रांचीः वन अधिकार अधिनियम-06 के लोकसभा से पास होने के बाद से ही लातेहार जिले में वन भूमि पर लगातार अतिक्रमण होता रहा है. पहले संबंधित थाने में प्राथमिकी (5.2.09 व 31.7.09), फिर उपायुक्त (25.3.09, 2.9.09 व 22.9.12) के स्तर से समाधान न होने पर वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) लातेहार ने अब वन सचिव को त्रहिमाम भेजा है.
डीएफओ ने लिखा है कि वन अधिकार अधिनियम-06 की गलत व्याख्या कर व अवैध रूप से वन भूमि का पट्टा पाने की प्रवृत्ति तथा ग्रामीणों को भड़काने वालों पर कार्रवाई अपेक्षित है. ऐसा नहीं हुआ, तो वन संपदा से भरपूर लातेहार जिले का वन उजड़ जायेगा व इससे देश को अपूरणीय क्षति होगी. अतिक्रमणकारियों को हिंसक व हथियारों से लैस बताया गया है.
इससे पहले डीएफओ ने उपायुक्त से वन भूमि में पारंपरिक रूप से जोत-कोड़ करनेवालों को चिह्न्ति करने के लिए नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी हैदराबाद से 13.12.05 के पूर्व का हाई रिजोल्यूशन सटेलाइट इमेज मंगाने का आग्रह किया था. ताकि पट्टे के दावेदारी की सत्यता की जांच हो सके. लेकिन विभाग ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया.
संयुक्त सर्वे के बगैर पट्टा : डीएफओ, लातेहार ने 22.9.12 को उपायुक्त को लिखे पत्र में कहा था कि जिले में 476 पट्टे बिना संयुक्त सर्वे के दिये गये हैं. इससे कई दावे गलत रूप से निर्गत हुए हैं. कहा गया है कि गलत पट्टा निर्गत किये जाने के संबंध में कई शिकायतें प्राप्त हो रही हैं.हेठबेसरा के ग्रामीणों ने लिखित रूप से आवेदन देकर गलत लोगों को पट्टा दिये जाने का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है, जिसकी जानकारी उपायुक्त को भी दी गयी है.
क्या है मामला : लातेहार के मनिका थाने के गांव जेरुआ, जगतु, कुई, कोपे व लंका के 32 ग्रामीणों पर अवैध तरीके से जंगल के पेड़-झाड़ी काटने को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गयी है. इन पर कुल 174 एकड़ जमीन पर कब्जे का आरोप है. डीएफओ के अनुसार अभी वर्तमान में कढ़िमा, तुबैद, तुपुकला, चकला, रोल, पीरी, गड़गोमा, हेठ बसेरा व सबानो सहित अन्य गांवों में भी वन भूमि का पट्टा पाने के लिए जंगल उजाड़े जा रहे हैं. वन अधिकार अधिनियम-06 की आड़ में ग्रामीणों को भड़काने का आरोप बालूमाथ के जोगियाडीह मिशन के जॉर्ज मोनोपल्ली उर्फ धोती फादर सहित एक गैर सरकारी संस्था ग्राम स्वराज अभियान के संयोजक भूखन सिंह व नेयामत अंसारी पर लग रहा है.
इन दोनों पर प्राथमिकी भी दर्ज की गयी है, लेकिन ये लोग आज भी अतिक्रमण में शामिल बताये गये हैं. इधर वन विभाग द्वारा ग्रामीणों पर मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी का भी असर नहीं दिख रहा.