रांची: नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 में देश भर में 1.69 लाख लोग सड़क हादसे के शिकार हुए. वहीं दुनिया भर में 14 लाख लोगों की मौत हुई. इधर झारखंड गठन के बाद से वर्ष 2013 तक ही 54 हजार 321 लोग सड़कों पर मारे गये. ताजा आंकड़ा 60 हजार से अधिक ही होगा. एक तरफ सड़क दुर्घटना में मरने वाले बढ़ रहे हैं, दूसरी अोर सरकारें इससे निपटने तथा मौत रोकने के फौरी उपाय कर रही है. झारखंड में यह काम नहीं हो रहा है, या फिर यह प्रयास बेहद धीमा है. तथ्यों के आधार पर इस बात की पुष्टि होती है.
ट्रॉमा सेंटर बनाने की योजना राज्य गठन के बाद वित्तीय वर्ष 2007-08 में बनी थी. इसके दो वर्ष बाद 2009-10 में यह तय हुआ कि राज्य भर में 10 ट्रॉमा सेंटर बनेंगे, पर इनमें से गढ़वा के नगरऊंटारी तथा पू सिंहभूम के बहरागोड़ा में ही सेंटर का भवन बना. एक सेंटर की लागत 1.18 करोड़ है. शेष के लिए सरकार जगह भी चिह्नित नहीं कर सकी. इधर दो भवन तो बन गये, पर ढाई वर्ष बाद मई 2013 तक भी इनका उदघाटन नहीं हुआ था. बाद में इनका उदघाटन तो हुआ, लेकिन चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की पोस्टिंग ही नहीं हुई. आज की तारीख में यहां कागज पर डॉक्टर तो हैं, लेकिन दोनों सेंटर संचालित नहीं हैं.
एंबुलेंस की होगी खरीद
एक तरफ ट्रॉमा सेंटर नहीं बने हैं, पर सरकार सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस खरीद रही है. 108 नाम के कुल 329 एंबुलेंस खरीदे जाने हैं. खरीदे गये वाहनों पर उपकरण लगाकर इन्हें एंबुलेंस बनाने के लिए टेंडर निकला, पर सिंगल पार्टी के कारण रद्द हो गया. अभी दोबारा टेंडर निकाला जाना है. इधर लोग सवाल कर रहे हैं कि ट्रॉमा सेंटर बना नहीं, जिला अस्पतालों में भी ट्रॉमा केस के लिए बेहतर सुविधा नहीं है, तो फिर एंबुलेंस से मरीज कहां भेजे जायेंगे?
न्यूरो सर्जन नहीं
सड़क दुर्घटना के केस में न्यूरो सर्जन का होना निहायत जरूरी है. इधर झारखंड में न्यूरो सर्जन की कमी है. करीब 3.29 करोड़ आबादी वाले इस राज्य में सिर्फ 18 न्यूरो सर्जन हैं. इनमें से 12 रांची के सरकारी व निजी अस्पतालों में, तीन जमशेदपुर में, एक धनबाद में तथा दो बोकारो में हैं.