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टेनेंसी की जमीन पर कब्जा करनेवाले स्थानीय कैसे?

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सोमवार को देवघर सर्किट हाउस में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा है कि सरकार स्थानीय नीति में संशोधन कर सकती है. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा समेत सांसदों की ओर से दिये गये सुझाव पर सरकार विचार करेगी. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने एक मई को मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था. श्री […]

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सोमवार को देवघर सर्किट हाउस में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा है कि सरकार स्थानीय नीति में संशोधन कर सकती है. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा समेत सांसदों की ओर से दिये गये सुझाव पर सरकार विचार करेगी. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने एक मई को मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था. श्री मुंडा ने स्थानीय नीति लागू करने काे साहसिक कदम बताते हुए मुख्यमंत्री को बधाई भी दी. वहीं इसके सुधार के लिए उपाय भी सुझाये हैं. प्रभात खबर श्री मुंडा के मूल पत्र को हू-ब-हू प्रकाशित कर रहा है.
प्रिय रघुवर जी

झारखंड सरकार द्वारा स्थानीय नीति की घोषणा किये जाने के बाद अलग-अलग राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों, राजनेताओं एवं बुद्धिजीवियों द्वारा दिये गये बयानों और प्रतिक्रियाओं को मैं ध्यान से देख और सुन रहा हूं. निकट भविष्य में इस विषय को लेकर जो कठिनाइयां उत्पन्न होने की आशंका है, उसे ध्यान में रख कर विषय से जुड़ी कुछ बातें आपके विचारार्थ प्रेषित कर रहा हूं.
सर्वप्रथम तो आप बधाई व धन्यवाद के पात्र हैं. क्योंकि आपने स्थानीय नीति की घोषणा कर अदम्य साहस और झारखंड के विकास के प्रति अपनी कर्मठता और समर्पण का परिचय दिया है. इस बात पर आप अवश्य मुझसे सहमत होंगे कि किसी भी सफल स्थानीय नीति के लिए आवश्यक है कि वह लाभुकों के लिए प्रासंगिक और दीर्घकालिक लाभ देनेवाली हो. संवैधानिक प्रावधानों के आलोक में उस संदर्भ में कुछ बातों पर चर्चा करना आवश्यक समझता हूं.
आपको तो ज्ञात ही है कि झारखंड का अधिकांश भाग अनुसूचित क्षेत्र में आता है और इसका चरित्र आदिवासी बहुल है. भारत के संविधान में अपने क्षेत्र के जनजातीय हितों और उनकी सामाजिक एवं सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिए पांचवीं अनुसूची में विशेष प्रावधान किये गये हैं. जिनका उद्देश्य उनके विशिष्ट जीवन शैली की रक्षा और उसकी निरंतरता को सुनिश्चित करना है. संविधान का अनुच्छेद 244 अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है और उसमें पांचवी अनुसूची के संचालन को संपादित करने के साथ ऐसे वर्गों के बारे में चिंता की गयी है, जिसे सीएनटी एक्ट में पिछड़े वर्गों के जमीन हस्तांतरण के संदर्भ में एवं एसपीटी एक्ट में संताल परगना के सभी वर्गों के जमीनों के हस्तांतरण पर रोक है. इस कानून के तहत व अनुच्छेद 244 की संवैधानिक व्यवस्था में न केवल आदिवासियों और गैर आदिवासियों (मूलवासी) के जमीनों और आर्थिक हितों की रक्षा करना है, बल्कि पूरे क्षेत्र में पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है. संताल परगना टेनेंसी एक्ट का अनुभाग 20 जमीन के हस्तांतरण पर पूरी तरह रोक लगाता है और सीएनटी एक्ट संताल परगना को छोड़ पूरे राज्य पर लागू होता है. यह एक्ट दलितों, मूलवासी और आदिवासियों के बीच ही जमीन की खरीद-बिक्री को सीमित करता है. आदिवासी और दलित कमश: सिर्फ अपने थाना और जिला के अंतर्गत ही जमीन हस्तांतरण कर सकते हैं.
