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यहां आग लगी, तो बुझेगी नहीं

गगनचुंबी इमारतों का शहर बनता जा रहा है रांची. नियमों को दरकिनार कर तंग गलियों में भी बहुमंजिली इमारतें धड़ल्ले से बन रही हैं. अधिसंख्य अपार्टमेंट में फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है. नगर निगम भी आंखें मूंदे है. गलियां इतनी संकरी है कि यदि आग लग गयी तो दमकल भी गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता. […]

गगनचुंबी इमारतों का शहर बनता जा रहा है रांची. नियमों को दरकिनार कर तंग गलियों में भी बहुमंजिली इमारतें धड़ल्ले से बन रही हैं. अधिसंख्य अपार्टमेंट में फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है. नगर निगम भी आंखें मूंदे है. गलियां इतनी संकरी है कि यदि आग लग गयी तो दमकल भी गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता. वहीं दूसरी ओर अग्निशमन विभाग आज भी वही पानीवाले दमकल पर निर्भर है. विभाग के पास वैसे उपकरण नहीं है, जिससे 15 से अधिक मंजिली इमारतों तक पहुंचा जा सके. दूसरी ओर अन्य महानगरों में आधुनिक अग्निशमन उपकरण से लैस होता है विभाग. झारखंड सरकार का ध्यान शायद इस ओर नहीं गया है कि गलती से कभी अगलगी की घटना हो जाये तो कैसे शीघ्र इस पर काबू पाया जाये.

इन गलियों में करोड़ों का होता है कारोबार लेकिन यहां की सुरक्षा है भगवान भराेसे

तंग गलियों में बसे शहर के अपर बाजार इलाके की पहचान बिजनेस हब के रूप में है. करोड़ों रुपये का हर दिन कारोबार होता है लेकिन सुरक्षा भगवान भरोसे है. यदि गलती से आग लग गयी तो सब कुछ खाक हो जायेगा. तंग गलियों में दमकल भी नहीं जा सकता. पूरे झारखंड के कारोबारी अमूमन यहीं से सामान खरीदते हैं. हर रोज तकरीबन 80 हजार लोग अपर बाजार खरीदारी करने आते हैं. भीड़ इतनी होती है कि इन संकरी गलियों में पैदल चलना मुश्किल होता है. व्यवसायियों की मानें तो केवल अपर बाजार से ही प्रतिदिन कम से कम 10 करोड़ से अधिक का कारोबार होता है.

सड़कों की चौड़ाई मात्र छह से आठ फीट

इस बिजनेस हब के श्रद्धानंद रोड, मौलाना आजाद रोड, गांधी चौक, सोनार पट्टी, ज्योति संगम रोड, कपड़ा पट्टी, रंगरेज गली, काली बाबू स्ट्रीट, महुआ गद्दी रोड की सड़कों की हालत ऐसी है कि किसी सड़क की चौड़ाई मुश्किल से छह फीट है तो किसी की चौड़ाई आठ फीट है. एक-दो प्रतिष्ठानों को छोड़ दिया जाये तो किसी ने अपनी दुकान में फायर फाइटिंग की व्यवस्था नहीं की है. ऐसे में यदि कभी अगलगी की घटना घटती है तो आग बुझाना मुश्किल होगा.

इन मोहल्लों की हालत भी नहीं है जुदा

यह हालत केवल अपर बाजार क्षेत्र में ही नहीं है. बल्कि ऐसी गलियों की भरमार शहर के विभिन्न इलाकों में है. इन गलियों में भी किसी की चौड़ाई मात्र पांच फीट है, तो किसी की चौड़ाई सात से आठ फीट है. अनियमित रूप से बसे ये कॉलोनी वार्ड नं 31 के मधुकम, इरगू टोली, आनंद नगर, विद्यानगर, हिंदपीढ़ी, खेत मोहल्ला सहित एचइसी क्षेत्र में बसे कई कॉलोनी है. इन कॉलोनियों में भी रांची नगर निगम से बिना नक्शा पास कराये आवास का निर्माण धड़ल्ले से किया जा रहा है. इन अवैध निर्माणों की जानकारी जब भी नगर निगम को दी जाती है तो इसके अभियंताओं की बांछें खिल जाती है. जांच के नाम पर मकान मालिक से मोटी रकम वसूली जाती है और कोरम पूरा हो जाता है. रिपोर्ट में लिख देते हैं कि ऐसा कोई अवैध निर्माण संबंधित मोहल्ले में हो ही नहीं रहा है.

