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झारखंड में 16 साल में 154 हाथियों की हुई माैत

रांची: झारखंड गठन के बाद से पिछले 16 साल में 154 हाथियों की माैत हो चुकी है. इनकी माैत के पीछे कई कारण हैं. सामान्य माैत के अलावा ट्रेन दुर्घटना, करंट, जहर आदि खाने से हाथियों की माैत हुई है. जिन कारणों से हाथियों की माैत होती है, वे कारण आज भी माैजूद हैं. हालांकि […]

रांची: झारखंड गठन के बाद से पिछले 16 साल में 154 हाथियों की माैत हो चुकी है. इनकी माैत के पीछे कई कारण हैं. सामान्य माैत के अलावा ट्रेन दुर्घटना, करंट, जहर आदि खाने से हाथियों की माैत हुई है. जिन कारणों से हाथियों की माैत होती है, वे कारण आज भी माैजूद हैं. हालांकि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा हाथियों को बचाने के लिए लगातार कदम उठाया जा रहा है. इसके बावजूद हाथियों की मौत हो रही है. हाथी दांत के लिए शिकार किये जाने के कारण भी उनकी माैत हुई है.

वहीं राज्य गठन के बाद से हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी भी दर्ज की गयी है. वर्ष 2012 के सर्वे के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में 688 हाथी थे. वहीं वर्ष 2007 में हाथियों की संख्या 624 थी. चालू वित्तीय वर्ष में हाथियों की गणना की योजना बनायी जा रही है. उधर, केंद्र सरकार मानव और हाथियों के बीच संघर्ष रोकने के लिए वर्ष 1992 से प्रोजेक्ट एलिफैंट चला रही है, लेकिन इसका अपेक्षित लाभ सामने नहीं आ पाया है. झारखंड में भी प्रोजेक्ट एलिफैंट लागू है. सिंहभूम क्षेत्र को गज आरक्ष भी घोषित किया गया है.

इस संबंध में सीसीएफ (वन्य प्राणी) राजीव रंजन बताते हैं कि प्रोजेक्ट के तहत लघुकालीन व दीर्घकालीन योजना ली जाती है. लघुकालीन योजना के तहत हाथी प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में लोगों को जागरूक किया जाता है. उन्हें हाथी के मूवमेंट की जानकारी दी जाती है. हाथियों से बचने के उपाय बताये जाते हैं. टीम बना कर गांव की अोर आनेवाले हाथियों को भगाया जाता है, ताकि कोई दुर्घटना नहीं हो. दीर्घकालीन योजना के तहत बांस के पाैधों का रोपण किया जाता है. गांवों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगायी जाती है. लोगों को सोलर टार्च दिये जाते हैं. हाथी की समस्या से ग्रस्त देश के अन्य राज्यों सहित झारखंड भी हाथियों से बचने का सिर्फ मैनेजमेंट करता है. देश में अब तक इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है.
क्यों होती है हाथियों की माैत
हाथी लांग रेंज एनिमल माना जाता है. हाथी एक जगह पर सालोंभर नहीं रह सकता. जहां भोजन मिलता है, वहां रहता है. भोजन खत्म होने पर वह आगे बढ़ जाता है. हाथियों के आने-जाने का परंपरागत मार्ग (कॉरीडोर) प्रभावित हो गया है. उनके मार्ग में जहां पहले जंगल थे, आज कई जगहों पर मानव आबादी बस गयी है. खेत-खलिहान बन गया है. इससे हाथियों के वास-निवास स्थल पर भी असर पड़ा है. जंगल में उनके भोजन की कमी हो गयी है. हाथी के हैबिट में भी बदलाव आ रहा है. भोजन की तलाश में हाथी मानव आबादी की अोर आ जाते हैं. वहां खेत में लगी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. कुछ गांवों में देशी शराब भी बनायी जाती है. हाथी को शराब की गंध दो-तीन किमी दूर से ही लग जाती है. परंपरागत मार्ग से भटक कर हाथियों के आबादी की अोर आने से घटनाएं बढ़ गयी है. हाथी गड्ढे में गिर जाते हैं या बिजली के हाइ वोल्टेज तारों की चपेट में आ जाते हैं. कई जगहों पर रेलवे ट्रैक जंगलों के बीच से गुजरा है. हाथी रेलवेे ट्रैक पर आते हैं, जिससे वे ट्रेन की चपेट में आते हैं. जहरीला पदार्थ खा लेते हैं. हाथी दांत के लालच में उनका शिकार भी किया जाता है.
खूंटी और जमशेदपुर में बिजली करंट से मरे थे दो-दो हाथी
खूंटी जिला में 16 मार्च 2010 को दो हाथियों की दर्दनाक माैत हो गयी थी. हाथी जंगल में हाइटेंशन बिजली तार की चपेट में आ गये थे. 25 जनवरी 2009 को खूंटी के ही तोरपा क्षेत्र में जहर से एक हाथी की माैत हो गयी थी. तोरपा क्षेत्र में 19 सितंबर 2004 को 11,000 वोल्ट की चपेट में आने से दो हाथी मारे गये थे. इसी प्रकार जमशदपुर जिला के केवार गांव के समीप हाइ वोल्टेज करंट से दो हाथियों की माैत हो गयी थी.
वर्षवार हाथियों की माैत (विभिन्न कारणों से)
वित्तीय वर्ष संख्या
2000-2001 02
2001-2002 04
2002-2003 09
2003-2004 18
2004-2005 10
2005-2006 05
2006-2007 09
2007-2008 15
वित्तीय वर्ष संख्या
2008-2009 22
2009-2010 13
2010-2011 13
2011-2012 09
2012-2013 08
2013-2014 10
2014-2015 05
2015-2016 में (31 मार्च तक) 02
इस वर्ष होगी हाथियों की गणना
चालू वित्तीय वर्ष 2016-2017 में हाथियों की गणना की जायेगी. सीसीएफ (वन्य प्राणी) राजीव रंजन ने बताया कि हाथियों की गणना पूरे देश में एक साथ की जायेगी. गणना के पहले कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा, ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो. अक्तूबर के बाद से हाथियों के गणना की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. हाथियों की सुरक्षा और अन्य कारणों से उनके कल्याण के लिए योजना बनाने में गणना में प्राप्त आंकड़ों सहायक होंगे.

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