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विधानसभा के काम में ठेकेदार को 10.92 करोड़ का गलत भुगतान
रांची: विधानसभा के काम में इंजीनियर ने ठेकेदार को 10.92 करोड़ रुपये का गलत भुगतान कर दिया है. बैंक से कर्ज लेकर खरीदी गयी मशीनों के लिए भी ठेकेदार को अग्रिम दे दिया है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने इस पर आपत्ति जतायी है. सरकार को इसकी जानकारी दी है. 11 फरवरी को दिया था अग्रिम भुगतान […]
रांची: विधानसभा के काम में इंजीनियर ने ठेकेदार को 10.92 करोड़ रुपये का गलत भुगतान कर दिया है. बैंक से कर्ज लेकर खरीदी गयी मशीनों के लिए भी ठेकेदार को अग्रिम दे दिया है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने इस पर आपत्ति जतायी है. सरकार को इसकी जानकारी दी है.
11 फरवरी को दिया था अग्रिम भुगतान का आदेश : सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में पीएजी ने कहा है कि स्पेशल बिडिंग डॉक्यूमेंट(एसबीडी) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए विशेष प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता ने निर्माण कार्य में लगे रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को 10.92 करोड़ का गलत भुगतान कर दिया है. इस ठेकेदार के साथ 290.72 करोड़ की लागत से विधानसभा का निर्माण कार्य पूरा करने के लिए 25 जनवरी 2016 को एकरारनामा किया गया था. कार्यपालक अभियंता ने ठेकेदार को मशीन व उपकरण के नाम पर 11 फरवरी को 10.92 करोड़ रुपये अग्रिम देने का आदेश दिया. जांच में पाया गया कि जिन मशीनों की खरीद के लिए ठेकेदार को अग्रिम दिया गया, वे मशीनें पहले से ही उसके पास थी. एसबीडी में निहित शर्तों के अनुसार निर्माण कार्य में लगनेवाली मशीनों की लागत का 90 प्रतिशत ठेकेदार को बतौर अग्रिम देना है. इस मद में मिली अग्रिम राशि का इस्तेमाल दूसरे काम में नहीं किया जा सकता है. अग्रिम लेने का बाद ठेकेदार को मशीन व उपकरण खरीद से संबंधित दस्तावेज जमा करना है.
दस्तावेज की जांच में हुआ खुलासा : रिपोर्ट में कहा गया है कि ठेकेदार द्वारा मशीन व उपकरण से संबंधित प्रमंडल में जमा कराये गये दस्तावेज से इस बात की जानकारी मिलती है कि उसके पास मशीनें पहले से थी. इतना ही नहीं, कार्यपालक अभियंता ने उन मशीनों और उपकरणों के नाम पर भी अग्रिम दे दिया, जिन्हें ठेकेदार ने पहले ही बैंकों से कर्ज लेकर खरीदा था. इसमें एचडीएफसी बैंक से कर्ज लेकर खरीदी गयी स्वॉयल कंपैक्टर, ग्रेडर, डीजी सेट, चेसिस और हाइवा शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मशीनों और उपकरणों के नाम पर किसी भी कीमत पर अग्रिम नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि कर्ज और सूद की रकम चुकाने तक इसका मालिकाना अधिकार बैंकों के पास ही रहता है.
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