टेनेंसी एक्ट के नियमों का उल्लंघन कर हजारों एकड़ जमीन पर अवैध तरीके से घर बनाकर रहनेवालों को क्या स्थानीय का दर्जा दिया जा सकता है? संविधान के अनुच्छेद 244 (भाग ख (5/2) (क) के अनुसार, जो पांचवीं अनुसूची को प्रशासित और नियंत्रित करता है. एेसे क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या भूमि के अंतरण का प्रतिषेध या निबंधन करने का प्रावधान है. वहीं सीएनटी एक्ट में आदिवासियों और अन्य पिछड़े जातियों (बैकवर्ड क्लासेस) की बात की गयी है. एक्ट के अध्याय आठ की धारा (46) (6) में (क) अनुसूचित जातियों (ख) अनुसूचित जनजातियों को भारत के संविधान में दिये गये अनुसूची के आधार पर परिभाषित माना गया है और (ग) पिछड़े वर्गों को राज्य सरकारों द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा सामाजिक और शैक्षिक आधार पर घोषित तत्कालीन बिहार सरकार ने आजादी के बाद 1962 में पहली बार एेसी सूची जारी की थी.
सरकार की स्थानीय नीति की मूल प्रति पढ़ने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मजबूर हूं कि शायद इन गंभीर पहलुओं पर गौर से विचार नहीं किया गया है. ऐसे गंभीर विषय पर भी अनुच्छेद 244 के अधीन परामर्शदात्री परिषद् में चर्चा नहीं की गयी. स्थानीय नीति को प्रासंगिक, संवैधानिक एवं समावेशी बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है.
1. यदि किसी व्यक्ति ने अनुसूचित क्षेत्र में किसी तरह धोखाधड़ी से 1985 से पहले जमीन खरीद ली हो, तो एेसेे मूलवासी को स्थानीय मानना उचित नहीं होगा. सिर्फ कट ऑफ डेट के अनुपालन से सदानों के साथ न्यायोचित निर्णय न होने का खतरा बना रहेगा. इस प्रकार से स्थानीयता प्राप्त करना संविधान के अनुच्छेद 244 के अनुसार भी त्रुटिपूर्ण कहा जायेगा.
2. स्थानीय नीति जहां एक ओर 1985 या उसके पूर्व में जमीन पर मालिकाना हक दिखाने वालों को स्थानीय मानता है, वहीं दूसरी ओर खतियान की बाध्यता की भी बात की गयी है,जो पारस्परिक अंतर्विरोधी है. मूल राज्य के निवासी जहां के खतियानी रैयत हैं, कहीं वे दोनों राज्यों के स्थानीयता का लाभ न ले सकें. इसे सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
3. जनजातीय और गैर जनजातीय दोनों श्रेणी के जमीन के हस्तांतरण की वैधता सुनिश्चित करना आवश्यक है और गलत तरीके से जमीन पर मालिकाना हक दिखानेवालों को स्थानीयता का लाभ से वंचित रखने की जरूरत है. अन्यथा ऐसे लोग जमीन के साथ-साथ नौकरियों पर भी अपना कब्जा जमाकर निर्दोष और ठगे गये वास्तविक मालिकों को सभी लाभों से वंचित करते रहेंगे.
4. वर्तमान स्वरूप में नीति को लागू करने से असली लाभुकों के कानूनी अधिकारों के हनन और न्यायोचित लाभ नहीं मिलने के साथ-साथ, कहीं-न-कहीं भारत के संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन का खतरा भी बना रहेगा.
आशा करता हूं कि ऊपर वर्णित प्रश्नों व सुझावों पर आप पुनर्विचार कर स्थानीय नीति में आवश्यक सुधार कर उसे मजबूती प्रदान करेंगे और इस क्षेत्र के लिए संविधान में प्रावधानित भावनाओं का आदर एवं पालन करते हुए संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नीति में यथायोग्य संशोधन कर समस्त झारखंड वासियों के हितों का संरक्षित एवं संवर्धन करेंगे.
सादर
अर्जुन मुंडा

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