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सपना ही रह गया जीरो पावर कट

रांची: झारखंड में बिजली की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. फिलहाल राज्य को 2100 मेगावाट बिजली की जरूरत है. सरकार किसी तरह 1800 मेगावाट बिजली की जरूरत को पूरा कर पा रही है. इस कारण कभी भी पूरे राज्य में जीरो कट बिजली की आपूर्ति नहीं की जाती. ग्रामीण इलाकों में आज भी 15 […]

रांची: झारखंड में बिजली की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. फिलहाल राज्य को 2100 मेगावाट बिजली की जरूरत है. सरकार किसी तरह 1800 मेगावाट बिजली की जरूरत को पूरा कर पा रही है. इस कारण कभी भी पूरे राज्य में जीरो कट बिजली की आपूर्ति नहीं की जाती. ग्रामीण इलाकों में आज भी 15 से 18 घंटे ही बिजली मिलती है. वहीं शहरी इलाकों में 18 से 20 घंटे बिजली की अापूर्ति की जा रही है.
वर्ष 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे, जो 2016 में बढ़ कर 26 लाख हो गये. उस समय 82 करोड़ यूनिट बिजली की खपत प्रतिमाह होती थी. राजस्व 125 करोड़ मिलता था, जबकि खर्च 260 करोड़ रुपये प्रतिमाह था. अब उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने से प्रतिमाह 97 करोड़ यूनिट की खपत होती है. राजस्व 220 करोड़ ही प्राप्त होता है. झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड 370 करोड़ रुपये की बिजली प्रतिमाह खरीदता है. निगम का अपना स्थापना व्यय 35 करोड़ के करीब है. यानी निगम को प्रतिमाह अभी भी 185 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है.
किस जिले में कितने
घंटे मिल रही है िबजली
राज्य के बिजली जिले आपूर्ति
रांची 19-21 घंटे
खूंटी 18-20 घंटे
देवघर 22-23 घंटे
दुमका 20-22 घंटे
पाकुड़ 20-22 घंटे
साहिबगंज 15-18 घंटे
गोड्डा 12-14 घंटे
जामताड़ा 16-20 घंटे
पूर्वी सिंहभूम 18-20 घंटे
पश्चिमी सिंहभूम 19-20 घंटे
सरायकेला खरसावां 18-20 घंटे
चतरा 10-12 घंटे
गढ़वा 12-14 घंटे
हजारीबाग 15-20 घंटे
पलामू 18-20 घंटे
रामगढ़ 14-19 घंटे
कोडरमा 12-14 घंटे
गुमला 14 से 16 घंटे
लोहरदगा 15 से 18 घंटे
नोट : पूर्वी सिंहभूम जिले में केवल जादूगोड़ा व धालभूमगढ़ में 22 घंटे तक बिजली मिल रही है.
व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए अब तक नहीं किये गये ठोस प्रयास
राज्य में बिजली की व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए ठोस काम नहीं हो सका है. हालांकि, पिछले एक वर्ष में व्यवस्था सुधारने का काम धरातल पर उतारने के लिए गंभीर प्रयास शुरू किये गये हैं. पर, वास्तविकता यह है कि झारखंड गठन के समय अंडरग्राउंड केबलिंग का काम अब तक शुरू नहीं हो सका है. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत लगभग 17 हजार गांवों का विद्युतीकरण किया गया. पर वहां बिजली मिले, इसकी समुचित व्यवस्था नहीं की जा सकी है. अब भी गांवों में एक बार ट्रांसफारमर जल जाने पर महीनों तक गांव में बिजली गुल रहती है. शहर में बारिश के दौरान ग्रिड फेल हो जाते हैं. सरकार के पास बैकअप में ट्रांसफारमर नहीं है. दूसरी ओर, गढ़वा जिले में आज भी यूपी पर ही बिजली की निर्भरता है. दुमका समेत संताल परगना में पूरी व्यवस्था बिहार व एनटीपीसी के कहलगांव पावर प्लांट पर टिकी है. इसे ललपनिया और पतरातू से जोड़ने का काम आज तक नहीं हो सका है.
दो निजी कंपनियों से मिली अतिरिक्त बिजली पर स्थिति जस की तस
राज्य गठन के बाद लगी दो निजी कंपनियों इनलैंड पावर से 55 मेगावाट व आधुनिक पावर से 122 मेगावाट अतिरिक्त बिजली राज्य को मिल रही है. पीटीपीएस की स्थिति जस की तस है. रघुवर दास की सरकार ने एनटीपीसी के हाथों पीटीपीएस का संचालन सौंप दिया है. एनटीपीसी वहां चार हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगायेगा और पीटीपीएस के वर्तमान प्लांट से उत्पादन 325 मेगावाट तक बढ़ायेगा. हालांकि, इसमें समय लगेगा. वर्तमान में राज्य में बिजली की पूरी निर्भरता टीवीएनएल पर है. यहां से लगभग 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. लेकिन, अतिरिक्त लोड बढ़ते ही टीवीएनएल का एक यूनिट बैठ जाती है. इसी साल पिछले तीन महीनों से टीवीएनएल का केवल एक ही यूनिट काम कर रही है. सिकिदिरी हाइडल की स्थिति सामान्य नहीं है. केवल बारिश के मौसम में ही यह यूनिट चालू होती है. इससे पीक आवर में 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है.

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