थड़पखना में हो चुकी है आगजनी

वर्ष 2012-13 में थड़पखना चौक स्थित एक अपार्टमेंट में आग लग गयी थी. इसमें अपार्टमेंट के चौथे तल्ले पर एक परिवार आगजनी में फंस गया था. आग लगने की सूचना फायर ब्रिगेड को दी गयी. फायर ब्रिगेड के वाहन तो पहुंचे, परंतु सड़क कम चौड़ी होने के कारण अपार्टमेंट तक नहीं पहुंच सके. इधर आग में फंसे लोगों को सीढ़ी के सहारे किसी तरह से निकाला गया. वहीं दूसरी ओर कुछ दिन पहले डेली मार्केट के कुछ दुकानों में आग लग गयी. संकरी गली होने के कारण दमकल वहां नहीं जा सका. मेन रोड पर दमकल खड़ा कर पाइप से आग बुझाने का प्रयास किया गया. तब तक दुकानें जल चुकी थी.

अग्निशमन विभाग के पास 15 मंजिल तक ही आग बुझाने की क्षमता

राजधानी के गगनचुंबी इमारतों में आग लग जाये तो बुझाना मुश्किल हो सकता है. फायर ब्रिगेड के पास मात्र 15 मंजिल तक ही आग बुझाने के लिए एक हाइड्रोलिक प्लेटफार्म है़ इससे अधिक ऊंचाई पर आग लगी तो अग्निशमन विभाग भी कुछ नहीं कर सकता है. प्रभारी अपर राज्य फायर ऑफिसर आरके ठाकुर ने बताया कि राज्य में सिर्फ एक ही हाइड्रोलिक प्लेटफार्म है, जो रांची मेें है़ इसलिए बहुमंजिली इमारतों में सुरक्षा के लिए फायर फाइटिंग सिस्टम होना अनिवार्य है.

अजय दयाल4 रांची

रांची में है 28 दमकल, चार छोटा फायर ब्रिगेड वाहन व एक फोम टेंडर वाहन (झागवाला फायर ब्रिगेड वाहन) : अगलगी से निबटने के लिए फायर बिग्रेड के पास हाड्रोलिक प्लेटफार्म सहित 28 दमकल, चार छोटा फायर ब्रिगेड वाहन व एक फोम टेंडर वाहन ( झागवाला फायर ब्रिगेड वाहन) है़ राजधानी में चार फायर स्टेशन है, जो डाेरंडा, धुर्वा, आड्रे हाउस व पिस्कामोड़ में है. एक फायर ब्रिगेड वाहन (दमकल) में 4500 लीटर पानी आता है, जबकि छोटे वाहन में 1500 लीटर पानी रहता है़ जीपनुमा फायर ब्रिगेड वाहन संकीर्ण रोड में काम आता है़

रासायनिक व पेट्रोलियम वाले आग के लिए है फोम टेंडर : रासायनिक व पेट्रोलियम पदार्थ में लगी आग को बुझाने के लिए राजधानी में एक फाेम टेंडर वाहन ( झागवाला फायर ब्रिगेड वाहन) है़ फोम टेंडर वाहन भी साधारण फायर ब्रिगेड वाहन की तरह हाेता है, लेकिन उसमें जो नोजल लगे होते हैं, उसकी बनावट थोड़ी अलग होती है़ उसमें फोम,पानी व ड्राइ केमिकल पाउडर रहता है़ वे तीनों मिल कर झाग पैदा करते हैं और पेट्रोलियम पदार्थ से लगे आग को कवर कर लेते हैं.

