दीरपू ने श्री महतो को अपनी पूरी कहानी बतायी. इच्छा जतायी कि उसे एक बार अपने गांव पहुंचाने की व्यवस्था कर दें. 1960 में वह अंडमान निकोबार चले गये थे. उसकी शादी भी नहीं हुई है. अब करीब 67 साल का हो गया है. जिस ठेकेदार के साथ वह गया था, उसका देहांत हो गया. ठेकेदार के परिजनों ने दीरपू को अपनाने से इनकार कर दिया. अब वह जैसे-तैसे अपना जीवन-यापन कर रहा है. उसने बताया कि 2005 में झारखंड जाने के लिए उन्होंने पैसा जमा किया था. सुनामी में उसका पैसा बह गया.
किसी तरह अपनी जान बचा सका. दीरपू कहता है कि मरने से पहले जन्मभूमि चला जाता तो, जीवन सार्थक हो जाता. परिवार में वह अपने भाई को छोड़ किसी को पहचानता भी नहीं है. फोन से वह अपने भाइयों के संपर्क में रहता है. अभी अंडमान में वह बंगाली आश्रम में रहता है.