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विकास के साथ विनाश भी आता है : राजेंद्र सिंह

रांची: मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा है कि अब पूर्वी भारत के विकास की बात हो रही है. एक बात का ख्याल रखना चाहिए कि विकास के साथ विस्थापन आता है. यह विस्थापन चाहे संस्कृति का हो या लोगों का. विस्थापन से विकृति आती है. विकृति आते ही विनाश शुरू हो […]

रांची: मैग्सेसे पुरस्कार विजेता जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा है कि अब पूर्वी भारत के विकास की बात हो रही है. एक बात का ख्याल रखना चाहिए कि विकास के साथ विस्थापन आता है. यह विस्थापन चाहे संस्कृति का हो या लोगों का. विस्थापन से विकृति आती है. विकृति आते ही विनाश शुरू हो जाता है. यह ध्यान रखने की बात है कि विकास के साथ विनाश आता है. इससे बचने के लिए पूर्वी भारत के राज्यों को अभी से जागरूक और संवेदनशील रहना होगा. यहां की प्रकृति और पर्यावरण का ख्याल रखते हुए विकास की रूपरेखा तय करनी होगी. पूर्वी भारत को बचाना है, तो विकास योजना पारंपरिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर बनानी होगी.

श्री सिंह शनिवार को रांची कॉलेज परिसर स्थित आर्यभट्ट सभागार में इनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट इन इस्टर्न इंडिया (स्टेटस, इश्यू एंड चैलेंज) विषय पर आयोजित दो दिनी राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे. इसका आयोजन युगांतर भारती कर रहा है. आयोजन में नेचर फाउंडेशन, रांची विवि, कोल्हान विवि, विनोबा भावे विवि, सिदो-कान्हू मुरमू विवि, निलांबर-पितांबर विवि सहयोग कर रहा है. श्री सिंह ने कहा कि झारखंड अभी भी ग्रीन जोन में है. झारखंड की इस प्राकृतिक सुंदरता को बचाना विकास के दौर में सबसे जरूरी है. सरकार जब गैर जिम्मेदार और जनता समझ रहित हो जायेगी, तो विकास का यह दौर हमें विनाश की ओर ले जायेगा. ऐसी विकास योजना बनानी होगी, जिससे कम से कम पर्यावरण का नुकसान हो.
युवा संसाधन पर संकट : राज्य के संसदीय मंत्री सह आयोजन समिति के अध्यक्ष सरयू राय ने कहा कि अभी पर्यावरण संकट में है. इस तरह के आयोजन से सरकार को एक दिशा मिलेगी. सरकार को योजना तैयार करने में मदद मिल रही है. अभी पर्यावरण का सबसे अधिक असर देश के युवा संसाधन पर पड़ रहा है. आयोजन में विश्वविद्यालयों को इसलिए सहभागी बनाया गया कि युवा पर्यावरण के महत्व को समझें.
खनन और पर्यावरण में संतुलन जरूरी: राज्य के विकास आयुक्त अमित खरे ने कहा कि पूर्वी भारत विकास में अभी भी पिछड़ रहा है. पंचवर्षीय योजना का यह अंतिम वर्ष है. अब योजना 15 साल, सात और तीन साल की बन रही है. ऐसे में योजनाओं का कंवरजेंश (संमिलन) जरूरी है. इसमें अभी बहुत कमी है. इसका सीधा असर विकास पर दिखता है. विभागों को चाहिए एक समेकित योजना बनाये. पिछले साल राज्य सरकार ने एक प्रयास किया. कृषि और जेंडर बजट तैयार किया. कृषि बजट पर करीब 13 फीसदी राशि आवंटित की गयी. डोभा निर्माण कर जल संकट रोकने का प्रयास किया गया. सरकार मानती है कि विकास के लिए खनन और पर्यावरण दोनों जरूरी है. दोनों में संतुलन स्थापित कर हम विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़े हो सकेंगे.
गांव को अधिकार दें, खत्म होगी नक्सल समस्या : पद्मभूषण माधव गाडगिल ने कहा कि सरकार के लिए जनता का हित सर्वोपरि है. सरकार को हमेशा सहकारी व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए. इससे ठोस विकास होता है. करीब 40 साल पहले बिल गेट्स चाहते थे कि सभी सॉफ्टवेयर को पेटेंट करा लें. इसका जन विरोध हुआ.
इस कारण कई सॉफ्टवेयर पेटेंट नहीं हो सके. इसका असर हुआ कि लोगों को तकनीकी सुविधा आसानी से मिल पायी. उन्हाेंने कहा : प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण में भी सहकारी संस्थाओं को शामिल होना चाहिए. ग्रामीण क्षेत्रों में पेसा और वन अधिकार कानून का सख्ती से पालन होना चाहिए. ग्रामीणों को अधिकार मिलेगा, तो नक्सल समस्या खुद समाप्त हो जायेगी.

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