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11 साल बाद भी शुरू नहीं हुआ राज्य औषधीय पादप बोर्ड

जीवेश रांची : राज्य में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में गठित औषधीय पादप बोर्ड 11 वर्ष बाद भी शुरू नहीं हो सका. 21 नवंबर 2005 को गठित बोर्ड के माध्यम से किसानों को बाजार, पूंजी, औषधीय पौधों के उत्पादन, संरक्षण आदि की सुविधा उपलब्ध करानी थी. काम के सही निष्पादन […]

जीवेश
रांची : राज्य में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में गठित औषधीय पादप बोर्ड 11 वर्ष बाद भी शुरू नहीं हो सका. 21 नवंबर 2005 को गठित बोर्ड के माध्यम से किसानों को बाजार, पूंजी, औषधीय पौधों के उत्पादन, संरक्षण आदि की सुविधा उपलब्ध करानी थी.
काम के सही निष्पादन के लिए बोर्ड में 15 सदस्यों का मनोनयन करना था. इसके लिए पांच विभिन्न विभागों के मंत्री सहित 15 लोगों की टीम बननी थी. काम पर नियंत्रण के लिए इनकी वर्ष में दो बार बैठक होनी थी. यह भी तय था कि यह स्वायत्त शासी पर्षद होगा, पर हुआ कुछ नहीं.
आज भी यह बोर्ड कागजों में सिमटा है. एक भी पद का गठन नहीं हुआ और न ही किसी को इसका स्वतंत्र प्रभारी बनाया गया. कभी इसको, तो कभी उसको इसकी फाइलों के निष्पादन के लिए प्रभार दे दिया गया. अब तक दो-चार बार बैठक जरूर हुई, पर काम के नाम पर कुछ नहीं हुआ. इस कारण अब तक बोर्ड के प्रभारी सिर्फ फाइलों का निष्पादन करते रहे हैं.
काम भी बस इतना सा कि किसी स्वयंसेवी संगठन या किसी और ने कोई आवेदन या औषधीय पौधों से संबंधित कोई प्रोजेक्ट भेजा, तो उसे नेशनल मेडिसिन प्लांटेशन बोर्ड, मिनिस्ट्री अॉफ आयुष, नयी दिल्ली को भेज देना. यानी 29 प्रतिशत जंगलवाले राज्य में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकनेवाला राज्य औषधीय पादप बोर्ड अपने गठन के वर्ष से महज पोस्टमास्टर की भूमिका निभा रहा.
स्वास्थ्य मंत्री बनाये गये थे अध्यक्ष : इसके अध्यक्ष स्वास्थ्य मंत्री बनाये गये थे. इसके अलावा सदस्य के रूप में वन एवं पर्यावरण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, कृषि व पंचायती राज विभाग के मंत्री के अलावा वन एवं पर्यावरण विभाग के आयुक्त व सचिव, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, कृषि विभाग के आयुक्त एवं सचिव, पंचायती राज विभाग के सचिव, कृषि विभाग के निदेशक, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, ग्राम पंचायत के निदेशक, देसी चिकित्सा (आयुर्वेद) के निदेशक व यूनानी चिकित्सा के उप निदेशक को सदस्य बनाया गया था. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग के सचिव को सदस्य सचिव बनाया गया था.
क्या हुआ था तय : वन एवं पर्यावरण विभाग के संकल्प (संख्या 852 – 17.02.2003) द्वारा राज्यस्तरीय औषधीय पादप बोर्ड का गठन किया गया था. पुन: वन एवं पर्यावरण विभाग ने छह नवंबर 2003 को स्वास्थ्य विभाग के साथ बैठक कर बोर्ड व उसके कार्य को लेकर समीक्षा की. इस दौरान तय हुआ कि बोर्ड का पुनर्गठन भारत सरकार के निर्धारित सिद्धांत के तहत किया जायेगा, ताकि लोगों को अधिक फायदा हो. तय हुआ कि इसका मुख्यालय स्वास्थ्य विभाग होगा.
इसे औषधीय वनस्पति के संग्रहण, भंडारण व परिवहन के लिए सुविधाएं जुटाने से लेकर इससे संबंधित मार्गदर्शन भी करना था. औषधीय पादपों पर शोध, अध्ययन और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को बढ़ावा भी देना था. इसके माध्यम से औषधीय पौधों या उत्पादों के पेटेंट व संरक्षण को भी बढ़ावा देना था.
क्या होता फायदा : झारखंड का 29 प्रतिशत भू भाग वनक्षेत्र है. यहां विभिन्न औषधीय पौधों की भरमार है. अगर इसे संरक्षित किया जाता, तो न सिर्फ लघु व कुटीर उद्योग-धंधों को बढ़ावा मिलता, बल्कि राज्य की कमाई भी बढ़ती.

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