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झारखंड की महिलाअों के लिए फिक्रमंद थे डॉ कलाम

भारत रत्न एपीजे डॉ अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर 1931 को हुआ था. मिसाइल मैन के नाम से विख्यात तथा भारत के राष्ट्रपति रह चुके डॉ कलाम की अाज जयंती है. वैज्ञानिक से लेखक व राष्ट्रपति तक की भूमिका में उनका जीवन देश को मजबूती तथा आम जनों को प्रेरणा देनेवाला रहा. सोसाइटी फोर […]

भारत रत्न एपीजे डॉ अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर 1931 को हुआ था. मिसाइल मैन के नाम से विख्यात तथा भारत के राष्ट्रपति रह चुके डॉ कलाम की अाज जयंती है. वैज्ञानिक से लेखक व राष्ट्रपति तक की भूमिका में उनका जीवन देश को मजबूती तथा आम जनों को प्रेरणा देनेवाला रहा. सोसाइटी फोर रूरल इंडस्ट्रिलाइजेशन (एसअारआइ), बरियातू रांची के संस्थापक रहे डॉ एके बसु ने डॉ कलाम के साथ लंबा वक्त बिताया है. डॉ कलाम को रांची लाने का श्रेय डॉ बसु को जाता है. इन दिनों कोलकाता में रह रहे डॉ बसु ने डॉ कलाम की जयंती पर उनसे जुड़ी कुछ बातें प्रभात खबर संवाददाता संजय से साझा की है.
रांची. मैंने ईश्वर को नहीं देखा है. पर यदि दयालु होना तथा सबकी भलाई सोचना ईश्वरीय गुण हैं, तो डॉ कलाम में यह गुण भरे थे. मैं डॉ कलाम से पहली बार तब मिला, जब मुझे केंद्रीय कैबिनेट की सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में चुना गया. इसके बाद उन्होंने योजना आयोग व डिपार्टमेंट अॉफ इलेक्ट्रोनिक्स जैसी अनेक समितियों में मुझे रखा. हम नॉर्थ ब्लॉक के उनके कार्यालय या फिर एशियाड विलेज वाले एक कमरे के उनके हॉस्टल में मिला करते थे. इन दोनों जगहों पर किताबें भरी थी तथा वहां बैठने के लिए बड़ी कम जगह होती थी. डॉ कलाम कहते थे कि मेरा काम मुझे बच्चों व ग्रामीणों से दूर रखता है. मैं इनके बीच अधिक वक्त गुजरना चाहता हूं.
इसके बाद डॉ कलाम के लिए एक्सपोजर विजिट की योजना बनायी गयी. हमने तीन जगहों का दौरा किया. सबसे पहले रांची की एक संस्था सोसाइटी फोर रूरल इंडस्ट्रिलाइजेशन (एसआरआइ), फिर सामाजिक कार्यकर्ता बंकर रॉय के अजमेर, राजस्थान स्थित ड्रीम वर्ल्ड तिलोनिया तथा इसके बाद कर्नाटक में बीआर हिल स्थित सुदर्शन अाश्रम हम गये. डॉ कलाम ने अपनी किताब इग्नाइटेड माइंड (सुलगता मस्तिष्क) में एसआरआइ रांची में महिलाअों तथा स्कूली बच्चों के साथ हुई बातचीत का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि इस यात्रा ने मुझे एक निश्चय प्रदान किया.
डॉ कलाम की एसआरआइ के रूरल टेक्नोलॉजी पार्क (आरटीपी), अनगड़ा की यात्रा 25 अप्रैल 1998 को हुई थी. यह उनकी रांची (अौर झारखंड भी) की पहली यात्रा थी. जब हम रूरल टेक्नोलॉजी पार्क (आरटीपी), अनगड़ा (रांची) गये, तो कुरसी पर बैठे डॉ कलाम अचानक कुरसी छोड़ कर ग्रामीण महिलाअों के साथ जमीन पर बैठ गये. इनमें से ज्यादातर जनजातीय (ट्राइबल) महिलाएं थी, जो आरटीपी के आसपास के गांव की थीं. मुझे थोड़ा संदेह था कि ये महिलाएं डॉ कलाम से अपनी बात कह पायेंगी. पर महिलाएं बिना झिझक के डॉ कलाम से बात करने लगीं.
महिलाअों से मिलने के बाद डॉ कलाम ने उनके लिए एक बेहतर स्वास्थ्य जांच शिविर लगाने की योजना बनायी. इसके एक सप्ताह के अंदर ही चीफ अॉफ डिफेंस रिसर्च की अोर से गठित चिकित्सकों की एक टीम रांची आयी. इसने करीब 750 ग्रामीणों का बड़े आधुनिक तरीके से स्वास्थ्य जांच किया. आरटीपी दौरे के बाद डॉ कलाम ने झारखंड के लिए तीन बातें सुनिश्चित करने का सुझाव दिया.

पहला जनजातीय महिलाअों के लिए सस्ता व बढ़िया सैनिटरी नैपकिन विकसित करना, ग्रामीणों को कम दर पर अायोडाइज्ड नमक उपलब्ध कराना तथा तीसरा महिलाअों के लिए सालों भर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करना. एक बार राष्ट्रपति भवन भ्रमण के दौरान मैंने उनसे पूछा कि भारत का राष्ट्रपति होने के बाद वह क्या बनना या होना चाहते हैं. डॉ कलाम कुछ देर चुप रहे, फिर कहा – मैंने अपने कैरियर की शुरुआत लेक्चरर से की थी. मैं चाहता हूं कि शिक्षक के रोल में ही मेरा जीवन समाप्त हो. अपने दिल में उनके लिए एक भारी खालीपन के बावजूद मुझे खुशी है कि उनकी इच्छा पूरी हो सकी.

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