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बच्चों तक 90 प्रतिशत योजनाअों की पहुंच नहीं

रांची: सरकार तथा सरकारी व गैर सरकारी (एनजीअो) संस्थाअों की एक बड़ी संरचना के रहते हमारे देश के 40 फीसदी बच्चे (18 वर्ष तक) बेहद अभाव और गरीबी में जी रहे हैं. सरकार की 90 फीसदी योजनाअों की तो छह वर्ष तक के बच्चों तक पहुंच भी नहीं है. देश के सिर्फ 10 फीसदी बच्चे […]

रांची: सरकार तथा सरकारी व गैर सरकारी (एनजीअो) संस्थाअों की एक बड़ी संरचना के रहते हमारे देश के 40 फीसदी बच्चे (18 वर्ष तक) बेहद अभाव और गरीबी में जी रहे हैं. सरकार की 90 फीसदी योजनाअों की तो छह वर्ष तक के बच्चों तक पहुंच भी नहीं है. देश के सिर्फ 10 फीसदी बच्चे ही बड़े होकर हमारे-अापकी तरह जीवन जी पाते हैं. शेष 30 फीसदी शहरी तथा 60 फीसदी ग्रामीण यानी कुल 90 फीसदी बच्चों का भविष्य अंधकारमय रहता है. पर यह सब बदलेगा कैसे? सिर्फ सरकार के बूते यह नहीं होगा. समाज व युवाअों को इन बच्चों के प्रति संवेदनशील बनना होगा.
उक्त बातें बाल विकास व बाल सुरक्षा मामले की विशेषज्ञ तथा इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट, दिल्ली की गवर्निंग काउंसिल की सदस्य नीना नायक ने कही. वह विकास संबंधी मुद्दों में बच्चों की प्राथमिकता (प्रायोरिटाइजिंग चिल्ड्रेन इन द डेवलपमेंट एजेंडा) विषय पर आयोजित व्याख्यान में बोल रहीं थी. कार्यक्रम का आयोजन यूनिसेफ व एक्सआइएसएस के संयुक्त तत्वावधान में एक्सआइएसएस सभागार में किया गया था. नीना नायक ने कहा कि बच्चों के मामले में हमें संवेदनशील बनना होगा. सरकार, संविधान व मानवाधिकार कानूनों व संस्थाअों के रहते बच्चों को उनके अधिकार नहीं मिलते. बेंगलुरू में ब्रांडेड कपड़ों की कंपनियों में, जहां 20 से अधिक महिलाएं काम करती हैं, बच्चों के लिए पालना घर (क्रेच) नहीं है. हमारे देश में 1975 से आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं, पर स्थिति आज भी नहीं बदली है. इस माहौल में हम अपना कैसा समाज बना रहे हैं? नीना ने युवाअों का आह्वान किया कि वह इस मुद्दे पर आगे आयें.
कई चीजें बदली हैं, कुछ बदलनी है : मधुलिका
झारखंड की यूनिसेफ प्रमुख डॉ मधुलिका जोनाथन ने कहा कि बाल अधिकारों संबंधी संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर भारत ने 1992 में ही हस्ताक्षर किया था. कई चीजें बदली हैं, कुछ बदलनी है. खान-खनिज तथा प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य में बाल अधिकार, बाल विकास तथा बाल संरक्षा (प्रोटेक्शन) जैसे विषय पर हमें कई काम करने हैं. डॉ जोनाथन ने कहा कि तीन साल होने पर हम बच्चों को स्कूल तो भेजते हैं, पर खासकर ग्रामीण इलाके में दो साल तक उनकी देखभाल गरीबी, अज्ञानता व मजबूरी में नहीं कर पाते.
यही समय किसी बच्चे के शरीर व दिमाग के बेहतर विकास के लिए महत्वपूर्ण है. तथ्य व आंकड़ों के जरिये बच्चों की दुर्दशा पर बोलते हुए डॉ मधुलिका ने कहा कि बच्चों पर निवेश (खर्च व देखभाल के संदर्भ में) न कर हम उन्हें गंभीर बीमारी, अवरुद्ध विकास तथा अंतत: गरीबी की अोर धकेल रहे हैं. उन्होंने कहा कि समाज का हर तबका जब बच्चों के बारे सोचेगा, तभी फर्क पड़ेगा.
प्राथमिक शिक्षा में सुधार बेहद जरूरी : हरिवंश
पत्रकार हरिवंश ने कहा कि बच्चे वोट बैंक नहीं हैं, इसलिए राजनीतिक दल उनके बारे नहीं सोचते. तमाम संसाधन के रहते झारखंड के बच्चों की स्थिति अफ्रीकी देशों से थोड़ी ही बेहतर है. ऐसा गवर्नेंस के फेल होने से हुआ है. प्राथमिक शिक्षा की स्थिति में बगैर सुधार किये समाज व देश का विकास संभव नहीं है. शिक्षकों का स्तर सुधारना भी बेहद जरूरी है. कार्यक्रम में एक्सआइएसएस के निदेशक डॉ एलेक्स एक्का ने भी अपने विचार व्यक्त किये. वहीं प्रो केके भगत ने विषय प्रवेश कराया. इससे पहले यूनिसेफ की संचार अधिकारी मोइरा दावा ने सबका अौपचारिक स्वागत किया. इस अवसर पर प्रो रमेश शरण व एक्सआइएसएस की फैकल्टी सहित विद्यार्थी उपस्थित थे.

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