स्थानीयता एक सतत प्रक्रिया : अजीतझारखंड सरकार के अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार से सीधी बात स्थानीयता के लिए 30 वर्षों का समय ही क्यों तय किया गया? देश के लगभग सभी राज्यों में 15 वर्षों से रहनेवाले को स्थानीय का दरजा दिया जाता है. झारखंड बनने के बाद गुजरे 15 वर्षों में स्थानीयता को परिभाषित नहीं किया जा सका था. इस वजह से स्थानीयता की समय-सीमा तय करने में राज्य गठन के बाद गुजरे 15 वर्षों को जोड़ कर देश के अन्य राज्यों के अनुरूप ही नियम बनाये गये हैं. स्थानीयता के दायरे में आनेवालों को क्या-क्या लाभ मिल पायेगा?शिक्षा, नियोजन, कृषि, व्यवसाय समेत अन्य क्षेत्रों में राज्य सरकार द्वारा तय नीतियों व नियमों के अनुसार स्थानीय लाभांवित होंगे.मेरा जन्म अविभाजित बिहार, जो अब झारखंड में है, हुआ है. मेरे पास कोई प्रमाण पत्र नहीं है. मैट्रिक परीक्षा 1990 के बाद पास की है. क्या मुझे स्थानीय होने का लाभ मिलेगा?झारखंड में जन्म लेने के बाद प्रमाण पत्र नहीं होने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है. जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र उचित प्रमाण देकर कभी भी बनाया जा सकता है. झारखंड में जन्म लेनेवाला हर व्यक्ति, जिसने यहां से 10वीं तक पढ़ाई की है, वह स्थानीयता का लाभ ले सकता है. सरकार ने स्थानीयता की विस्तृत परिभाषा निर्धारित की है. केवल शिक्षा के आधार पर स्थानीयता परिभाषित नहीं की जा सकती है. बाहर जन्म लेने और झारखंड में केवल पढ़ाई करनेवाला स्थानीय नहीं हो सकता है. स्थानीय नीति झारखंड के स्थानीय लोगों के लिए ही है.झारखंड के किसी जिले में मेरे नाम से कोई संपत्ति नहीं है, मैंने स्नातक तक पढ़ाई यहीं से की है, क्या मुझे स्थानीय माना जायेगा ?हां, बिल्कुल माना जायेगा. झारखंड में जन्म लेकर यहीं के मान्यता प्राप्त संस्थान से स्नातक करनेवाला स्थानीय होगा. 30 वर्ष की अवधि पूरी होने पर वह स्थानीयता का लाभ ले सकता है. मगर, उसके माता-पिता को यह लाभ नहीं मिलेगा. स्थानीयता का लाभ वैसा व्यक्ति नहीं प्राप्त कर सकता है, जो विगत 30 वर्षों से झारखंड के भौगोलिक क्षेत्र में नहीं रहता हो और जिसके पास राज्य में अचल संपत्ति न हो. राज्य गठन के बाद कैडर विभाजन में मुझे झारखंड में सरकारी नौकरी के लिए भेजा गया है, क्या मुझे स्थानीय माना जायेगा?बिल्कुल माना जायेगा. सरकारी नौकरी में यह मान कर चला जाता है कि वह अगले तीन वर्षों तक राज्य सरकार के अधीन काम करेगा. ऐसे में स्थानीयता पर उसका दावा बिल्कुल सही माना गया है. मैं पिछले 29 साल से झारखंड में रह रहा हूं. क्या अगले साल मैं स्थानीय माना जाऊंगा?हां, स्थानीयता एक सतत प्रक्रिया है. 2016 में झारखंड आनेवाला व्यक्ति भी 2046 में स्थानीय बन सकता है. कोई भी व्यक्ति झारखंड में 30 वर्ष गुजार कर स्थानीयता का लाभ ले सकता है. पर, इसके लिए उसे उचित प्रमाण प्रस्तुत करना होगा. इसके लागू होने के बाद 1932 या अंतिम सर्वे के आधार पर बननेवाले स्थानीय नीति का क्या होगा? जिसे राज्य सरकार ने बिहार से एडॉप्ट किया था?वह नीति स्वत: निरस्त हो जायेगी. जाति प्रमाण पत्र व अन्य प्रमाण पत्र बनाने का अाधार क्या यही स्थानीय नीति होगी?हां, जाति व अन्य प्रमाण पत्र के आधार पर संबंधित राज्य प्रेसिडेंशियल आर्डर के आधार पर स्थानीय निवासियों को ही आरक्षण की सुविधा प्रदान करते हैं. ऐसी स्थिति में स्थानीय नीति की परिभाषा से ही मामलों को निर्धारण किया जायेगा. मैं झारखंड में 30 साल से अधिक समय से रह रहा हूं, कोई अचल संपत्ति नहीं है. पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं. क्या मैं स्थानीय माना जाऊंगा?