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आत्महत्या का प्रयास करना भी है मनोरोग

रांची : करीब एक माह पहले 18-19 साल का एक युवक इलाज के लिए रिनपास आया था. उनके परिजनों का कहना था कि तीन माह पहले वह पूरी तरह ठीक था. अब वह नींद कम आने की शिकायत करता है. सोता कम है. भूख नहीं लगती है. युवक ने बताया कि सेक्स करने की इच्छा […]

रांची : करीब एक माह पहले 18-19 साल का एक युवक इलाज के लिए रिनपास आया था. उनके परिजनों का कहना था कि तीन माह पहले वह पूरी तरह ठीक था. अब वह नींद कम आने की शिकायत करता है. सोता कम है. भूख नहीं लगती है. युवक ने बताया कि सेक्स करने की इच्छा होती है. पढ़ाई में मन नहीं लगता है. थकान ज्यादा महसूस होती है. परिजनों ने बताया कि कुछ दिनों बाद यह पूरी तरह से ठीक व्यवहार करने लगता है. रिनपास के चिकित्सकों ने इसका इलाज किया.
पाया गया कि युवक बाइपोलर डिसऑर्डर का शिकार है. यह मूड डिसआॅर्डर का एक लक्षण है. यह एक प्रकार की मानसिक बीमारी है. इसका सही समय पर इलाज नहीं होने से परेशानी बढ़ जाती है. देर होने से मरीज को जीवन भर दवाइयां खानी पड़ती हैं. देर से इलाज शुरू होने पर इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है. इस तरह के छह से आठ मरीज रिनपास जैसे संस्थान में हर दिन इलाज के लिए आते हैं.
कई विद्वान हुए इस बीमारी के शिकार : डॉ सिद्धार्थ ने बताया कि इस बीमारी के शिकार काफी लोग थे. शेक्सपीयर जैसे विद्वान भी इस बीमारी से पीड़ित थे. इसके अतिरिक्त कई अच्छे पेंटर भी बाइपोलर डिसआर्डर के मरीज थे. उनमें बुरी गतिविधियों का फेज काफी कम समय के लिए होता था. इस कारण वे अपने जीवन में इसका सकारात्मक इस्तेमाल भी कर पाये.
क्या होता है बाइपोलर डिसआॅर्डर : रिनपास के सीनियर रेजीडेंट डॉ सिद्धार्थ ने बताया कि इस तरह की बीमारी में मन में दो तरह की गतिविधियां होने लगती है. एक गतिविधि मेनिया (बार-बार कोई काम करना) की ओर ले जाता है. दूसरा डिप्रेशन है. डिप्रेशन शुरुआती दौर में बहुत नुकसान नहीं करता है. लेकिन यह एक बीमारी है. इससे सामान्य जीवनशैली में दिक्कत होती है. कभी-कभी मरीज का मन दो-दो या तीन-तीन माह पर डिप्रेसिव स्टेज में चला जाता है. ऐसे में उसे नींद नहीं आती है. भूख खत्म हो जाती है. जीवनशैली बदलने लगती है. मन विचलित रहने लगता है. ऐसे मरीज आत्महत्या का प्रयास करने लगते हैं. बाइपोलर डिसआॅर्डर के मरीजों में सबसे ज्यादा लक्षण आत्महत्या के पाये जाते हैं. छह से आठ महीने में इस तरह के लक्षण देखे जाने पर इसे अल्ट्रा रैपिड साइकिल कहते हैं.
क्या है कारण : इसके कई कारण हैं. इसमें जेनेटिक, नशा, स्ट्रेस आदि प्रमुख हैं. इसकी ज्यादातर शुरुआत 18 से 20 साल की उम्र में होती है. शुरुआती दौर में मन कम लगता है. धीरे-धीरे यह गतिविधि बढ़ने लगती है. कम सोना, लड़ाई करने का मन करता है. बड़ों के समझाने पर मरीज झल्लाने लगता है. कई बार तो मरीज ज्यादा उग्र हो जाता है. इस कारण कई बार इस बीमारी से पीड़ित मरीज को हथकड़ी लगाकर अस्पताल लाया जाता है. ऐसे मरीज गांजा, शराब, दवा, नींद की गोली आदि का उपयोग भी करने लगता है. नशा के साथ-साथ बाइपोलर डिसऑर्डर के मरीज को ज्यादा परेशानी होती है. चिकित्सकों को दोनों बीमारी दूर करने लिए अलग-अलग दवाइयां चलानी पड़ती है.

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