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डालटनगंज के बोर्ड कार्यालय से कटे थे 22 पेड़, खादी बोर्ड की लाखों की लकड़ी रांची के टिंबर में

रांची: डालटनगंज खादी प्रशिक्षण सह बिक्री केंद्र के संचालक रमेश कुमार टंडन ने इस सिलसिले में कहा कि बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष के निर्देश पर वन विभाग से अनुमति लेकर पेड़ काटे गये थे और उसे रांची के जालान टिंबर में पहुंचाया गया था. बिक्री केंद्र परिसर से करीब 22 शीशम और सेमर के पेड़ […]

रांची: डालटनगंज खादी प्रशिक्षण सह बिक्री केंद्र के संचालक रमेश कुमार टंडन ने इस सिलसिले में कहा कि बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष के निर्देश पर वन विभाग से अनुमति लेकर पेड़ काटे गये थे और उसे रांची के जालान टिंबर में पहुंचाया गया था.

बिक्री केंद्र परिसर से करीब 22 शीशम और सेमर के पेड़ काटे गये थे. लगभग लकड़ी के 60 बोटा को रांची जालान टिंबर पहुंचा दिया गया था. इस सिलसिले में बोर्ड के निवर्तमान अध्यक्ष जयनंदू ने कहा कि लकड़ी लाने और टिंबर में रखे जाने की रसीद डालटनगंज के संचालक रमेश टंडन के पास है. लकड़ी अब भी जालान टिंबर में पड़ी हुई है. यह पूछे जाने पर कि लकड़ी काटने का उद्देश्य उसे बेच कर मिलनेवाले पैसे को बोर्ड के खाते में जमा करने या लकड़ी से बोर्ड का फर्नीचर बनाना था, जवाब में उन्होंने कहा कि बोर्ड के लिए फर्नीचर बनाने के उद्देश्य से लकड़ी काटी गयी थी.
लकड़ी टिंबर पहुंचा कर रसीद लेनेवाला जाने : अब तक इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि लकड़ी लाकर टिंबर पहुंचा कर रसीद लेने वाला ही जानेगा. इस मामले में टिंबर मालिक रतन जालान ने कहा कि 13 मार्च 2014 को उनके यहां लकड़ी पहुंचायी गयी थी. लकड़ी को अच्छी तरह चीर कर बीम बना दिया गया है. वहीं जलावन की लकड़ी को अलग रख दिया गया है. काफी दिन से पड़ी-पड़ी लकड़ियां अब सड़ रही है. कई बार बोर्ड अध्यक्ष को इसकी सूचना दी गयी और ले जाने का अनुरोध किया गया. पर अब तक लकड़ी टिंबर में ही पड़ी है.
तत्कालीन सरकार के फैसले से दिल्ली में बना था गेस्ट हाउस : यह पूछे जाने पर कि दिल्ली में कैसे झारखंड के एक राजनेता के अावास को प्रतिमाह 30 हजार रुपये किराये पर लिया गया था? उसमें गोदाम और लोगों के रहने के लिए जगह बनायी गयी थी, पूर्व अध्यक्ष जयनंदू ने कहा कि यह फैसला तत्कालीन सरकार का था. अगर वर्तमान सरकार को नहीं पसंद है, तो वह पहले के फैसले को बदल सकती है. दिल्ली में विक्रय केंद्र खोला गया है. इसलिए वहां गोदाम और लोगों के रहने के लिए जगह की जरूरत थी. जहां कम पैसे में गोदाम और रहने की जगह मिली, उसे ले लिया गया.
ट्रेजरी में पड़े हैं 29 करोड़ : वित्तीय मामलों से संबंधित पूछे गये सवाल के जवाब में जयनंदू ने कहा कि बोर्ड को सरकार की ओर से मदवार आवंटन मिलता है. बोर्ड को वित्तीय वर्ष 2015-16 तक कुल करीब 50 करोड़ और 2016-17 में करीब 25 करोड़ का आवंटन मिला है. इसमें से 2015-16 तक कार्यशील पूंजी के रूप में पांच करोड़ रुपये और 2016-17 में कार्यशील पूंजी के रूप में साढ़े चार करोड़ रुपये मिले हैं. बोर्ड को अब तक मिली सरकारी राशि में लगभग 29 करोड़ रुपये ट्रेजरी में पड़े हुए हैं.
मेरे पास नहीं थे प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार : जयनंदू
पूर्व चेयरमैन जयनंदू ने कहा है कि उनके पास कोई भी प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार नहीं थे. वित्त से संबंधित कोई फाइल उनके पास नहीं आती थी. सारे अधिकार मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (सीइओ) के पास रहते हैं. गड़बड़ियों के संबंध में वे ही बतायेंगे. बोर्ड के दस्तावेज गायब होने का आरोप भी सही नहीं है, क्योंकि अध्यक्ष किसी फाइल का कस्टोडियन नहीं होता है. अगर किसी शाखा की कोई फाइल गायब हुई है, तो उसके लिए शाखा कस्टोडियन जवाबदेह और जिम्मेवार हैं.
जयनंदू की संपत्ति की हो सीबीआइ जांच : देवी दयाल
भाजपा अनुसूचित जनजाति मोरचा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवी दयाल मुंडा ने मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से खादी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष जयनंदू आैर उनके परिजनों की संपत्ति, हवाई यात्रा और विदेश यात्रा की सीबीआइ जांच कराने का आग्रह किया है. श्री मुंडा ने इन पर अकूत संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया है.

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