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जल संकट: नहीं चेते, तो खत्म हो जायेगा राज्य का भूगर्भ जल

रांची: झारखंड में अत्यधिक दोहन की वजह से अगले एक दशक में भूगर्भ जल का स्तर समाप्त हो जायेगा. राज्य भर में औसतन 1100 मिलीमीटर से लेकर 1442 मिलीमीटर बारिश होती है. पिछले तीन वर्षों से अनियमित बारिश की वजह से भूगर्भ जल का स्तर भी 4.35 मीटर से 4.50 मीटर तक कम हुआ है. […]

रांची: झारखंड में अत्यधिक दोहन की वजह से अगले एक दशक में भूगर्भ जल का स्तर समाप्त हो जायेगा. राज्य भर में औसतन 1100 मिलीमीटर से लेकर 1442 मिलीमीटर बारिश होती है. पिछले तीन वर्षों से अनियमित बारिश की वजह से भूगर्भ जल का स्तर भी 4.35 मीटर से 4.50 मीटर तक कम हुआ है.

विधानसभा में कम बारिश से संबंधित प्रश्न पूछे जाने पर पेयजल और स्वच्छता मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी ने इस बात को माना था कि 2015 में प्री माॅनसून के दौरान पानी का जल स्तर 4.35 मीटर कम हुआ था, जो पोस्ट माॅनसून के दौरान 4.50 मीटर हो गया. इसकी वजह से गरमी में राज्य भर के 90 प्रतिशत कुएं सूख रहे हैं और सरकारी ट्यूबवेल में भी पानी की कमी हो जा रही है.

