रांची : खादी बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष जयनंदू के कार्यकाल में स्थापना मद में बजट से अधिक खर्च किया गया. अध्यक्ष ने वित्त विभाग की शक्तियों का इस्तेमाल खुद ही कर लिया. बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीइओ) ने अपनी वित्तीय शक्तियां किसी अधिकारी को नहीं दी थी.इसके बावजूद केंद्रीय वस्त्रागार और विक्रय केंद्रों के प्रबंधक अपने ही स्तर से सामग्री की खरीद-बिक्री करते थे. इससे बोर्ड में खर्च पर नियंत्रण नहीं हो सका. सरकार ने भी बोर्ड के गठन के बाद सिर्फ अध्यक्ष की नियुक्ति व अवधि विस्तार देने का काम किया. न तो पूर्ण बोर्ड का गठन किया, न ही बोर्ड के कामकाज के लिए नियमावली बनायी. इन तथ्यों का उल्लेख बोर्ड की विशेष ऑडिट रिपोर्ट में किया गया है.
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जयनंदू ने खुद किया वित्त विभाग की शक्तियों का इस्तेमाल
रांची : खादी बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष जयनंदू के कार्यकाल में स्थापना मद में बजट से अधिक खर्च किया गया. अध्यक्ष ने वित्त विभाग की शक्तियों का इस्तेमाल खुद ही कर लिया. बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीइओ) ने अपनी वित्तीय शक्तियां किसी अधिकारी को नहीं दी थी.इसके बावजूद केंद्रीय वस्त्रागार और विक्रय केंद्रों के […]
विशेष ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य विभाजन के बाद खादी बोर्ड ने 2004 में अपना कामकाज शुरू किया. पर अब तक यह बिहार खादी बोर्ड के नियम कानून से ही चल रहा है. नियमानुसार खादी बोर्ड के लिए ‘खादी बजट’ और ग्रामोद्योग बजट होना चाहिए. बोर्ड में वित्तीय सलाहकार समिति नहीं है. इसलिए अध्यक्ष के निर्देश पर सीइओ द्वारा बनाये गये बजट की स्वीकृति के बाद सरकार बोर्ड को अनुदान देती थी. सरकार बोर्ड के ‘मैनेजेरियल ग्रांट’ और ‘सहायता अनुदान’ मद में पैसा देती थी. मैनेजेरियल ग्रांट की राशि का उपयोग स्थापना और सहायता अनुदान का इस्तेमाल विकास योजनाओं में करना है.
मैनेजेरियल ग्रांट के रूप में सरकार स्थापना खर्च की 80 प्रतिशत राशि बोर्ड को देेती है. शेष 20 प्रतिशत की व्यवस्था बोर्ड द्वारा की जानी है. बोर्ड के लेखा-जोखा से जुड़े दस्तावेज की जांच में पाया गया कि वर्ष 2010-11 से 2012-13 तक सरकार ने मैनेजेरियल ग्रांट के रूप में बोर्ड को 7.20 करोड़ रुपये दिये थे. बोर्ड को 1.80 करोड़ की व्यवस्था करनी थी. अर्थात 2010-11 से 2012-13 के बीच बोर्ड को स्थापना मद में नौ करोड़ रुपये की खर्च करना था. पर इस अवधि में बोर्ड ने स्थापना पर नौ करोड़ के बदले 11.46 करोड़ रुपये खर्च किये. अतिरिक्त राशि की व्यवस्था के लिए फंड का विचलन किया गया.
नियमानुसार बोर्ड को मिली सहायता अनुदान की राशि का खर्च स्थापना मद में नहीं करना है. एक मद की राशि को दूरे मद में खर्च करने के लिए वित्त विभाग की सहमति लेना आवश्यक है.
पर अध्यक्ष के स्तर पर ही सहायता अनुदान में मिली राशि का विचलन कर स्थापना मद में खर्च कर दिया गया. बोर्ड में वित्तीय अनियमितताओं की चर्चा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि सीइओ ने अपनी वित्तीय शक्तियां किसी को नहीं दी थी. इसके बावजूद केंद्रीय वस्त्रागार और विक्रय केंद्रों के प्रबंधक अपने ही स्तर से सामग्री की खरीद-बिक्री करते थे. प्रबंधक के स्तर पर सामग्री की खरीद के बाद फंड की मांग की जाती थी. इसलिए प्रबंधकों द्वारा किया गया खर्च नियम विरुद्ध है.
बजट से अधिक खर्च का ब्योरा( लाख में)
वित्तीय वर्ष उपलब्ध राशि खर्च अधिक
2010-11 250.00 4409.43 159.43
2011-12 312.50 373.79 61.29
2012-13 337.50 363.01 25.51
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