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नयी पीढ़ी के कथाकारों में भी गंभीरता

गोष्ठी. कथा पावस के दूसरे दिन आड्रे हाउस में हुआ तकनीकी सत्र, कथाकार सी भास्कर राव ने कहा राष्ट्रीय कथा गोष्ठी कथा पावस के दूसरे दिन शनिवार को आड्रे हाउस में तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. मौके पर कई कथाकारों ने अपनी बातें रखीं. रांची : कथाकार सी भास्कर राव ने कहा कि कहानी […]

गोष्ठी. कथा पावस के दूसरे दिन आड्रे हाउस में हुआ तकनीकी सत्र, कथाकार सी भास्कर राव ने कहा
राष्ट्रीय कथा गोष्ठी कथा पावस के दूसरे दिन शनिवार को आड्रे हाउस में तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. मौके पर कई कथाकारों ने अपनी बातें रखीं.
रांची : कथाकार सी भास्कर राव ने कहा कि कहानी पढ़ कर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि लेखक किस पीढ़ी का है. यह अच्छी बात है. साहित्य में दो पीढ़ियों का टकराव होने से कथा साहित्य का सरोकार कम हो जायेगा. ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरानी पीढ़ी के ही कहानीकार में गंभीरता है, अब नयी पीढ़ी के कथाकारों में भी गंभीरता है. वे भी समाज की वस्तुस्थिति को अपनी लेखनी से उजागर कर रहे हैं. अपनी बातों को बेहतर ढंग से रखने की कला उनमें भी है. श्री राव पीढ़ी आमने-सामने विषय पर आड्रे हाउस में आयोजित तकनीकी सत्र में बोल रहे थेे.
इस अवसर पर सत्यनारायण पटेल ने कहा कि लेखक का कार्य है कि वह शोषण करनेवाले के गाल पर हाथ से ही नहीं, बल्कि अपनी भाषा से तमाचा जड़ें. अवधेश प्रीत ने कहा कि आज की पीढ़ी इसलिए सशक्त है, क्योंकि वह किसी क्रांति से प्रभावित नहीं हैं. श्री कमल ने कहा कि कहानी अच्छी है या बुरी, यह समय तय करेगा. संतोष दीक्षित ने कहा कि कहानी अनुभव के धरातल पर होनी चाहिए.
संजीव ने कहा कि कहानी अच्छी या बुरी नहीं होती है, बल्कि कहानी लिखने का ढंग अच्छा या बुरा होता है. चंदन पांडेय ने कहा कि कहानी जीवन की उत्कृष्ट अभिलाषा का एक प्रतिबिंब है. बसंत त्रिपाठी ने कहा कि रचना की दुनिया में हर व्यक्ति अकेला आता है.
शेखर मलिक ने कहा कि लेखन का इस्तेमाल सत्ता के विरुद्ध हथियार के रूप में किया जाना चाहिए. अल्पना मिश्र ने कहा कि पूर्वज साहित्यकारों से ही हमारी समझ बनी है.
वैभव सिंह ने कहा कि कहानियों को बचाइये, कहानियां बचेंगी तो हमारी स्वाधीनता बचेगी. श्री अखिलेश ने कहा कि नये कहानीकारों ने नयी दुनिया को नये नजरिये से देखा. शिवमूर्ति ने कहा कि हमेशा शिल्प व कथ्य बनावट के मामले में नयी पढ़ी पुरानी पीढ़ी से आगे है. आदिवासी के संदर्भ में आयोजित तीसरे सत्र में कथा में हाशिये का समाज में अनुज लुगुन ने कहा कि हाशिया खुद नहीं बनता, बल्कि बनाया जाता है. ज्योति लकड़ा ने कहा कि आदिवासी कभी गुलाम नहीं रहा है.
मंच का संचालन डॉ जिंदर सिंह मुंडा ने किया. इस अवसर पर अखिलेश, महादेव टोप्पो, महुआ माजी, जेब अख्तर, कलावंती सिंह, रूपलाल बेदिया, संतोष किड़ो, मनमोहन पाठक, सभाषचंद्र कुशवाहा, कालेश्वर आदि ने भी अपने-अपने विचार रखे. कार्यक्रम का समापन 31 जुलाई को होगा. एक तकनीकी सत्र के बाद समापन समारोह में बदलते गांव अौर प्रेमचंद की यादें विषय पर विचार-विमर्श किया जायेगा. इसकी अध्यक्षता खगेंद्र ठाकुर करेंगे.

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