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एसटी बच्चों के लिए चिंतित नहीं है विभाग, केंद्र ने दो वर्ष पूर्व दिये थे दो करोड़

रांची : राज्य के स्कूल-कॉलेजों में सिकल सेल एनिमिया की जांच का काम शुरू नहीं हो सका है. कल्याण विभाग व स्वास्थ्य विभाग को मिल कर यह काम करना था, जबकि केंद्र सरकार ने इस गंभीर व वंशानुगत बीमारी की पहचान तथा इसे अन्य लोगों में फैलने से रोकने के लिए कल्याण विभाग को दो […]

रांची : राज्य के स्कूल-कॉलेजों में सिकल सेल एनिमिया की जांच का काम शुरू नहीं हो सका है. कल्याण विभाग व स्वास्थ्य विभाग को मिल कर यह काम करना था, जबकि केंद्र सरकार ने इस गंभीर व वंशानुगत बीमारी की पहचान तथा इसे अन्य लोगों में फैलने से रोकने के लिए कल्याण विभाग को दो वर्ष पूर्व ही दो करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी थी. अब केंद्र सरकार इस संबंध में पूछताछ कर रही है. कल्याण विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि सिकेल सेल रोग की जांच व इसकी रोकथाम अब स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे है. वहीं स्वास्थ्य विभाग से इसकी प्रगति की जानकारी नहीं मिल सकी है.
इससे पहले कल्याण विभाग ने जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ) से सिकल सेल रोग की जांच संबंधी प्रस्ताव मांगा था. टीआरआइ ने जनजातीय विद्यालयों सहित एकलव्य व अाश्रम विद्यालय में जांच संबंधी प्रस्ताव विभाग को भेजा था. इन विद्यालयों में करीब 17 हजार बच्चे हैं. काउंसेलर, रिसर्च सुपरवाइजर व इंवेस्टिगेटर व लैब पौथोलॉजिस्ट के माध्यम से रोग की जांच, इसके अध्ययन व रिपोर्ट पर करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च होने थे. इसी के बाद केंद्र ने विभाग को दो करोड़ रुपये वित्तीय वर्ष 2014-15 में उपलब्ध कराये थे. पर एक सेमिनार के अलावा सिकल सेल रोग संबंधी कोई अध्ययन नहीं हुआ न ही रिपोर्ट तैयार हुई.
सिकल सेल से परेशानी
संक्रमण का ज्यादा संभावना व प्रभाव, एनिमिया, हाथ-पैर में दर्द व सूजन, निमोनिया, छाती में दर्द, खांसी, सांसों में तकलीफ व बुखार, मस्तिष्क आघात की संभावना, पीलिया तथा पांव में नासूर (घाव) होना. इसके अलावा स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य समस्याएं भी होती हैं.
मंत्री ने कहा था, हम सिर्फ कोरम पूरा न करें
वर्ष 2014 में सिकेल सेल रोग संबंधी सेमिनार हुआ था. टीआरआइ के सभागार में आयोजित इस सेमिनार में कल्याण मंत्री लुईस मरांडी ने कहा था कि यह गंभीर बीमारी है, जो किसी का भी जीवन खत्म कर सकती है. अब हमारे सामने इसके प्रचार-प्रसार व रोकथाम का अवसर है. इसकी पहचान के लिए सभी स्कूल-कॉलेज के अलावा एक-एक पंचायत में जाना होगा. यह सरकार का कार्यक्रम है. हम सिर्फ कोरम पूरा न करें, बल्कि इसकी सफलता सुनिश्चित करें.
क्या है सिकल सेल : सिकल सेल रोग लाल रक्त कण समूहों का वंशानुगत विकार है. हिमोग्लोबिन लाल रक्त कण में मौजूद प्रोटीन है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन का संचार करता है. हर व्यक्ति में दो प्रकार के हिमोग्लोबिन जीन पाये जाते हैं. एक उसके पिता का दूसरा उसकी माता का. सिकेल सेल रोग में लाल रक्त कण कड़ा व चिपचिपा हो जाता है तथा इसका आकार हंसुए (सिकल) की तरह हो जाता है, इसलिए इसे सिकल सेल बोलते हैं. इस सेल के रक्त वाहिनियों में चिपक जाने से शरीर में अॉक्सीजन का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. इससे कई बीमारियां जन्म लेती हैं. सिकल रोग से प्रभावित मां-बाप से उनके बच्चे को भी यह रोग मिलता है.
सावधानी जरूरी : जीवनशैली से इस बीमारी पर कोई फर्क नहीं पड़ता, पर इसे फैलने से रोका जा सकता है. यह एड्स या छुआछूत की बीमारी नहीं है. पति-पत्नी दोनों सिकेल प्रभावित हों, तो बच्चे में भी इसकी संभावना बढ़ जाती है. सामाजिक जागरूकता से ऐसी शादी टाल कर इस पर रोकथाम संभव है. यानी सिकल सेल प्रभावित दो नौजवानों को एक गोत्र मान कर शादी से बचना होगा. जनजातीय समुदाय में रिश्तेदारी में भी शादियां होती हैं. इससे भी सिकल सेल बीमारी को बढ़ावा मिलता है, इसलिए सिकल सेल प्रभावित बच्चों-नौजवानों की पहचान जरूरी है. इसके लिए जनजातीय इलाके के सभी स्कूल-कॉलेज व अन्य जगहों पर बच्चों की जांच होनी है. जांच के बाद सिकल सेल रोग से अप्रभावित लोगों को सफेद कार्ड, इसके लक्षण से प्रभावित लोगों को सफेद व पीला कार्ड तथा सेल से पूरी तरह प्रभावित लोगों को पीला कार्ड निर्गत किया जाना है. सरकार मानती है कि इस कार्ड को सामाजिक मान्यता दिलानी होगी तथा शादी-विवाह के समय इस सूचना के आदान-प्रदान की जागरूकता बढ़ानी होगी. झारखंड के जनजातीय समुदाय में एनिमिया से ज्यादा मौत होती है. इनके बीच सिकल सेल की स्क्रीनिंग व काउंसलिंग पर जोर देना होगा.

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