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गड़बड़ी: 17 साल बाद रानी बागान भूमि घोटाले की जांच पूरी

रांची : भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी ) ने करीब 17 साल बाद चेशायर होम रोड स्थित रानी बागान भूमि घोटाले की आरंभिक जांच पूरी कर ली है. जांच के दौरान एसीबी को तत्कालीन रांची डीसी सुधीर प्रसाद सहित अन्य की संलिप्तता के साक्ष्य मिले हैं. आरंभिक जांच रिपोर्ट सरकार और संबंधित विभाग के सचिव के […]

रांची : भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी ) ने करीब 17 साल बाद चेशायर होम रोड स्थित रानी बागान भूमि घोटाले की आरंभिक जांच पूरी कर ली है. जांच के दौरान एसीबी को तत्कालीन रांची डीसी सुधीर प्रसाद सहित अन्य की संलिप्तता के साक्ष्य मिले हैं. आरंभिक जांच रिपोर्ट सरकार और संबंधित विभाग के सचिव के पास भेजी गयी है.

विभाग के सचिव से मामले में मंतत्व मांगा गया है. मंतव्य मिलने के बाद एसीबी मामले में सरकार के निर्देश पर प्राथमिकी दर्ज कर आगे की कार्रवाई करेगा. इसकी पुष्टि मंगलवार को एसीबी के चीफ एडीजी पीआरके नायडू ने की है. एसीबी के अधिकारियों के अलावा अन्य लोग जिनकी संलिप्तता से संबंधित साक्ष्य मिले हैं, उनमें तत्कालीन अवर निबंधक लीला बिहारी कपूर, वीरेंद्र सिंह, तत्कालीन सीओ नारायण मूर्ति, देव नारायण सिंह, नरेश कुमार, जमीन के मालिक विकास चंद्र सिन्हा, तत्कालीन सीआइ राजदेव दुबे, तत्कालीन राजस्व कर्मचारी गुलाब चंद्र राम, चितरंजन सहाय, इसदौर कुल्लू सहित अन्य लोगों की संलिप्तता की बात सामने आयी है. जांच के दौरान करीब 12 लोगों की मौत हो चुकी है, इसलिए उनकी संलिप्तता पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
उल्लेखनीय है कि सरकार के निर्देश पर एसीबी ने मामले की जांच 1998 में शुरू की थी. जांच के दौरान एसीबी को पता चला कि सिलिंग की जमीन को कृषि योग्य बता कर गलत तरीके से जिला प्रशासन के अधिकारियों के सहयोग से बेच दिया गया है. जांच के दौरान एसीबी ने पाया कि रानी बागान की भूमि पर 1976 से सिलिंग लगा हुआ था, लेकिन इससे संबंधित नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ था. सीलिंग लागू रहने के बावजूद जमीन के मालिक कोलकाता निवासी अतीश चंद्र सिन्हा, अधीश चंद्र सिन्हा और विकास चंद्र सिन्हा ने भू-राजस्व विभाग, कोलकाता मेें जमीन से संबंधित फरजी रिटर्न फाइल किया. उसमें यह बताया गया था कि उनके पास रानी बागान में जो 35. 03 एकड़ जमीन है, वह कृषि योग्य भूमि है. जमीन सिलिंग से संबंधित नहीं है. जब कोलकाता भू-राजस्व विभाग की ओर से रांची भू-अर्जन विभाग से मामले में पूछताछ की गयी, तब पता कि जमीन सिलिंग से अधिक है. सिलिंग एक्ट के अनुसार यह नियम है कि सरकार उक्त जमीन का अधिग्रहण कर लेती है. भूमि के मालिक अपनी जमीन को न बेच सकते हैं, न दान दे सकते हैं और न लीज पर दे सकते हैं.

भूमि के मालिक ने जमीन को कृषि योग्य भूमि बताते हुए अपर जिला समाहर्ता के पास एक आवेदन दिया था. तत्कालीन अपर समाहर्ता के निर्देश पर तत्कालीन सीओ नरेश कुमार ने भूमि की जांच की. उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में बताया कि भूमि कृषि योग्य है, जबकि जमीन आवासीय और सिलिंग की थी. इसी बीच आदिवासी गृह निर्माण समित के तत्कालीन अध्यक्ष अजय कच्छप ने संबंधित जमीन की मांग डीसी से सोसाइटी के लिए गृह निर्माण के लिए की, लेकिन उन्हें जमीन नहीं मिली. बाद में अजय कच्छप द्वारा बताया गया कि जमीन की बिक्री हो रही है. एसीबी ने जांच में पाया कि संबंधित जमीन का निबंधन करने के लिए तत्कालीन अपर समाहर्ता ने 27 जुलाई 1992 को रजिस्ट्रार को पत्र लिखा था. इस पर तत्कालीन डीसी का अनुमोदन प्राप्त था, लेकिन अजय कच्छप के विरोध के बाद 16 अक्तूबर 1992 को फिर से पत्र लिख कर जमीन के निबंधन पर रोक लगाने को कहा गया.

इस बीच जमीन की बिक्री शुरू हो चुकी थी. मामला जब तत्कालीन सरकार के संज्ञान में आया, तब सरकार के निर्देश पर मामले की जांच शुरू हुई. जांच की जिम्मेवारी विशेष सचिव अशोक वर्धन को सौंपी गयी. उन्होंने जांच में तत्कालीन डीसी सुधीर प्रसाद को निर्दोष बताया था. एसीबी ने वर्तमान जिला अपर समाहर्ता से तत्कालीन डीसी के हस्ताक्षर के संबंध में जानकारी ली. अधिकारियों को पता चला कि तत्कालीन अपर समाहर्ता ने जमीन के निबंधन से संबंधित जिस अधिकारी से अनुमोदन प्राप्त किया था, वह हस्ताक्षर तत्कालीन डीसी सुधीर प्रसाद का ही है. एसीबी ने जांच में यह भी पाया कि सिलिंग से अधिक जमीन का रकबा कुल 33. 78 एकड़ था. मामले में पूर्व में सुधीर प्रसाद एसीबी के अफसरों को बता चुके हैं कि वह मामले में निर्दोष हैं.

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