्र सिंह इंटक के माध्यम से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे हैं. मजदूरों के हितों की बात कहते रहे हैं. भारत सरकार का यह निर्णय मजदूर विरोधी है. नौ और 10 जनवरी को संजीवा रेड्डी के नेतृत्व में दिल्ली में बैठक होनेवाली है. इसमें आगे की रणनीति तय की जायेगी.
एसक्यू जमा, राष्ट्रीय सचिव, इंटक
भारत सरकार का यह निर्णय राजनीति से प्रेरित है. इसे कोई भी ट्रेड यूनियन स्वीकार नहीं कर सकती है. यह जन विरोधी फैसला है. इसका मिल कर विरोध करने की जरूरत है.
तपन सेन, महासचिव, सीटू
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