रांची: जिस पार्टी को 29 फीसदी वोट मिले, उसे विधानसभा या लोकसभा में 29 फीसदी सीट मिलनी चाहिए. वर्तमान स्थिति यह है कि सबसे अधिक वोट पानेवाला उम्मीदवार विजेता घोषित कर दिया जाता है, भले ही उसे 30 फीसदी वोट मिले हों. बाकी 70 फीसदी लोगों की आवाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता. लोगों के बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए समानुपातिक चुणाव प्रणाली की जरूरत है.
यह बात दलित लेखक और कैंपेन फॉर इलेक्टोरल रिफॉर्म्स इन इंडिया के संस्थापक एमसी राज ने कही. वह बुधवार को ‘समानुपातिक चुनाव प्रणाली भारत के लिए बेहतर’ विषयक विमर्श कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. आयोजन जनमुक्ति विमर्श ने एसडीसी सभागार में किया.
असम गण परिषद की पूर्व विधायक व अर्थशास्त्री, अलका देसाई शर्मा ने कहा कि नॉर्थ ईस्ट प्रांतों के लिए समानुपातिक चुनाव प्रणाली जरूरी है. इससे वहां की छोटी- छोटी पार्टियों का बेहतर समावेश होगा. कमजोर व अल्पसंख्यक तबकों को बेहतर प्रतिनिधित्व मिलेगा. चुनाव सुधार के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के प्रयोग पर तत्काल रोक की जरूरत है. वक्ताओं में अधिवक्ता लीना डबेरू, रामदेव विश्वबंधु, दीनानाथ पेंटे, गिरिजा सतीश, शंभू महतो, अरविंद अंजुम, पत्रकार मधुकर, श्रीनिवास, चंद्रभूषण चौधरी, हुसैन कच्छी व अन्य ने भी विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन सुनीता गुप्ता ने किया.
189 देशों में लागू है
समानुपातिक चुनाव प्रणाली दुनिया के 189 देशों में लागू है. एमसी राज के अनुसार नेपाल, जर्मनी, फ्रांस, न्यूजीलैंड व नार्वे जैसे देशों ने इस प्रणाली को अपनाया है. वर्ष 1999 में इंडियन लॉ कमीशन ने संसद के सामने समानुपातिक चुनाव प्रणाली की वकालत की थी, पर उसकी रिपोर्ट धूल फांक रही है. 1929 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस प्रणाली को बेहतर बताया था. 2003 में मुसलिम लीग के सांसद बनातवाला ने बिल पेश किया था, पर अरुण जेटली व अन्य के विरोध के कारण यह बिल गिर गया.