इस तरह के मामलों के लिए प्रावधान किये गये हैं. भाषा, संस्कृति के आधार पर ग्रामसभा इस बारे में अनुशंसा कर सकती है. मेरा बिहार में भी स्थानीय प्रमाण पत्र बना हुआ है. झारखंड में भी 30 साल से अधिक समय से रह रहा हूं, क्या दोनों स्थानों पर स्थानीय का लाभ मिलेगा? नहीं, भारत में कोई भी व्यक्ति देश के दो राज्यों में स्थानीयता का लाभ नहीं ले सकता है. यदि कोई व्यक्ति 30 वर्षों तक झारखंड में रह कर स्थानीयता का लाभ लेता है, तो वह दूसरे राज्य में स्थानीयता का फायदा नहीं ले सकता है. यही व्यवस्था पूरे देश में है. मैं 30 साल से अधिक समय से झारखंड में रह रहा हूं. प्रमाण पत्र भी है. स्थानीय होने का सब योग्यता पूरी करता हूं. मेरी शादी कोलकाता की लड़की से हुई है. क्या मेरी पत्नी स्थानीय कही जायेगी?हां, बिल्कुल. पत्नी को भी उसके पति की तरह स्थानीयता का लाभ मिलेगा. मेरी पत्नी कोडरमा जिले की है. मेरा गृह जिला गिरिडीह है. मेरी पत्नी को किस जिले के आरक्षण रोस्टर का लाभ मिलेगा ? माना जाता है कि पत्नी और पति दोनों साथ रहते हैं. ऐसे में पत्नी को पति के गृह जिले में ही स्थानीयता का लाभ मिलेगा. शादी के बाद वह अपने पूर्व जिले में स्थानीयता का दावा नहीं कर सकेगी. पर, तलाक होने या पति-पत्नी के अलग होने की स्थिति में इसमें परिवर्तन संभव है.अधिसूचित जिले में सारा पद स्थानीय के लिए है. क्या गैर अधिसूचित एरिया में यह प्रावधान लागू नहीं होगा. क्या वहां तृतीय व चतुर्थ पद में दूसरे जिलों के अभ्यर्थी भी आ सकते हैं?यह सरकार की नीतियों पर निर्भर करता है. फिलहाल, सरकार ने केवल अधिसूचित जिलों में अलग से प्रावधान लाकर स्थानीय को ही सभी पद देने का फैसला किया है. गैर अधिसूचित क्षेत्रों के लिए ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. पर पूर्ण आरक्षण नहीं होने की स्थिति में स्थानीय को सरकार की नीतियों के मुताबिक लाभ मिलेगा. अनारक्षित पदों पर कोई भी आवेदन करने के लिए स्वतंत्र रहेगा. उनको भी राज्य की नीतियों के आधार पर सफल होना होगा. जिसे जिले के आरक्षण रोस्टर में जिस जाति के लिए जगह नहीं होगी, क्या वह दूसरे जिले में नौकरी के लिए आवेदन कर सकेगा? यह सरकार की नीतियों पर निर्भर करेगा. अभी सरकार ने केवल स्थानीय नीति को परिभाषित किया है. नियमावली का बनाया जाना बचा हुआ है. अभी जो नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है, उसमें क्या स्थानीय नीति लागू होगी? यह भी सरकार की नीतियों पर निर्भर करेगा. सरकार कुछ भी तय कर सकती है. चाहे, तो चल रही नियुक्ति प्रक्रियाओं को रद्द किया जा सकता है.स्थानीय नीति लागू होने से क्या नियुक्ति नियमावली में भी बदलाव होगा? हां. स्थानीयता को परिभाषित करने के बाद राज्य सरकार नियुक्ति नियमावलियों में आवश्यक संशोधन करेगी. सरकार चाहे, तो केवल एक अधिसूचना के जरिये सभी नियमावलियों में जरूरी सुधार कर सकती है.स्थानीय नीति लागू होने के बाद अधिसूचित जिले में आरक्षण का फॉर्मूला क्या होगा? यह संविधान के प्रावधानों के मुताबिक ही तय किया जाता है. संविधान के मुताबिक कानून बना कर राज्य फैसला करते हैं. सरकार चाहे, तो राज्य में प्रचलित आरक्षण का फार्मूला बदल भी सकती है. हालांकि, सरकार द्वारा लिये जा रहे नीतिगत फैसलों से यह साफ है कि सरकार अधिसूचित जिलों में स्थानीय को 100 फीसदी आरक्षण दे रही है.
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स्थानीयता एक सतत प्रक्रिया : अजीत
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