उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार के समय टीएसी ने परियोजना रद्द कने की अनुशंसा की थी. सरकार भाजपा के आदिवासी विधायकों को सामने कर जनता की भावना से खिलवाड़ करना चाह रही है. उन्होंने कहा कि यह परियोजना 1989 की है. 1991 तक इसमें 21 फीसदी काम हुआ था. बाद में विरोध के कारण यह परियोजना बंद हो गयी थी. 1999 में विश्व बैंक ने इसके लिए पैसा देना बंद कर दिया था. 2003-04 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय फिर से इसे चालू करने का निर्णय लिया. उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के समय 650 करोड़ रुपये का टेंडर हुआ था. श्री मुंडा इसका शिलान्यास करने गये थे, लेकिन 25 हजार से अधिक लोगों के विरोध के कारण शिलान्यास नहीं हो पाया था. मामला न्यायालय में चला गया था. 2014 में न्यायालय ने टेंडर निकालने की अनुमति दे दी थी.
इसके बाद अगस्त 2014 में तत्कालीन विभागीय मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी ने 700 करोड़ रुपये का टेंडर निकाला था. इसका विरोध 29 अक्तूबर को आयोजित जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) की बैठक में हुआ. समिति ने पूरी परियोजना को रद्द करने की अनुशंसा की. अनुशंसा सीधे राज्यपाल के पास जानी चाहिए थी, लेकिन आज तक सरकार ने अनुशंसा राज्यपाल को नहीं भेजी है. इसी मुद्दे को लेकर झामुमो विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात भी की थी. राज्यपाल का कहना था कि इस मुद्दे को लेकर तीन बार सरकार को नोटिस भेजा जा चुका है, लेकिन अब तक जवाब नहीं मिला है. रघुवर सरकार भाजपा की गलतियों को छिपाने के लिए हेमंत सोरेन पर आरोप लगा रही है. पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच करायी जानी चाहिए.