पलक झपकते ही आग बुझा देता है केफ्स : बुलेट मोटरसाइकिल पर लगी नयी टेक्नोलॉजी से लैश केफ्स (कम्परेज्ड एयरफोम सिस्टम) है़ यह झुग्गी, झोपड़ी व संकरी गलियों में अवस्थित भवनों में लगी आग को बुझाने में कारगर है़ मुंबई की विराज क्लीन सी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के सोल डिस्ट्रीब्यूटर ने इस उपकरण को तैयार किया है़ कंपनी के जोनल मैनेजर सुबोध कुमार ने बताया कि केफ्स के जरिये पेट्रो केमिकल, बिजली की आग कम समय में बुझायी जा सकती है. इस यंत्र से एक प्रकार का फोम निकलता है, जो आग लगे स्थान पर चिपक जाता है. इस फोम से आग को बढ़ानेवाला आॅक्सीजन नहीं मिल पाता है़ बड़ी आग को बुझाने में यंत्र को छह से सात मिनट लगता है़

एनओसी के लिए मांगा जाता है सुझाव, विभाग को नहीं है दंड का अधिकार : अपर राज्य फायर ऑफिसर आरके ठाकुर ने बताया कि अग्निशमन विभाग से भवन के निर्माण के पूर्व फायर फाइटिंग के सुरक्षात्मक अनापत्ति प्रमाण पत्र(एनओसी) मांगा जाता है़ अग्निशमन विभाग सीधे बिल्डर को अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं देता़ एनओसी नगर निगम व आरआरडीए द्वारा दिया जाता है़ नियम का उल्लंघन करनेवालों से यहीं दाेनों जुर्माना भी वसूल सकते है़ं अग्निशमन विभाग काे दंड देने का अधिकार नहीं है़

17 करोड़ का है सालाना बजट : विभाग के लिए सालाना 17 करोड़ रुपये का आवंटन होता है़ इस बजट में वेतन मद से लेकर स्टेशनरी, वाहनों के रख रखाव व अन्य खर्च भी शामिल है़ इसी बजट से राज्य भर का अग्निशमन विभाग चलता है़

गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं शहर में

राजधानी में भी अब मेट्रो सिटी की तर्ज पर गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं. कांके रोड में जहां 18 मंजिला अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है. वहीं लालपुर क्षेत्र में भी 25 मंजिला अपार्टमेंट का निर्माण जोर शोर से चल रहा है. ऐसे में अगर इन गगनचुंबी इमारतों में आग लगे तो उस पर कैसे नियंत्रण पाया जायेगा. यह समझ से परे है.

नहीं है फायर प्रूफ ड्रेस

विभाग के पास फायर प्रूफ ड्रेस नहीं है़ सीमित संसाधनों में ही विभाग चल रहा है. हालांकि फायर ऑफिसर का कहना है कि फायर प्रूफ ड्रेस से भी आग में दो मिनट से अधिक नहीं टिक पाता है़

आग लगने पर क्या सावधानी बरतें

लिफ्ट का कदापि प्रयोग न करे़ , इमारत का मेन स्वीच ऑफ कर दे़ं

इमारत से निकलने का नजदीकी रास्ता का प्रयोग करते हुए बाहर निकल जाये.

इमारत में स्मोक डिटेक्टर(धुआं का संकेतक) लगाये़ आग लगते ही स्मोक डिटेक्टर में धुआं जाते ही हुटर बजने लगेगा़ इससे लोगों को पता चल जायेगा कि इमारत में कहीं न कहीं आग लगी है़

आग लगने पर फायर फाइटिंग टीम आग बुझाने में जुट जाये़

रेस्क्यू व सर्च टीम लोगों को बचाने में जुट जाये और कोई व्यक्ति बेहोश हो गया हो या गिर कर जख्मी हो गया हो तो उसका प्राथमिक उपचार करे और आवश्कता पड़े तो अस्पताल भी भिजवा दे़

रॉल कॉल यानि इमारत में रहने वाले जितने व्यक्ति हैं, उसकी गिनती करे और कोई छूट गया हो तो रेस्क्यू टीम उसकी तलाश करे़ं

फायर फाइटिंग टीम से फीड बैक ले और पता करें कि आग पर पूर्ण रूप से काबू पा लिया गया हो उसके बाद ही घर में प्रवेश करे़