राज्य भूगर्भ जल निदेशालय के आंकड़ों पर गौर करें, तो राज्य भर में 23800 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी सरफेस वाटर (सतही जल) से आता है. 500 एमसीएम पानी भूमिगत जल स्तर से आता है. राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 80 प्रतिशत सरफेस वाटर और 74 फीसदी भूमिगत जल बह जा रहा है. इसका मुख्य कारण अत्यधिक पानी का दोहन और ट्यूबवेल की स्थापना करना है. औसतन राज्य सरकार की तरफ से 20 हजार से अधिक नये ट्यूबवेल की स्थापना प्रत्येक वर्ष की जाती है. पिछले दो वर्ष से नये ट्यूबवेल की स्थापना नहीं हो रही है. राज्य भर में चार लाख से अधिक ट्यूबवेल हैं. भीषण गरमी को देखते हुए हाल ही में सरकार की तरफ से 13 हजार खराब पड़े ट्यूबवेल को ठीक करने का निर्देश दिया गया है. इसमें 84 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. सरकार की तरफ से भीषण गरमी को देखते हुए पेयजल और स्वच्छता विभाग के कर्मियों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गयी हैं.
राजधानी में 400 फीट पर मिल रहा है पानी : राजधानी रांची में अब चार सौ फीट की बोरिंग पर पानी मिल रहा है. 2006-07 में 250 फीट में पानी का पर्याप्त स्त्रोत मिल जाता था. औसतन 4.5 इंच, 6 इंच, आठ इंच की बोरिंग अब लोग करा रहे हैं. अपार्टमेंट में आठ इंच तक की बोरिंग करायी जा रही है. 4.5 इंच की बोरिंग अब 95 रुपये फीट हो गयी है. यह पांच वर्ष पहले 55 से 60 रुपये फीट थी. राजधानी के हिनू, हरमू, कांके रोड, हटिया, मोरहाबादी, एयरपोर्ट रोड, धुर्वा, कोकर, डोरंडा में पानी का स्तर सबसे अधिक गिरा है. पहले 40 से 60 फीट में इन इलाकों में पानी मिल जाता था, अब 200 फीट से लेकर 450 फीट में भी पानी नहीं मिल रहा है.
जून 2008 के बाद से राजधानी के कई इलाकों में गिरा जल स्तर
राजधानी रांची की ही बात करें, तो जून 2008 से लेकर जून 2012 तक कई इलाकों का जल स्तर काफी तेजी से गिरा है. राजधानी के हिनू इलाके का जल स्तर सबसे अधिक 8 मीटर से अधिक गिरा है. हटिया इलाके में 6.59 मीटर, होटवार में 5.18 मीटर जल स्तर की गिरावट दर्ज की गयी है. जून 2012 में रांची में जल स्तर का दोहन 122.44 प्रतिशत से अधिक दर्ज किया गया है. इस दरम्यान जल स्तर में 13.4 मीटर तक की कमी दर्ज की गयी है. राज्य के 18 जिलों में भी 2002 की तुलना में 2012 में दो से चार मीटर तक जल स्तर नीचे गये है. इसमें रांची, गुमला, लोहरदगा, पश्चिमी और पूर्वी सिंहभूम, चतरा, गिरिडीह, बोकारो, पलामू, गढ़वा, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज और पाकुड़ जिला शामिल है.
2011 में राज्य के छह इलाकों को किया गया था अत्यधिक दोहन क्षेत्र : राज्य के छह इलाकों को अत्यधिक जल दोहन क्षेत्र की घोषणा वर्ष 2011 में की गयी थी. झरिया, धनबाद, जमशेदपुर, गोड्डा, रामगढ़ और राजधानी रांची का कांके इलाका में पानी के अत्यधिक उपयोग मुख्य कारण बताया गया था. राज्य के विभिन्न जिलों में पानी का भंडार और ग्राउंड वाटर डेवलपमेंट की स्थिति राज्य के विभिन्न जिलों में पानी की उपलब्धता के आधार पर उसका विकास काफी कम हो रहा है. केंद्र सरकार की संसदीय उप समिति ने भी झारखंड में सिर्फ 32 फीसदी पानी के विकास संबंधी रिपोर्ट दी है. भूगर्भ जल निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार राज्य में पुनर्भरन से ही ग्राउंड वाटर का समुचित विकास संभव है. निदेशालय की ओर से प्रति हेक्टेयर मीटर पानी की उपलब्धता (एचएएम) के आधार पर जिलावार पानी का भंडार और उसके विकास का आकलन भी किया गया है.
राज्य में ग्राउंड वाटर का भंडार 4292 एमसीएम
राज्य भर में ग्राउंड वाटर रिजर्व 4292 एमसीएम है. इसमें शहरी इलाकों में पीने के पानी की प्रति दिन की आवश्यकता 1616.35 लाख गैलन है. जबकि शहरों में आधे से कम पानी ही लोगों को मिल रहा है. राज्य भर में सिर्फ 734.35 लाख गैलन पानी ही लोगों को शहरी क्षेत्र में पीने के लिए मिल रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि पानी का भंडारण सही तरीके से नहीं होने और पुनर्भरन कानून को सख्ती से लागू नहीं किये जाने की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हो गयी है. राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पीसीसी सड़क के अधिक बनने से भी भूगर्भ जल का स्तर नहीं बढ़ रहा है, क्योंकि अलकतरा से निर्मित सड़कों में पानी के रिसने की क्षमता अधिक होती है, जबकि सीमेंट और चिप्स से बननेवाली पीसीसी सड़क से पानी रिचार्ज नहीं हो पाता है. शहरों में अंधाधूंध हो रहे निर्माण कार्य से भी पानी के स्तर में लगातार कमी देखी जा रही है.
जिले में भूगर्भ जल का विकास
जिला भूगर्भ जल एचएएम में व ग्राउंड वाटर डेवलपमेंट फीसदी में
बोकारो 25408 31 फीसदी
चतरा 24762 35 फीसदी
देवघर 21564 33 फीसदी
धनबाद 13492 52 फीसदी
दुमका 5578 27 फीसदी
पूर्वी सिंहभूम 2346 21 फीसदी
गढ़वा 31073 35 फीसदी
गिरिडीह 33264 36 फीसदी
गोड्डा 3848 39 फीसदी
गुमला 36520 26 फीसदी
हजारीबाग 30188 39 फीसदी
जामताड़ा 14903 27 फीसदी
खूंटी 14360 23 फीसदी
कोडरमा 7607 33 फीसदी
लातेहार 25256 26 फीसदी
लोहरदगा 9376 46 फीसदी
पाकुड़ 12685 14 फीसदी
रामगढ़ 10858 39 फीसदी
रांची 35972 40 फीसदी
साहेबगंज 11614 22 फीसदी
सरायकेला 18859 12 फीसदी
सिमडेगा 26958 27 फीसदी
प सिंहभूम 33108 9 फीसदी
किस जिले में भूमिगत जल का क्या है स्तर (मीटर में)
जिला 2002 में जल स्तर 2015 में
रांची 6.86 11.67
खूंटी 6.89 8.89
गुमला 7.71 10.95
लोहरदगा 9.81 12.60
हजारीबाग 7.54 8.40
रामगढ़ 8.02 13.69
कोडरमा 6.12 7.40
चतरा 9.95 10.97
गिरिडीह 6.40 8.50
धनबाद 10.02 15.15
बोकारो 8.14 10.25
गढ़वा 7.66 9.41
पलामू 5.60 8.55
लातेहार 6.35 9.08
दुमका 7.05 7.80
जामताड़ा 6.50 7.70
देवघर 6.10 8.37
गोड्डा 6.65 7.85
साहेबगंज 3.85 5.50
राजमहल 5.85 7.35
पाकुड़ 6.70 8.90
पू सिंहभूम 9.32 13.97
प सिंहभूम 8.71 12.55

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