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भीख मांग कर पेट पाल रहे हैं पहाड़ के राजा पहाड़िया
सरकार आदिम जनजाति के कल्याण और उत्थान के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाएं चला रही है. इस मद में करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. आदिम जनजाति अब भी आदम जमाने में जीने को विवश है. आज हम आपको पहाड़ों के राजा कहे जानेवाले पहाड़िया जनजाति की जिंदगी से […]
सरकार आदिम जनजाति के कल्याण और उत्थान के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाएं चला रही है. इस मद में करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. आदिम जनजाति अब भी आदम जमाने में जीने को विवश है. आज हम आपको पहाड़ों के राजा कहे जानेवाले पहाड़िया जनजाति की जिंदगी से रूबरू करा रहे हैं.
बरहरवा/बरहेट:संताल की पहाड़िया आदिम जनजाति पहाड़ के राजा के नाम से जाने जाती है, क्योंकि सदियों तक इन्होंने संताल के पहाड़ों में सभ्यता को जिंदा रखा है. प्रकृति की खूबसूरती व जीवन की उमंग को संजोये रखा है. लेकिन अब स्थिति यह हो गयी है कि पहाड़िया लोग दो जून की रोटी के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं. सरकार के लाख दावे के बावजूद आज वे मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं. पहाड़ियों की इस त्रासदी को सामने लाने के लिए ‘प्रभात खबर’ की टीम साहेबगंज जिले के तालझारी प्रखंड के देवाना पहाड़ गांव पहुंची. इस गांव में आदिम जनजाति के लोगों के 35 घर है. गांव में करीब डेढ़ सौ पहाड़िया जनजाति के लोग रहते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए अब भी कोई सड़क नहीं है. लोगों काे न तो बिरसा आवास मिला है और न ही इंदिरा आवास. गांव में न तो विद्यालय है और न ही आंगनबाड़ी केंद्र. आजीविका व रोजगार के कोई स्थायी साधन नहीं है. गांव के अधिकतर लोगाें को न शिक्षा के साधन नसीब है न ही चिकित्सा के. परिणाम यह है कि ये विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गये हैं. इनके आजीविका के परंपरागत संसाधन ज्यों-ज्यों घट रहे हैं, इनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. गांव में पेयजल के लिए मात्र एक कुआं है. वह भी गरमी के दिनों में सूख जाता है. पीने के पानी के लिए लोगों को गरमी के मौसम में तीन किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है.
नहीं आते हैं पदाधिकारी व नेता: देवाना गांव के पहाड़िया जनजाति के चंदना पहाड़िन, सुरजी पहाड़िन, मंगरी पहाड़िन आदि का कहना है कि गांव में आज तक कोई भी पदाधिकारी उनकी बदहाली का जायजा लेने नहीं आये. आज तक किसी जनप्रतिनिधि को भी पहाड़िया लोगों की बेबसी का खयाल नहीं आया. चुनाव के समय कुछ कार्यकर्ता वोट मांगने जरूर आते हैं. लेकिन चुनाव के बाद सब कुछ पहले जैसा हो जाता है. लोग अपनी बदहाली के साथ जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. यही कारण है कि गांव के अधिकतर लोग या तो लकड़ी बेच कर आजीविका के साधन जुटाते हैं या भीख मांग कर दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं. सरकार की कल्याण योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता है. कुछ बिचौलिये गांव के लोगों को बहला-फुसला कर कुछ कागजातों पर अंगुली के निशान ले लेते हैं. लेकिन इसके बाद वे लापता हो जाते हैं.
अब तक नहीं पहुंची बिजली : देवाना पहाड़ गांव के लोगों को नहीं मालूम कि बिजली क्या होती है. बल्ब कैसे जलते हैं. आज तक गांव में न तो बिजली के पोल गड़े और न ही तार आये. अन्य ग्रामीण योजनाओं का भी यही हाल है.
नहीं मिलती पेंशन : विकलांग मैसा पहाड़िन, सुरजी पहाड़िन, गुड़िया पहाड़िन, वृद्ध चांदी पहाड़िन, मंगरी पहाड़िन, झबरी पहाड़िन,देवी पहाड़िन आदि ने बताया कि उन्हें आज तक पेंशन योजना का लाभ नहीं मिला है.और न ही इसकी सुध लेने के लिए कोई आता है. वे लोग बरहेट शिवगादी मंदिर की सीढ़ियों पर भीख मांग कर गुजर-बसर करते हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का है विस क्षेत्र : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का विधानसभा क्षेत्र बरहेट है. इसके तहत शिवगादीधाम भी आता है. एक पूर्व मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में आदिम जनजाति की ऐसी स्थिति है . इतना ही नहीं जिला परिषद अध्यक्ष रेणुका मुर्मू भी बरहेट प्रखंड की ही रहनेवाली हैं. फिर भी बरहेट प्रखंड के आदिम जनजाति समुदाय के लोग सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं. जिला परिषद अध्यक्ष रेणुका मुर्मू के पति लालू भगत शिवगादी प्रबंधन समिति के अध्यक्ष हैं. उन्होंने भी माना कि भीख मांगने वाले पहाड़िया लोग शिवगादीधाम के ऊपर देवाना गांव में रहते हैं.
कहते हैं पहाड़िया नेता : पहाड़िया नेता हीरा पहाड़िया ने कहा कि राज्य गठन के बाद आदिम जनजाति समुदाय के लोगाें में आस जगी थी कि मगर आज सब कुछ उलटा ही दिख रहा है. अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं कि आदिम जनजाति के लोगों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा.
कहते हैं पहाड़िया कल्याण पदाधिकारी : जिला पहाड़िया कल्याण पदाधिकारी उत्तम कुमार भगत ने कहा कि पहाड़िया के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलायी जा रही है. फिर भी प्रभात खबर के माध्यम से जो जानकारी मिली है उस पर जांच कर कार्रवाई की जायेगी.
क्या कहते हैं बीडीओ : तालझारी बीडीओ धीरज प्रकाश ने कहा कि उक्त गांव के लोगों को अगर सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है तो उन्हें हरसंभव मदद किया जायेगा. सरकार की जो भी योजनाएं है. उनका लाभ उन्हें दिया जायेगा.
कहां है देवाना पहाड़ गांव
बरहेट शिवगादी मंदिर के बगल से सीढ़ी होते हुए पहाड़ चढ़ने के एक घंटा सफर करने के बाद देवाना गांव आता है. यह गांव तालझारी प्रखंड में आता है. ग्रामीणों को तालझारी जाने के लिए बरहेट-बरहरवा सड़क मार्ग होते हुए करीब 80 किलोमीटर लंबा सफर तय करना पड़ता है. गांव से बरहेट प्रखंड मुख्यालय की दूरी करीब 10 किलोमीटर है. गांव के लोगों को अनाज के लिए बरहेट के खैरवां जाना पड़ता है.
क्या कहते हैं डीसी
अगर किसी पहाड़िया को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल रही है, तो यह जांच का विषय है. पहाड़िया के उत्थान के लिए सरकार कटिबद्ध है. जांच कर सभी को लाभ दिलाया जायेगा.
उमेश प्रसाद सिंह
डीसी, साहिबगंज
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