रांची: टीआरआइ ने सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में ‘लोहार’ को अनुसूचित जनजाति नहीं माना है. हालांकि लोहार जाति के लोग काफी पहले से खुद को अनुसूचित जनजाति होने का दावा करते हैं, लेकिन सरकार उन्हें पिछड़े वर्ग का जाति प्रमाण पत्र देती है. ‘लोहार’ और ‘लोहरा ’ के मुद्दे पर राज्य गठन के बाद से ही विवाद कायम है. कार्मिक सचिव निधि खरे ने इस विवाद को निबटाने के लिए सोमवार को जन सुनवाई की. अगली जन सुनवाई के लिए 14 दिसंबर की तिथि तय की गयी है.
इसमें लोहरा और लोहारा जाति के लोगों को भी आमंत्रित किया गया है.
स मवार को हुई जन सुनवाई में रांची और लोहरदगा जिले से लोहार जाति से आये लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें बैजनाथ विश्वकर्मा, रघुनंदन प्रसाद विश्वकर्मा, उमेश विश्वकर्मा, विनोद, पवन, अमित, बैजू लाल, पप्पू लाल, बलदेव, रामू विश्वकर्मा आदि शामिल थे. इन लोगों ने अपना पक्ष पेश करते हुए कहा कि वे भी अनुसूचित जनजाति ही हैं. जाति निर्धारित करने के क्रम में लोहार को ही अंगरेजी में ‘लोहरा ’और ‘लोहारा’ लिखा गया था. ठीक वैसे ही जैसे अंगरेजी में कृष्ण को कृष्णा और राम को रामा लिखा जाता है. इसलिए लोहार भी लोहरा और लोहारा की तरह अनुसूचित जनजाति ही है. लोहार जाति के लोगों की ओर से अपनी आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का उल्लेख किया गया.
इस मामले में यह कहा गया कि उनकी आर्थिक स्थित दयनीय है. शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं.
अर्थात उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति भी अनुसूचित जनजाति जैसी है. इसलिए उन्हें पिछड़ी जाति की सूची में रखना गलत है. लोहार जाति के लोगों का पक्ष सुनने का बाद कार्मिक सचिव की ओर से उन्हें यह जानकारी दी गयी कि जनजातीय शोध संस्थान(टीआरआइ) ने लोहरा और लोहार के मामले में अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है. इसमें लोहरा और लोहारा को असुर जनजाति का एक वर्ग बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लोहार अनुसूचित जनजाति नहीं है. लोहार जाति के लोग लोहा पिघला कर सामान बनाते हैं. यह एक कला है. जैसे बुनकर कपड़ा बुनता है. लोहार की सामाजिक मान्यताएं और परंपराएं लोहरा और लोहारा से अलग है.
लोहार जाति के लोगों का पक्ष सुनने का बाद अगली जन सुनवाई में लोहरा और लोहारा जाति के लोगों को बुलाया गया है, ताकि इस मामले में उनका पक्ष भी जाना जा सके.