शहर की कुछ बड़ी घटनाएं

27 सितंबर 2012 – बुंडू के एक दुकान व मकान में आग लगी थी़ उसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी़ उस व्यक्ति का ग्राउंड फ्लोर में दुकान और फर्स्ट फ्लोर पर मकान था़ मकान में पटाखा को स्टोरेज था़ पटाखे में आग लगी थी़

तीन नवंबर 2012- होटल कैपिटोल हिल में आग लगी़ काफी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया़

एक दिसंबर 2012- कांटाटोली में एक अपार्टमेंट मेें आग लगी़ बड़ी आग होने के कारण कई फायर ब्र्रिगेड वाहन को लगाना पड़ा था़

सबने ने कहा, मुश्किल है अगलगी से बचना

रांची. अपर बाजार की गलियां इतनी संकीर्ण है कि यदि आग लगी तो अपर बाजार को बचाना मुश्किल हो जायेगा़ सुरक्षा को ध्यान में रख कर किसी ने एक ईंच जमीन भी नहीं छोड़ी है. दुकानें सटी-सटी है़ एक दुकान में आग लगते ही अगल-बगल की सभी दुकानें प्रभावित हो जायेगी़ चाह कर भी अग्निशमन विभाग कुछ नहीं कर सकता. यहीं नहीं तंग गलियों का भी दुकानदार सामान रख कर, सीढ़ी बनाकर अतिक्रमण कर लेते हैं.

दमकल नहीं आ सकता: अभिषेक

रंगरेज गली के व्यवसायी अभिषेक कुमार ने कहा कि रोड इतनी संकीर्ण है कि पानी का टैंकर सुबह में खाली रोड में नहीं घुस पाता तो फायर ब्रिगेड का वाहन कैसे प्रवेश कर पायेगा. यदि दुकानों में आग लगी तो भगवान ही बचा सकते हैं. दुकानों में फायर फाइटिंग सिस्टम होना अनिवार्य है.

तंग गलियों का भी अतिक्रमण : रमेश

रंगरेज गली के रमेश चौरसिया ने कहा कि यदि कभी भी इस गली में आग लगी तो बड़ा हादसा हो सकता है़ एक तो संकीर्ण गली है. वहीं मकान व दुकान कतार में नहीं बने हैं. किसी की सीढ़ी सड़क पर ही बनी है तो किसी का छज्जा निकला है. यदि फायर ब्रिगेड का छोटा वाहन अंदर आने का प्रयास करेगा तो छज्जे में फंस जायेगा.

सड़क चौड़ीकरण जरूरी : प्रवीण

व्यवसायी प्रवीण व्यास ने कहा कि अपर बाजार के दुकानदार अतिक्रमण कर बनाये सीढ़ी व छज्जे को सुरक्षा के दृष्टिकोण से हटा लेना चाहिए़, ताकि संकीर्ण गली थोड़ी चौड़ी हो जाये. ताकि भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना हो जाये तो कम से कम फायर ब्रिगेड व एंबुलेंस बाजार के अंदर जा सके़

बेतरतीब तार खतरनाक :शंकर राज

व्यवसायी शंकर राज ने कहा कि सुनार पट्टी में तार काफी नीचे झुका हुआ है़ कई पोल भी जर्जर है. दो ट्रांसफरमर भी पास-पास लगे हैं. कई बार ट्रांसफार्मर में शॉर्ट होने व तार टकराने से चिंगारी निकलती है. शुक्र है कि कई बार इस चिंगारी से आग लगते-लगते बुझी है. यदि आग लगी तो जान-माल का काफी नुकसान हो सकता है़

आग बुझाने को पानी नहीं : हरिशंकर

व्यवसायी हरिशंकर गोप ने कहा कि आग लगी तो अपर बाजार में बनी दो व तीन मंजिले मॉल में आग बुझाने के लिए पानी भी नहीं है़ पानी के कमी के कारण आग लगने पर बड़ा हादसा का टालना मुश्किल होगा़ गली भी इतनी पतली है कि फायर ब्रिगेड वाहन को रोड पर लगा कर पाइप लाने में काफी समय लग जायेगा और तब तक काफी नुकसान हो जायेगा़

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